बुधवार, फ़रवरी 28, 2007

नाम गुम जायेगा

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आज सुबह ही अग्रज अतुल की पोस्ट "नामों का चक्कर" पढ़ी. संयोग की बात है कि मैं ने भी आज नामों के चक्कर पर ही एक पोस्ट लिखी है.
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नाम का उच्चारण यदि गलत किया जाये तो लगता है कि शायद नाम कहीं गुम हो गया है. पर अलग अलग देशों में घूमने से शायद इसकी आदत पड़ जाती है. और कभी कभी तो कई लोग खुद ही अपने नाम का गलत उच्चारण 'सजेस्ट' कर देते हैं जिस से अगले को परेशानी ना हो, और उनकी बात आसानी से समझी जाये, इसके चलते कई बार वहां का उच्चारण अपनाने का प्रयास भी किया जाता हैं.
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हलाँकि व्यक्तिगत रूप से मैं इस विचारधारा का हूं कि हमें अपने ही लहज़े से भाषा बोलनी चाहिये, वैसे भी अंग्रेज़ी बोलने का भारतीय लहज़ा मुझे काफी स्पष्ट लगता है, जो भारतीय 'पुट ऑन ऐक्सेंट' के साथ बोलते हैं, उनकी अंग्रेजी समझने में ना ही केवल भारतीयों को बल्कि अंग्रेजी भाषियों को भी थोड़ी दिक्कत ज़रूर होती है.
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सन 1990 में मैं ने ' जग विवेक ' नाम का एक जहाज गुजरात के काण्डला पोर्ट में ज्वाइन किया. जहाज का कार्यक्रम कुछ ऐसा था - काण्डला में माल उतराई (Discharging) के बाद हमें मंगलूर जाना था लौह खनिज की भराई (Iron Ore Loading) के लिये. यह लौह खनिज जापान के फ़ूकूयामा बंदरगाह पर उतार कर हमें कनाडा के वैंक्यूवर बंदरगाह से कोचीन के लिये सल्फर लोड करना था.
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काण्डला पोर्ट को जब हम अपने जहाज के VHF radio (Very High Freequency wireless radio) को बुलाते थे तो अंदाज़ कुछ यूं हुआ करता था," कानड्ला पोर्ट कंट्रोल - कानड्ला पोर्ट कंट्रोल - दिस्स इज़ जग विवेक" (Kandla Port Control this is Jag Vivek).
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मंगलूर पोर्ट में भी अंदाज़ ऐसा ही रहा. मंगलूर से फ़ूकूयामा की ओर चले तो रास्ते में "मलाका स्ट्रेट्स" भी पार करनी थी. मालाका स्ट्रेट विश्व की सबसे व्यस्त ट्रैफिक लेन मानी जाती है. यहां से गुज़रते समय जहाजों को अपनी भौगोलिक स्थिति, दिशा और गति लगातार VTIS (Vessel Traffic Information System) को VHF radio के माध्यम से देते रहना पड़ता है, VTIS लगातार तमाम जहाजों पर नजर बनाये रखता है और आने वाले खतरों से आपको पहले से ही आगाह करता रहता है. VTIS से बात चीत करते समय हमारे जहाज के नौवहन अधिकारियों के बोलने का अंदाज़ थोड़ा सिंगापोरियन हो जाता था कुछ यूं," वी ती आए ए ईस्त - वी ती आए ए ईस्त दिस्स इस्स जा विवेह ओन चानल सिक्सतीन - दू यू रीद - ओवा" (VTIS East - VTIS East this is Jag Vivek on channel sixteen - do you read - over) .
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जापान में भी अंदाज़ कुछ ऐसा ही रहता था, हाँ "Roger", "OK", "Your last received/copied" के स्थान पर जापानी स्टाइल "हई, हई" शुरू हो जाता था.
