पूरा कुनबा मुन्ने के दाखिले की तैयारी में लग गया। हमने टाई बांधना सीखा, थोड़ी बहुत अंग्रेजी बोलनी भी सीखी और बीबीजी के दबाव में आ कर गुटखा खाना भी छोड़ दिया। फिर एक दिन हज़रतगंज गये, बाटा की भूरी वाली चप्पल की जगह एक जोड़ी जूता लेने, जब जूतों के भाव देखे तो बिना जूता खरीदे हुये ही घर लौट आये।
घर में घुसते ही बीबीजी ने पूछा,” जूता लाये?”
“अरे! ढ़ाई-ढ़ाई हज़ार रुपये के जूते मिल रहे थे, मेरी हिम्मत नहीं पड़ी! बिना लिये ही चला आया। ढ़ाई हज़ार में तो महीने भर की फल और सब्जी आ जाये और पैसे बच भी जायें, मुझे नहीं खरीदना जूता-वूता, हाँ नहीं तो!“
“तुम भी ना॰॰॰! अरे फल और सब्जी को मारो गोली, जूते ले कर आओ। महीने भर फल और सब्जी की जगह जूते खा लेना। चलो, अभी के अभी जाओ और जूते लेकर आओ।“
मन मार कर हम फिर निकल पड़े अपने मिशन पर। निकलते ही हमारे पड़ोसी राजेश बाबू मिल गये और भंवे उचकाते हुये पूछे,” कहाँ चले भैया?”
“अरे क्या बतायें, जूते लेने जा रहा हूं। ढ़ाई-ढ़ाई हज़ार रुपये के जूते मिल रहे हैं, मेरी तो हिम्मत ही नहीं होती है।“
“सस्ते वाले चाहिये क्या?”
“हाँ, एक ही दिन तो पहनना है। इधर मुन्ने के दाखिले के लिये इस्कूल में इन्टरव्यू खत्म, उधर हमने जूते लपेटे और ऊपर टाड़ पर रखे – फिर तो सीधे मुन्ने की शादी पर ही निकलेंगे !”
“तो फिर बैठो इस्कूटर पर, हम लिवाये लाते हैं।“
राजेश बाबू हमारे बहुत अच्छे पड़ोसी हैं। इस्कूटर पर बैठा कर सीधा लालबाग ले गये। वहाँ की जूता मार्किट देख कर तो भैया, यह समझो कि हम तो बौरा गये – लालबाग के मैदान में तो जूतों का पूरा मेला लगा था। राजेश बाबू अपनी रेगुलर दुकान में ले गये। इतना अच्छा कलेक्सन देख कर हम भी बहुत सिलेक्टिव और चूजी हो गये। दुकानदार से बोल दिया कि भैया हम बेस्टेस्ट क्वालटी का जूता दिखाओ – मतलब कि “नाइकी” वगैरह्।“
दुकानदार ने झटपट डिब्बा खोला और “नाइकी” का जूता पेश किया। ऐसा सुंदर कि देखते ही आँखों को भा गया। उसमें एक पतली सी, सुंदर सी गोल्डन चेन लगी थी – क्या खूबसूरत जूता – बिलकुल दुबई इश्टाइल का। अंदर सफेद रंग से कंपनी का नाम भी लिखा था “NIKI”.
