बुधवार, जुलाई 11, 2007

आतंकवाद बनाम समाजवाद

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इस लखनऊ यात्रा के दौरान अपने प्रिय पड़ोसी राजेश बाबू से मुलाकात करने उनके घर पंहुचा. मुझे देख कर बहुत खुश हुये. गले मिले, बैठक में बिठाया, ख़स का ठंडा शर्बत पिलाया और राम नारायण तिवारी के दही बड़े खिलाये. बोले कि रुको, खाना – वाना खा कर जाना. उनका कहा सिर ऑखों पर, हम भी डट गये. दस्तरख़ान बिछा और हमने जम कर कबाब पराठे चेंपे. खना खा कर सोचा कि अब घर जा कर आराम करेंगे लेकिन राजेश बाबू का कुछ और ही कार्यक्रम था, बोले,” गुरू, गाड़ी निकालो और मुझे चारबाग़ (लखनऊ का रेलवे स्टेशन) छोड़ दो, मुझे शाम की लखनऊ मेल से दिल्ली जाना है.”
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राजेश बाबू का कहा तो मैं टाल ही नहीं सकता, झट-पट गाड़ी निकाली और राजेश बाबू को बैठा कर चल पड़ा चारबाग़. जस तस गाड़ी को पार्किंग में घुसेड़ कर मैं राजेश बाबू को प्लेटफार्म तक छोड़ने के लिये चल पड़ा और स्टेशन के प्रवेश द्वार पर एक नयी चीज़ देखी. प्रवेश द्वार पर एक मेटल डिटेक्टर लगा हुआ था और सारे यात्रियों को उससे होकर गुज़रना था. इतनी भीड़ और रेलम-पेल में, एक बार में सिर्फ़ एक ही यात्री के घुस पाने से ख़ासी भीड़ जमा हो गयी थी, जिसके चलते सुरक्षा कर्मियों पर भीड़ को काबू में रखने का और जमा भीड़ को फटाफट स्टेशन के अंदर भेजने का दबाव बढ़ रहा था. सुरक्षा कर्मी मेटल डिटेक्टर के पास खड़े हो कर हर यात्री पर जोर जोर से चिल्ला रहे थे – जल्दी चलो जल्दी चलो! जो भी मेटल डिटेक्टर से घुसता, मेटल डिटेक्टर ‘टूं टूं’ करके आवाज़ जरूर करता लेकिन सुरक्षा कर्मी इतने दबाव में थे कि किसी को भी रोक कर तलाशी नहीं ले पा रहे थे. तो भाई मेटल डिटेक्टर टूं टूं करता रहा और लोग उसके अंदर से जाते रहे.
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हमने भी मेटल डिटेक्टर पार किया. पार करते ही राजेश बाबू मुस्कियाते हुये और बड़े ही गर्व के साथ मुझसे बोले,” देखा, कितनी टाइट सेक्योरिटी है!”
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”क्या ख़ाक सेक्योरिटी है!” मैं ने झुंझलाते हुये कहा,” डिटेक्टर टूं टूं बज रहा है और लोग घुसे जा रहे हैं. फ़ायदा क्या हो रहा है? केवल खुद को धोखा देने वाली बात है.”
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राजेश बाबू ‘फील’ कर गये,” अबे तुम एन.आर.आई. लोग ना, अपने आप को बस विदेशी ही समझते हो. भारत की हर तरक्की में कुछ ना कुछ मीन-मेख ज़रूर निकालते हो. अरे भाई अब धीरे धीरे शुरू हुआ है. अगली पंच वर्षीय योजना में समान की जाँच का प्रावधान भी हो जायेगा. तरक्की में थोड़ा समय तो लगेगा. थोड़ा सकारात्मक सोचा करो, हमेशा रोते मत रहा करो. हाँ नहीं तो.”
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कुछ ही दिनों पहले अफ़लातून जी से फोन पर बात हुयी थी और उनके समाजवादी लेखों का असर था कि मैं ने तुरंत ही एक सकारात्मक बात कह दी,” राजेश बाबू, सेक्योरिटी के विषय में तो कुछ ना कह पाऊंगा, हाँ लेकिन एक बात अवश्य है कि बढ़ते हुये आतंकवाद के चलते, पूंजीवाद के पथ पर अग्रसर भारत में समाजवाद अवश्य आने लगा है.”