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लेकिन सबसे बड़ा परिवर्तन आया वैंक्यूवर पंहुंच कर. वैंक्यूवर जाने के लिये एक चैनल से गुज़रना पड़ता है जिसका नाम है "जॉन डी फुका स्ट्रेट्स", इसका प्रवेश संयुक्त राज्य अमेरिका की सीमा में आता है लिहाजा प्रवेश करते समय जहाजों को "सीऐटल" को रिपोर्ट करना पड़ता है. अमरीका का असर हमारे जहाज के अधिकारियों के ऊपर भी दिखना ही था, तो सीऐटल ट्रैफिक को यूं बुलाया गया," सी-अ-ठल ठ्राफ़ि - सी-अ-ठल ठ्राफ़ि दिज़्ज़ इज़्ज़ जेग वीवेख ऑ सिख्सठीन - ढू यू खापी" Seatlle Traffic Seattle - Traffic this is Jag Vivek on sixteen do you copy?)
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इस पर सीऐटल ट्राफिक का जवाब कुछ यूं आया," रीढ़ यू लाउठ अन ख्लिय-अ ऑन सिक्सठीन - वेलखम ठू सीऐठल जैग वाईवेख" (Read you loud and clear on 16, welcome to Seattle, Jag Vivek).
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मुझे बड़ी हंसी आयी बैठे बिठाये हमारा देशी नाम "जग विवेक" विदेशी बन गया "जैग वाईवेक".
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खैर, यह तो गनीमत थी. थोड़ी देर के बाद हमने अपने VHF पर यह सुना," कलईडस - कलईडस डिस इज़ सीऐठल ठ्राफिक, खम इन फ्लीज़". थोड़ी देर बार बुलाये जाने वाले जहाज ने जवाब दिया," यस, सीऐटल ट्राफिक कालीदास रिप्लाइंग".
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लो जी "कालीदास" बन गये "कलईडस". बाद में पता चला कि "तुलसीदास" नाम का जहाज " टलसईडस" कह कर बुलाया जाता था.
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भारत की सबसे बड़ी शिपिंग कम्पनी "भारतीय नौवहन निगम" ने कुछ तेल पोत खरीदे थे जिनका नाम उन्होंने उन शहीदों के नाम पर किया था जिनको परम वीर चक्र मिला था.
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जहाजों के नाम काफी लम्बे हैं जैसे "मोटर टैंकर फ्लांग ऑफिसर निर्मल जीत सिंह सेखॉ परम वीर चक्र". सुना है कि एक बार यह जहाज बहरीन रेडियो को VHF पर बुला रहा था. इतना लम्बा नाम सुन कर बहरीन रेडियो भी कनफ्यूज हो गया और थोड़ी देर बाद बोला,"Only one ship at a time, please." इतना लम्बा नाम सुन कर उसे लगा कि एक नहीं कई जहाज एक साथ बुला रहे हैं!
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नामों की बात से मुझे अपनी बहामा यात्रा याद आयी. बहामा के फ्री पोर्ट में करीब एक महीने रहने का मौका मिला. वहाँ मैं बहामा ऑयल रिफाइनरी में ब्लैक ऑयल ब्लेंडिंग का काम देखता था. वहीं पर भारतीय मूल के दो ट्रिनीडाड निवासियों से दोस्ती भी हो गयी. एक थे रोमा बैनियर और दूसरे रैंड कमरोडी.
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एक बार शाम को खाना खाते हुये रोमा बैनियर ने बताया कि उनके पुरखे फ़ैज़ाबाद नाम की 'किसी' जगह से ट्रिनीडाड आये थे. उन्होंने यह भी खुलासा किया कि उनके नाम का 'अर्थ' है 'राम बनिया'. ऐसे में रैंड कमरोडी कैसे चुप बैठते, बोल उठे कि मेरे पुरखे कलकत्ता से आये थे और कमरोडी दरअसल कमरुद्दीन का अल्प रूप है.
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कई साल पहले मेरा एक जहाज़ इंडोनेशिया जा रहा था. वहाँ के एजेंट से फोन पर काम के सिलसिले में अक्सर बातें होती रहती थीं. जिस कन्या से मेरी बात होती थी उसका नाम था रति. एक बार बातों-बातों में मैं ने रति से पूछा कि क्या आपको मालुम है कि रति कौन थी?