नाम की स्पेलिंग देख कर हमें थोड़ा शक हुआ, सो हमने बिना डरे दुकानदार से पूछ लिया, “भैया, असली “नाइकी” है ना? स्पेलिंग गड़बड़ लग रही है।“
दुकानदार ने हमें कुछ ऐसे देखा कि हमसे बड़ा मूढ़ मानो इस दुनिया में ढ़ूंढ़े से भी ना मिलेगा और फिर बोला,” साहब, हमारे यहाँ चार सौ बीसी वाला काम नहीं होता है। इस मंडी में पचास से ऊपर दुकानें हैं, लेकिन हम अकेले ही है जो ईमानदारी से धंधा कर रहे हैं – बाकी तो सब लूट खसोट कर रहे हैं, साहब। गल्ले पर हाथ रख कर कह रहा हूं, नकली जूता ना कभी बेंचा है ना बेचूंगा, भीख मांग लूंगा पर ग्राहक से दगाबाज़ी॰॰॰॰कभी नहीं, ऊपर वाले को क्या मुंह दिखाऊगा? और आप तो राजेश बाबू के साथ आये हैं, हमारे छोटे भाई जैसे हैं – आपसे गलत बात – ना ना।“ अपनी बात की पुष्टि कराने के लिये वह राजेश बाबू की ओर देखते हुये बोला,” क्यों राजेश बाबू, गलत कह रहा हूं क्या? आप इतने साल से हमारी दुकान पर आ रहे हैं, कभी शिकायत का मौका दिया है आपको?” राजेश बाबू ने सिर हिला कर उसकी ईमानदारी को सत्यापित कर दिया। लेकिन मेरी शंका अभी भी दूर नहीं हुयी थी सो मैं ने दबी आवाज़ में पूछा,” अरे भई वो तो ठीक है लेकिन “नाइकी” की स्पेलिंग॰॰॰?”
दुकानदार ने मेरी शंका का निवारण किया,” देखिये भाई साहब, मैं केवल एक्सपोर्ट रिजेक्ट माल बेंचता हूं। यह पूरा लाट फारेन से इसी लिये वापस आ गया था क्योंकि इसमें “नाइकी” की स्पेलिंग N-I-K-E की जगह N-I-K-I छप गयी थी, नहीं तो साहब, आज बिल क्लिंटन या बिल गेट्स इस जूते को पहन रहे होते। हुआ कुछ यूं कि नाम छापने वाले ब्लाक में “E” की पड़ी डंडियां टूट गयीं तो जो “E” था वह “I” बन गया, यह प्राब्लम सारे जूते छप जाने के बाद पता चली और पूरे का पूरा कन्साइनमेन्ट वापस आ गया। बोहनी के टाइम आपसे झूठ नहीं बोलूंगा – आप बिलकुल इत्मिनान रखिये।“
दुकानदार की सामान्य जानकारी, सत्यता और ईमानदारी से हम बहुत प्रभावित हुये। पूछा,” कित्ते का दोगे?”
“आप तो सब जानते हैं, हज़रतगंज में यही जूता ढ़ाई हज़ार का मिल रहा है, चलिये आप पंद्रह सौ दे दीजिये।“
हम तो तुरंतै पैसा निकाल कर दुकानदार की हथेली पर रखने वाले थे, अरे कोई बावला 2500 का सामान 1500 में बेंचे तो ज्यादा सोच-विचार करके सौदा हाथ से गंवाना नहीं चाहिये। कहीं अगले का मूड बदल गया तो नुकसान तो अपना ही होगा ना। लेकिन राजेश बाबू ने भी जबरदस्त मोल-भाव करके “नाइकी” का वह जूता जो शायद बिल गेट्स या बिल क्लिंटन के लिये बना रहा होगा, मुझे 475 रुपये में दिलवा दिया।
इतना सस्ता!! इतना सस्ता तो शायद कानपुर या आगरा में बना हुआ डुप्लीकेट या नकली जूता भी ना मिलता। चलते चलते दुकानदार भी बोला,” राजेश बाबू, आप के चलते आज घाटे में सौदा करना पड़ा।“
गजब राजेश बाबू, गजब!!