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राजेश बाबू चौंक कर बोले,” आतंकवाद? समाजवाद? तुम कहना क्या चाहते हो? आतंकवादी समाजवादी होते हैं या समाजवादी आतंकवादी होते हैं?”
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राजेश बाबू के इस निष्कर्ष पर मैं भी चौंकते हुये बोला,” अरे नहीं राजेश बाबू. मेरे कहने का अभिप्राय यह तो कदापि भी नहीं था कि समाजवादी ही आतंकवादी या आतंकवादी ही समाजवादी होते हैं.”
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”फिर....?” राजेश बाबू ने भंवें चढ़ाते हुये पूछा.
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मैं ने कहा,” देखिये राजेश बाबू, जब भारत समाजवाद की बातें करता था उस समय वह दिल से पूंजीवादी था. मतलब यह कि वह केवल पूंजीवादियों के हित की सोचता था. यह सब सुरक्षा वगैरह मात्र हवाई यात्रियों को ही उपलब्ध थी. हवाई अड्डों पर सुरक्षा के कड़े प्रबंध थे. हर यात्री की तलाशी ली जाती थी ताकि अमीर और पूंजीवादी लोगों का जीवन सुरक्षित रहे. क्या आपने उस समय रेलवे स्टेशन पर सुरक्षा प्रबंध देखे थे? क्या तब की समाजवादी दृष्टिकोंण रखने वाली भारत सरकार ने आम आदमी की सुरक्षा की बात सोची? यह सब तो तब शुरू हुआ जब देश में आतंकवाद बढ़ने लगा. यह समाजवाद आतंकवाद की ही देन है. अब देखिये हवाई यात्री हों या ट्रेन यात्री सबको सुरक्षा मिल रही है – सच्चा समाजवाद !”
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राजेश बाबू सहमत होते हुये बोले,” हाँ यार यह तो है!”
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”हुम्म..लेकिन आतंकवाद का असर देखिये, कि अब पूंजीवाद में विश्वास करने वाला भारत आम आदमी की सुरक्षा की बातें सोचता है. रेलवे स्टेशन पर सुरक्षा प्रबंध हैं. सरकार को सबकी चिंता है, सरकार सबके हित और सबकी सुरक्षा के विषय में सोचती है. समाज के बारे में सोचती है यानि कि समाजवादी हो रही है.”
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राजेश बाबू ने लपक कर मुझे गले से लगा लिया. उनकी ऑखों में मैं ने अपने प्रति गर्व के ऑसू देखे. मैं ने सुलगते कोयले में थोड़ी और हवा धौंक दी,” भारत में आये इस समाजवाद के लिये हमें आतंकवाद का बहुत शुक्रिया अदा करना चाहिये. इस समाजवाद को और भी शक्ति मिले इसके लिये हमें अल-कायदा और बिन लादेन की मदद लेनी चाहिये ताकि इस देश में समाजवाद आ सके और इस देश से बिषमतायें और गरीबी सदा के लिये हट सके.”
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राजेश बाबू अपने भर्राये गले से सिर्फ़ इतना ही कह पाये,” सकारात्मक विचार, समाजवादी विचार, भारत माता की जय, भारत माता की जय, गरीबी हटाओ...” और फिर उन्होंने मुझे गले लगाते हुये पूछा,” तुम्हारे महान विचारों के अनुसार इस देश में मैगी नूडल्स की तरह इंस्टेंट समाजवाद कैसे आ सकता है?”