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"नहीं", रति ने सवाल छूटते ही जवाब दिया. मैंने रति को बताया कि भारतीय मिथक के अनुसार प्रेम के देवता कामदेव स्वर्ग के सबसे सुंदर देवता माने जाते हैं और रति कामदेव की पत्नि का नाम है - सबसे सुंदर महिला.
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"वाह कैप्टन वाह! खैर, अगर आप कभी मुझसे मिलेंगे तो आप भारतीय मिथक में विश्वास करना और रति को सबसे सुंदर स्त्री मानना बंद कर देंगे, क्योंकि मैं बिलकुल भी सुंदर नहीं हूं.", हम दोनो खूब हंसे. खैर रति से कभी मिलना नहीं हुआ.
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इंडोनेशिया में ही एक 'युधिष्ठिर' साहब से मुलाकात हुयी, अज्ञानतावश मैंने कह दिया कि 'युधिष्ठिर' एक 'हिन्दू' नाम है. युधिष्ठिर जी को यह बात पसंद नहीं आया उन्होंने मेरी गलती सुधारते हुये बताया," कैप्टन, यह कोई 'हिन्दू' या 'मुसलमान' नाम नहीं है, यह एक इंडोनेशियाई नाम है और मैं धर्म से मुसलमान हूं." मुझे अपने कथन पर बहुत ही ज्यादा शर्मिंदगी हुयी.
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अनुराग नाम थाईलैण्ड में बहुत कॉमन है, मेरी यात्राओं के दौरान जब मैं अपना कार्ड किसी को देता था तो वह एक बार यह जरूर कहता था - आपका नाम एक थाई नाम है. वैसे थाईलैण्ड के हवाई अड्डे का नाम है 'सुवर्णभूमि", और वहाँ मेरे ड्राइवर का नाम था 'नवरत्ना' जिसका अर्थ उसने बताया 'नाईन जेम्स'. .
शायद यही सब किस्से सुन कर शेक्सपियर बोले बैठे हों कि 'नाम में क्या है' या गुलज़ार साहब ने कहा कि ' नाम गुम जायेगा'.

गुरुवार, फ़रवरी 22, 2007

पाँच प्रश्न

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चीनी नव वर्ष की साढ़े चार दिनों की छुट्टियाँ काट कर जब वापस आये तो देखा कि ब्लॉग जगत में महामारी फैली हुयी है. हमें का? हम आराम से किनारे बैठे मजा लूट रहे थे कि प्रत्यक्षा जी ने धप्प से हमारी टांग खींच दी. बोलीं कि तुम भी कुछ बोलो और वह भी धमाकेदार.
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अब भाई पानी के बताशे को चाहे जैसे भी फोड़ो धमाका तो होगा नहीं बस ‘पप्प’ से आवाज़ करके फूट जायेगा.
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तो हम अपनी पप्प-दार बातें लेकर आये हैं, आप सब झेलिये और कोई शिकवा गिला है तो यहां करियेगा.
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पहला ; अपने जीवन की सबसे धमाकेदार ,सनसनीखेज वारदात बतायें ( अगर ऐसा कुछ नहीं हुआ है तो कपोल कल्पना भी चलेगी ,सिर्फ ऐसी कल्पना के अंत में एक स्माईली अनिवार्य )
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धमाकेदार घटना में ‘धमाके’ का होना जरूरी है. तो श्री गणेश करते हैं पहले धमाके से. किसी भी घटना की तारीख मुझे याद नहीं है, हाथ में झोला उठाये ऐसे दर-ब-दर घूमे हैं कि मुझे अपनी किसी भी यात्रा की तारीख ठीक से याद नहीं है. तो, भाई बात है द्वितीय ईराक युद्ध के समय की. मुझे कुवैत में एक जहाज का सर्वे करना था. कुवैत में उस समय अफरा-तफरी मची थी वह इसलिये कि सबको डर था कि सद्दाम रसायनिक या जैविक हथियारों का प्रयोग ना कर बैठें. कुवैत में ऐसी अनिश्चितता के कारण मैं ने जहाज को संयुक्त अरब अमीरात के फ़ुजायरह पोर्ट में ज्वाइन किया और जहाज पर चढ़ कर ही कुवैत पंहुचे. जहाज कुवैत के “मीना-अल-अहमदी” पोर्ट के “नार्थ पियर” पर तेल भर रहा था और मैं जहाज के कुछ कर्मियों के साथ डेक पर सर्वे कर रहा था कि अचानक एक जोरदार धमाका हुआ! हमने सिर घुमा कर देखा तो हमारे जहाज से करीब 700 या 800 मीटर की दूरी पर पानी का जोरदार उफ़ान उठता दिखा.