घर आये, शान से बीबीजी को जूता दिखाया। वो भी बहुत इंप्रेस!! दाम सुन कर बोलीं कि तुमने तो दुकानदार को लूट ही लिया!!! और फिर बड़ी सही बात बोलीं कि इन जूतों को ऐसे ही डिब्बों में लपेट कर धर दो नहीं तो गंदे हो जाएंगे – इंटरव्यू वाले दिन निकाल कर पहनना - बिलकुल नये और चमाचम। हम पूछ बैठे," क्या सबसे चमकदार जूते पहनने वाले के बच्चे का दाखिला गारंटीड है का?" बिना हमारे सवाल का जवाब दिये बीबीजी ने हमें कस कर घूरा सो आगे बिना कोई सवाल पूछे हुये हमने जूते सहेज कर धर दिये।
दाखिले की बाकी तैयारियाँ भी चलती रहीं, अम्मा और बाऊजी का ‘संसकार’ और ‘आस्था’ चैनल देखना बंद करवाया और उनको ‘GOD’ चैनल देखने के लिये प्रेरित किया। पर ना, अम्मा और बाऊजी मुन्ने के दाखिले में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहे थे। अम्मा तो "GOD" चैनल लगा कर उसके सामने बैठ कर ऊंघती ही रहती थीं और बाऊजी मजे से बैठ कर अखबार पढ़ते रहते। जब मैं कहता 'अम्मा, बाऊजी टी वी देखिये - इंगलिस इंप्रूव होगी।' तो सिर उठा कर थोड़ी देर टीवी देखते और फिर ऊंघने लगते।
बीबीजी रोज सुबह एक झोले में पाँच छ: ईंटें भर कर मुन्ने के कंधों पर लटका कर मुन्ने को 300 मीटर चलवाती थीं, जिससे मुन्ना इस्कूल के भारी बैग लटकाने के लिये अभ्यस्त हो जाये। शाम को मुन्ना जब बदन दर्द, कमर दर्द और पीठ दर्द की शिकायत करता तो अम्मा कड़ुवे तेल में हल्दी, अजवाइन और ना जाने क्या-क्या डाल कर गर्म करतीं और फिर उससे मुन्ने की मालिश कर देतीं।
मुन्ने के लिये अमीनाबाद से 175 रुपये का नया बाबा सूट खरीदा, साथ में ड्रेस से मैचिंग एक जोड़ी मोजा (नायलान का, जिस पर ‘एक्सपोर्ट कवालटी’ का स्टिकर भी लगा था) भी मुफ़्त मिला। हलांकि मुन्ने, मुझे और बीबीजी को हरे रंग वाली आर्मी वाली ड्रेस बहुत पसंद आई थी – जिसमें फुल पैन्ट, कमीज, आर्मी वाली टोपी, बिल्ले-बैज, नकली पिस्तौल वगैरह भी होती है। उसमें मुन्ना स्मार्ट भी बहुत लगता, गोरा है ना इसलिये उस पर कोई भी रंग फबता है, और इंटरव्यू में भी छा जाता लेकिन वह 225 रुपये की थी सो हमने नहीं ली।
मुन्ने की कोचिंग, अम्मा-बाऊजी का इंगलिस इस्पीकिंग, बीबीजी का ‘स्टार वर्ल्ड’, मेरा टाई लगाना और शरीर की दुर्गंध दूर रखने का अभ्यास जोर शोर से चल रहा था। देखते ही देखते दिन कैसे गुज़र गये कि पता ही ना चला और फिर दोनों इस्कूलों ने दाखिले के लिये फार्म बांटने भी शुरू कर दिये।
घर में घुसते ही बीबीजी ने पूछा,” जूता लाये?”
“अरे! ढ़ाई-ढ़ाई हज़ार रुपये के जूते मिल रहे थे, मेरी हिम्मत नहीं पड़ी! बिना लिये ही चला आया। ढ़ाई हज़ार में तो महीने भर की फल और सब्जी आ जाये और पैसे बच भी जायें, मुझे नहीं खरीदना जूता-वूता, हाँ नहीं तो!“
“तुम भी ना॰॰॰! अरे फल और सब्जी को मारो गोली, जूते ले कर आओ। महीने भर फल और सब्जी की जगह जूते खा लेना। चलो, अभी के अभी जाओ और जूते लेकर आओ।“
मन मार कर हम फिर निकल पड़े अपने मिशन पर। निकलते ही हमारे पड़ोसी राजेश बाबू मिल गये और भंवे उचकाते हुये पूछे,” कहाँ चले भैया?”
“अरे क्या बतायें, जूते लेने जा रहा हूं। ढ़ाई-ढ़ाई हज़ार रुपये के जूते मिल रहे हैं, मेरी तो हिम्मत ही नहीं होती है।“
“सस्ते वाले चाहिये क्या?”