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मैं ने राजेश बाबू को ज्ञान देते हुये कहा,” देखिये आतंकवाद और समाजवाद का गहरा रिश्ता तो मैं आपको समझा ही चुका हूँ. समाजवाद की स्थापना के लिये यह आवश्यक है कि हम किसी आतंकवादी गुट का समर्थन प्राप्त करें जैसे कि अल कायदा और उनके प्रमुख बिन लादेन को देश का नेतृत्व सौंप दें. उनका गुट देश की तमाम पूंजीवादी मिलों, कारखानों पर बम गिरा देगा जिसके कारण पूंजीवादी भी कंगाल हो कर मजदूरी करने लगेंगे. साथ ही वह हवाई अपहरण करेगा जिसके डर से पूंजीवादी भी आम आदमी के साथ ट्रेन में सफ़र करेंगे. समाजवाद आयेगा राजेश बाबू समाजवाद ! !”
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राजेश बाबू बहुत इंप्रेस हुये और बोले,” विचार तो बहुत सकारात्मक और समाजवादी हैं. लेकिन भाई इससे को गरीबी, लूटपाट, अराजकता, भ्रष्टाचार और तमाम सामाजिक कुरीतियाँ पनपेंगी.”
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मैं ने शांत मन से कहा,” लेकिन समाजवाद तो आयेगा राजेश बाबू! और यह भ्रष्टाचार गरीबी वगैरह तो समाजवाद के ही पर्यायवाची हैं. यही तो पूरे माने में एक सफल समाजवाद के चिह्न हैं. अगर पूर्ण समाजवाद चाहिये तो इनको भी अपनाना पड़ेगा.”
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राजेश बाबू धन्य हो उठे. छूटती हुयी गाड़ी को लपक कर पकड़ते हुये बोले,” मैं दिल्ली में मैडम से मिलूंगा और उनको तुम्हारी इस विचारधार से अवश्य अवगत करवाऊंगा. हो सकता है कि अगले चुनाव में तुमको टिकट मिल जाये और यह भी हो सकता है कि वो तुमको संयुक्त राष्ट्र में इस विचारधारा हो रखने के लिये भेज दें.”
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राजेश बाबू ने वापस आकर बताया कि मैडम को मेरे महान विचार बिलकुल “वाहयात” लगे. इस देश में यही प्राब्लम है, प्रतिभा की कोई कद्र ही नहीं है. जब ताजमहल पहचानने के लिये हमें विदेशी चाहिये होते हैं तो बाकी का क्या कहें. मैं भी सोचता हूँ कि अब अपने विचारों को किसी विदेशी से इंडोर्स करवा लूं .
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एक मिनट मेरा फोन बज रहा है. .
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“हलो...”
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”हलो, अनुराग श्रीवस्तव?”
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”जी, मैं बोल रहा हूं.”
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”मैं परवेज़ मुशर्रफ़ के घर से ओसामा बिन लादेन बोल रहा हूँ. हमारी पाकिस्तानी सरकार आपको निशान-ए-पाकिस्तान से नवाज़ना चाहती है....”

4 टिप्‍पणियां:

ePandit ने कहा…

वा जी वा, आपका फार्मूला तो काम का लग रहा है। आगे बताना कि ओसामा के साथ क्या डीलिंग हुई।

अफ़लातून ने कहा…

अनामदास विलायत में पत्रकार हैं।उनके जरिए पता चला है कि आज-कल पाकिस्तान में यह नारा बहुत लोकप्रिय हुआ है - 'अमरीका ने कुत्ता पाला, वर्दी वाला ,वर्दी वाला'।मूर की फ़ेरेह्न्हाइट ९/११ तो बुश खानदान से लादेन परिवार के नाते के बारे में काफ़ी रोचक प्रकाश डालती है।
रोचक पोस्ट के लिए बधाई।

Udan Tashtari ने कहा…

सामने होते तो राजेश बाबू की तरह हम भी लपक कर गले लगा लेते, गर्व के दो आँसू टपका देते. मगर इतनी दूर से तो अब यही कह सकते है, वाह!! बहुत खूब लिखे हो-'निशान-ए-पाकिस्तान' जी.

rajeshgupta ने कहा…

beta, milte raho aur labh prapt karte raho.
rajesh babu