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हम सब की तो घिघ्घी बंध गयी. रात को टीवी पर पता चला कि सद्दाम द्वारा छोड़ी गयी चार मिसाइलों मे से एक हमारे ऊपर गिरती गिरती रह गयी!
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वर्ना इस समय यह चिठ्ठा देवलोक से लिखा जा रहा होता.
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एक और धमाका याद आ रहा है. एक दूसरे जहाज के सर्वे के लिये “मीना-अल-बक्र” यानि ईराक के “बसरा ऑयल टर्मिनल” पर गया था. शाम को करीब सात बजे मैं ड्यूटी ऑफिसर से गप्पें मार रहा था कि अचानक समुद्र से आग का गोला उठता दिखाई दिया. हमारे जहाज से कुछ दो-एक मील दूर. हमने दूरबीन ऑख पर चढ़ा ली और देख ही रहे थे कि आग का एक और गोला उठता दिखा. बाद में पता चला कि बसरा ऑयल टर्मिनल पर आत्मघाती हमला हुआ था. << जब अभी हम आमने सामने मिलेंगे तो आपको उन धमाकों की और बम के टुकड़ों की वो फोटुयें दिखाऊंगा जो हमारे जहाज पर गिरे थे, अपलोड नहीं कर सकता >>
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बच गये भैया!!
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यकीन मानिये इन सब धमाकों से बिलकुल भी डर नहीं लगा. इसके बाद भी मैं कई बार बसरा गया और कई सर्वे किये. डर लगा था एक समुद्री यात्रा में.
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दक्षिण अफ्रीका के डरबन पोर्ट में तेल डिस्चार्ज करके हम केप टाउन जा रहे थे. डरबन से निकलते ही पता चल गया कि आगे का मौसम गर्मा-गरम होगा. केप ऑफ गुड होप तक पहुंचते पहुंचते समुद्र देवता ने जोर जोर से फुंहारें मारनी शुरू कर दीं. ऊंची ऊंची समुद्री लहरें करीब 15 – 20 फीट की. हमारा जहाज दोनो तरफ 30 से 35 अंश की रोलिंग करता हुआ जस तस खिंच रहा था. ऊपर वाले ने छप्पर और फाड़ा और ऐसे मौसम में हमारे जहाज का इंजन भी बंद पड़ गया.
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लो जी!! अब हमारा हिलना डुलना और भी बढ गया, पानी डेक के ऊपर से बहने लगा. और हम तेजी से जमीन की ओर ड्रिफ़्ट करने लगे. हमने सोचा कि भैया अब किसी चट्टान से टकरायेंगे और डूब डाब जायेंगे. ना दो गज़ कफ़न नसीब होगा और ना चिता की लकड़ी.
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धीरे से सैटलाइट फोन से घर का नम्बर डायल किया, बीबीजी ने फोन उठाया और कहा,”हेलो!” थोड़ी देर हम फोन पकड़े रहे और दो तीन बार बीबीजी का हेलो सुना, पीछे से बच्चों के खेलने की आवाज़ें भी आ रही थीं. घर का पूरा दृश्य आंखों के सामने घूम गयी. कुछ भी बोलने का साहस नहीं जुटा पाया, होंठ सिल गये और जबान तालू से चिपकी रह गयी. बिना कुछ बोले ही फोन काट दिया. एक ही पल में पूरा जीवन आँखों के सामने एक फिल्म की तरह घूम गया -यार-दोस्त-शादी-मुण्डन-भाई-बहन-हंसी-आंसू.....
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अब ऐसे में उन्हें क्या परेशान करते.
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किस्मत कहिये या यमराज का रास्ता भूल जाना, इंजन फिर से चल पड़ा और हम लहरों से लड़ते हुये फिर चल पड़े केप टाउन की ओर.