“हाँ, एक ही दिन तो पहनना है। इधर मुन्ने के दाखिले के लिये इस्कूल में इन्टरव्यू खत्म, उधर हमने जूते लपेटे और ऊपर टाड़ पर रखे – फिर तो सीधे मुन्ने की शादी पर ही निकलेंगे !”
“तो फिर बैठो इस्कूटर पर, हम लिवाये लाते हैं।“
राजेश बाबू हमारे बहुत अच्छे पड़ोसी हैं। इस्कूटर पर बैठा कर सीधा लालबाग ले गये। वहाँ की जूता मार्किट देख कर तो भैया, यह समझो कि हम तो बौरा गये – लालबाग के मैदान में तो जूतों का पूरा मेला लगा था। राजेश बाबू अपनी रेगुलर दुकान में ले गये। इतना अच्छा कलेक्सन देख कर हम भी बहुत सिलेक्टिव और चूजी हो गये। दुकानदार से बोल दिया कि भैया हम बेस्टेस्ट क्वालटी का जूता दिखाओ – मतलब कि “नाइकी” वगैरह्।“
दुकानदार ने झटपट डिब्बा खोला और “नाइकी” का जूता पेश किया। ऐसा सुंदर कि देखते ही आँखों को भा गया। उसमें एक पतली सी, सुंदर सी गोल्डन चेन लगी थी – क्या खूबसूरत जूता – बिलकुल दुबई इश्टाइल का। अंदर सफेद रंग से कंपनी का नाम भी लिखा था “NIKI”.
नाम की स्पेलिंग देख कर हमें थोड़ा शक हुआ, सो हमने बिना डरे दुकानदार से पूछ लिया, “भैया, असली “नाइकी” है ना? स्पेलिंग गड़बड़ लग रही है।“
दुकानदार ने हमें कुछ ऐसे देखा कि हमसे बड़ा मूढ़ मानो इस दुनिया में ढ़ूंढ़े से भी ना मिलेगा और फिर बोला,” साहब, हमारे यहाँ चार सौ बीसी वाला काम नहीं होता है। इस मंडी में पचास से ऊपर दुकानें हैं, लेकिन हम अकेले ही है जो ईमानदारी से धंधा कर रहे हैं – बाकी तो सब लूट खसोट कर रहे हैं, साहब। गल्ले पर हाथ रख कर कह रहा हूं, नकली जूता ना कभी बेंचा है ना बेचूंगा, भीख मांग लूंगा पर ग्राहक से दगाबाज़ी॰॰॰॰कभी नहीं, ऊपर वाले को क्या मुंह दिखाऊगा? और आप तो राजेश बाबू के साथ आये हैं, हमारे छोटे भाई जैसे हैं – आपसे गलत बात – ना ना।“ अपनी बात की पुष्टि कराने के लिये वह राजेश बाबू की ओर देखते हुये बोला,” क्यों राजेश बाबू, गलत कह रहा हूं क्या? आप इतने साल से हमारी दुकान पर आ रहे हैं, कभी शिकायत का मौका दिया है आपको?” राजेश बाबू ने सिर हिला कर उसकी ईमानदारी को सत्यापित कर दिया। लेकिन मेरी शंका अभी भी दूर नहीं हुयी थी सो मैं ने दबी आवाज़ में पूछा,” अरे भई वो तो ठीक है लेकिन “नाइकी” की स्पेलिंग॰॰॰?”
दुकानदार ने मेरी शंका का निवारण किया,” देखिये भाई साहब, मैं केवल एक्सपोर्ट रिजेक्ट माल बेंचता हूं। यह पूरा लाट फारेन से इसी लिये वापस आ गया था क्योंकि इसमें “नाइकी” की स्पेलिंग N-I-K-E की जगह N-I-K-I छप गयी थी, नहीं तो साहब, आज बिल क्लिंटन या बिल गेट्स इस जूते को पहन रहे होते। हुआ कुछ यूं कि नाम छापने वाले ब्लाक में “E” की पड़ी डंडियां टूट गयीं तो जो “E” था वह “I” बन गया, यह प्राब्लम सारे जूते छप जाने के बाद पता चली और पूरे का पूरा कन्साइनमेन्ट वापस आ गया। बोहनी के टाइम आपसे झूठ नहीं बोलूंगा – आप बिलकुल इत्मिनान रखिये।“
दुकानदार की सामान्य जानकारी, सत्यता और ईमानदारी से हम बहुत प्रभावित हुये। पूछा,” कित्ते का दोगे?”