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उस दिन सच में डर लगा था.
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बिना धमाके की आवाज़ ने बहुत कुछ बताया. उस दिन मुझे लगा कि थोड़ा सा जो समय है जिंदगी और मौत के बीच में उसमें मैं क्या करना चाहूंगा और अगर हर दिन जीवन का आखिरी हो तो कैसे जीना चाहूंगा. लड़ कर, झगड़ा कर के, गालियाँ बक कर या फिर खुश रह कर – हर फिक्र को धुंये में उड़ाता हुआ.....उस दिन बीबीजी की ‘हलो’ की मिठास आज तक मेरे कानों में धीरे- धीरे घुलती रहती है और हर लम्हा मुझे जीवन का गीत सुनाती रहती है.
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मौत की एक हलकी सी खनक भी जीवन का संगीत बदल कर रख देती है. इस घटना को मैं अपने लिये ईश्वर का आशीर्वाद मानता हूं.
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अंत में कोई स्माइली नहीं है, जब उन वाकयों की बात कर रहा हूं जब जिंदगी हाथ से फिसलती हुयी दिखी थी इसमें स्माइली कैसे लगा दूं?
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दूसरा ; चिट्ठा जगत में भाईचारा , बहनापा सच है या माया है ?
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चिठ्ठा जगत में माया कहाँ? माया तो बस एक ही है ‘बहन मायावती’ बाकी तो सब सत्य है. हाँ, जिस दिन उन्होंने चिठ्ठा लिखना शुरू कर दिया उस दिन भाईचारा तो शायद बचा रह जाये लेकिन सारे का सारा बहनापा और सत्य वही ले उड़ेंगी.
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यहाँ स्माइली लगाता हूं – ये लो भाई :)
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तीसरा ; किसी एक चिट्ठाकार से उसकी कौन सी अंतरंग बात जानना चाहेंगे ?
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वैसे यहां पर पांच चिठ्ठा कारों के नाम देने का मन कर रहा है. लेकिन छोड़िये, खुला सवाल सभी के लिये – आपको डिनर डेट का प्रस्ताव मिला है क) महिला चिठ्ठाकार हैं तो हृतिक (चलिये ब्रैट पिट भी लगा देते हैं) के साथ और ख) पुरुष चिठ्ठाकार हैं तो ऐशवर्या (या ऐंजोलिना जोली) के साथ. मसला यह है कि ठीक उसी दिन और उसी समय के लिये आपके पास एक और निमंत्रण है पाकिस्तान में आये एक भूकंप में मृत लोगों के परिवारजनों हेतु लिये चंदा जमा करने के लिये आयोजित कार्यक्रम में कविता/गीत/लेख प्रस्तुत करने का.
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सच बताइयेगा, आप कहाँ जायेंगे?
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चौथा ; ईश्वर को हाज़िर नाज़िर जान कर बतायें (गीता/कुरान पर भी हाथ रख कर बता सकते हैं ) टिप्पणी का आपके जीवन में क्या और कितना महत्त्व
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बहुत महत्व है! मेरे लिये तो प्रसाद के समान हैं. वैसे इस पर भी निर्भर है कि टिप्पणी का स्वरूप क्या है. मसलन कोई युवती मुझे देख कर टिप्पणी करे ‘हाय हैण्डसम, आय लाइक योर साल्ट ऍण्ड पेपर हेयर्स, हाऊ अबाउट डिनर टुनाइट – जस्ट यू ऐंड मी...’ भई वाह टिप्पणी हो तो ऐसी.
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लेकिन मान लीजिये युवती की टिप्पणी यूं हुयी,” हेलो अनुराग अंकल, आंटी इज़ ऐट अवर प्लेस, वुड कम बैक बाई नाइन, शी सेड टु कीप द डिनर रेडी.” हो गया ना बंटाधार!! पूरा मूड ऑफ हो गया.
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तो साहिबान अगर टिप्पणी का प्रारूप पहली वाली जैसा है तो बेशक मेरे ब्लॉग पर डालिये और अगर दूसरी वाली जैसा है तो अपने ब्लॉग पर पोस्ट बना कर छाप दीजिये – हाँ नहीं तो!!