“आप तो सब जानते हैं, हज़रतगंज में यही जूता ढ़ाई हज़ार का मिल रहा है, चलिये आप पंद्रह सौ दे दीजिये।“
हम तो तुरंतै पैसा निकाल कर दुकानदार की हथेली पर रखने वाले थे, अरे कोई बावला 2500 का सामान 1500 में बेंचे तो ज्यादा सोच-विचार करके सौदा हाथ से गंवाना नहीं चाहिये। कहीं अगले का मूड बदल गया तो नुकसान तो अपना ही होगा ना। लेकिन राजेश बाबू ने भी जबरदस्त मोल-भाव करके “नाइकी” का वह जूता जो शायद बिल गेट्स या बिल क्लिंटन के लिये बना रहा होगा, मुझे 475 रुपये में दिलवा दिया।
इतना सस्ता!! इतना सस्ता तो शायद कानपुर या आगरा में बना हुआ डुप्लीकेट या नकली जूता भी ना मिलता। चलते चलते दुकानदार भी बोला,” राजेश बाबू, आप के चलते आज घाटे में सौदा करना पड़ा।“
गजब राजेश बाबू, गजब!!
घर आये, शान से बीबीजी को जूता दिखाया। वो भी बहुत इंप्रेस!! दाम सुन कर बोलीं कि तुमने तो दुकानदार को लूट ही लिया!!! और फिर बड़ी सही बात बोलीं कि इन जूतों को ऐसे ही डिब्बों में लपेट कर धर दो नहीं तो गंदे हो जाएंगे – इंटरव्यू वाले दिन निकाल कर पहनना - बिलकुल नये और चमाचम। हम पूछ बैठे," क्या सबसे चमकदार जूते पहनने वाले के बच्चे का दाखिला गारंटीड है का?" बिना हमारे सवाल का जवाब दिये बीबीजी ने हमें कस कर घूरा सो आगे बिना कोई सवाल पूछे हुये हमने जूते सहेज कर धर दिये।
दाखिले की बाकी तैयारियाँ भी चलती रहीं, अम्मा और बाऊजी का ‘संसकार’ और ‘आस्था’ चैनल देखना बंद करवाया और उनको ‘GOD’ चैनल देखने के लिये प्रेरित किया। पर ना, अम्मा और बाऊजी मुन्ने के दाखिले में ज्यादा रुचि नहीं दिखा रहे थे। अम्मा तो "GOD" चैनल लगा कर उसके सामने बैठ कर ऊंघती ही रहती थीं और बाऊजी मजे से बैठ कर अखबार पढ़ते रहते। जब मैं कहता 'अम्मा, बाऊजी टी वी देखिये - इंगलिस इंप्रूव होगी।' तो सिर उठा कर थोड़ी देर टीवी देखते और फिर ऊंघने लगते।
बीबीजी रोज सुबह एक झोले में पाँच छ: ईंटें भर कर मुन्ने के कंधों पर लटका कर मुन्ने को 300 मीटर चलवाती थीं, जिससे मुन्ना इस्कूल के भारी बैग लटकाने के लिये अभ्यस्त हो जाये। शाम को मुन्ना जब बदन दर्द, कमर दर्द और पीठ दर्द की शिकायत करता तो अम्मा कड़ुवे तेल में हल्दी, अजवाइन और ना जाने क्या-क्या डाल कर गर्म करतीं और फिर उससे मुन्ने की मालिश कर देतीं।
मुन्ने के लिये अमीनाबाद से 175 रुपये का नया बाबा सूट खरीदा, साथ में ड्रेस से मैचिंग एक जोड़ी मोजा (नायलान का, जिस पर ‘एक्सपोर्ट कवालटी’ का स्टिकर भी लगा था) भी मुफ़्त मिला। हलांकि मुन्ने, मुझे और बीबीजी को हरे रंग वाली आर्मी वाली ड्रेस बहुत पसंद आई थी – जिसमें फुल पैन्ट, कमीज, आर्मी वाली टोपी, बिल्ले-बैज, नकली पिस्तौल वगैरह भी होती है। उसमें मुन्ना स्मार्ट भी बहुत लगता, गोरा है ना इसलिये उस पर कोई भी रंग फबता है, और इंटरव्यू में भी छा जाता लेकिन वह 225 रुपये की थी सो हमने नहीं ली।
मुन्ने की कोचिंग, अम्मा-बाऊजी का इंगलिस इस्पीकिंग, बीबीजी का ‘स्टार वर्ल्ड’, मेरा टाई लगाना और शरीर की दुर्गंध दूर रखने का अभ्यास जोर शोर से चल रहा था। देखते ही देखते दिन कैसे गुज़र गये कि पता ही ना चला और फिर दोनों इस्कूलों ने दाखिले के लिये फार्म बांटने भी शुरू कर दिये।
( क्रमश: )
13 टिप्पणियां:
niki के जुते?!!
कमाल की सच्ची कल्पना. ऐसे किस्से रोजमर्रा की जिन्दगी में अक्सर होते है.मजेदार.
खुब.
यह तो जी टीवी के सिरियल टाईप चल रहा है ---अनंत काल तक चलेगा लगता, अगली बार मुन्ने के पैदा होने के पहले क्या क्या सपने देखे थे, उसका फ्लैश बैक दिखाना, तब फिर वापस…ईस्कूल एडमिशन पर या बीच में अपने स्कूल का जमाना भी दिखा सकते हो. :)
बहुत मजेदार किस्सा चल रहा है, सच्चाई के बहुत करीब और व्यंग से भरपूर। जारी रहे।
कसम से एकता कपूर की सास बहु से बेहतर है आपका सीरियल :)
Yah serial pahali baar padha... sahi hai... apne gaanv apane deh kanpur ki yaad aa gayi... Pared par kiye gaye bhaav taav...GODREJ ki jagah GADREJ ki ilmariyaan...VIMAL ka bhai BIMAL..aur haan ab ye apka NIKI..sahi hai miyaan.
वाह!! कडवा लेकिन सब एकदम सच! आम जिन्दगी के बिल्कुल करीब!
उतार डाला सच को…पढ़कर मजा आया मैंने पहली बार इसे पढ़ा है आशा है कुछ नये मोड़ आयेंगे…
बेहतरीन लेख! बधाई! आगे के लिये इंतजार है!
उत्तर प्रदेश के अंग्रेजी स्कूलो मे दाखिले के समय नौटकी का अच्छा चित्र खीचां आपने। आगे की कडी का बेसब्री से इन्तजार रहेगा।
महीने भर फल और सब्जी की जगह जूते खा लेना। चलो, अभी के अभी जाओ और जूते लेकर आओ।“
हमे इंतजार है अगली किश्त का, यह पता करने कि आपको और क्या क्या खाना पडा !
वाह जी मजा आ गया शॉपिंग का किस्सा सुन कर। वैसे हमने सच्ची में जिन्दगी में आठ सौ से महंगे जूते नहीं पहने।
@ उडन तश्तरी,
और जब सब आइडिए खत्म हो जाएं तो कहानी बीस साल आगे बढ़ा कर पोते के दाखिले के बारे में लिखना शुरु कर देना।
बहुत मजा आ रहा है, अगली कड़ियों का बेसब्री से इंतजार है।
NIKI की ही तरह RAY MANDS (Raymonds) के कपड़े हमने भी खरीदे हैं कभी:)
अतिरंजित सच उस विराट सत्य की ओर संकेत करता है जिसे रोज़मर्रा की दुनियादारी के छोटे-छोटे तथ्य रौंद देना चाहते हैं .
Unnda likhte hoo. Eisa lagta hai ki jindagi ki hakikat se samana ek bar fir hoo raha hai.
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