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पाँचवा ;चिट्ठा लिखना सिर्फ छपास पीडा शांत करना है क्या ? आप अपने सुख के लिये लिखते हैं कि दूसरों के (दुख के लिये ;-)
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छपास? अरे कौन बावला हुआ है कि मेरा लिखा छाप कर पाठकों द्वारा सड़े अण्डों और टमाटरों की बारिश झेलेगा? छपास पीड़ा तो तब होगी ना जब कुछ छपने लायक लिखेंगे.
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हम दो सूत्रीय कार्यक्रम के तहत लिखते हैं – पहला अपने सुख के लिये और दूसरा अगले को मानसिक यातना देने के लिये. लेकिन लगता है लोग मेरे पकाऊ ब्लॉग की पोस्ट से लोग इम्यून हो गये हैं. यातना के नये हथकंडे अपनाने पड़ेंगे. जल्द ही एकता कपूर की शरण में जाता हूं ताकि पकाऊ उस्ताद बन सकूं. वैसे इस दिशा में सोचते हुये गत सप्ताह मैं ने “सलाम-ए-इश्क” देख डाली यकीन मानिये बहुत सारे पकाऊ हथियार जमा हो गये हैं.

मंगलवार, फ़रवरी 13, 2007

अम्बे-से-डर

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अपनी पिछली लखनऊ यात्रा के दौरान, मैं अपने बचपन के मित्र राज से मिलने उसके घर गया. राज और मैं बचपन से ही एक साथ, एक ही स्कूल में पढे हैं. मुझे देख कर बहुत खुश हुआ लेकिन थोड़ी ही देर साथ बैठ कर बोला.” गुरू, अब तुम यहां से खिसको, मुझे ज़रूरी काम निपटाने हैं.”
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राज एक स्थानीय समाचार पत्र में संवाददाता है. उसे कोई नई ‘कहानी’ मिली थी जिसे वह जल्द से जल्द खत्म करके अखबार में देना चाहता था. मैं ने पूछा,” अरे, ऐसी कौन सी कहानी मिल गयी है, जिसके चलते तुम मुझे चलता कर रहे हो? बचपन के यार हैं, इतने साल बाद मिले हैं और तुम हो कि मुझे भगा रहे हो!”
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राज बोला, ”एक अंदर की खबर मिली है. खैर ऐसी कोई खबर नहीं है जिसके छपने से राजनैतिक भूचाल आ जायेगा. पर कुछ ‘एक्सक्लूसिव टाइप’ का मामला है.”
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मेरी जिज्ञासा बढ़ी,”क्या मसला है, हमें भी बताओ भैया.”
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राज: हमारी अपनी ‘भारत मोटर्स’ ने अपना पुराना कछुआ छाप मॉडल बंद करके, एक नयी कार बनाने की सोची है. आज कार निर्माता लखनऊ आये थे मैं ने उनसे मुलाकात करी और इस नयी कार के बारे में काफी जानकारी उगलवा ली. अभी तक यह बात किसी को मालूम नहीं है, अगर मैं इसका खुलासा कर दूंगा तो फेमस हो जाऊंगा.....!
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मैं: मुझे विश्वास नहीं होता!
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राज: किस बात पर?
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मैं: पहली बात तो यह ‘भारत मोटर्स’ अपनी कछुआ कार बंद कर ही नहीं सकती – भैये, अगर कछुआ कार बंद हो गयी तो हमारे तमाम नेता गण क्या पैदल चलेंगे? और तमाम सरकारी बाबू ऑफिस, उनकी घरवालियाँ शॉपिंग और बच्चे सरकारी गाड़ी के बिना स्कूल कैसे जायेंगे? दूसरी बात यह है कि ‘भारत मोटर्स’ जैसी कम्पनी कभी भी ‘नयी’ कार बनाने की सोच ही नहीं सकती – उनकी ऐसी मानसिकता ही नहीं है.
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राज: अब तुम मानो या ना मानो, लेकिन ऐसा हो रहा है. तुमने जो तमाम प्रश्न उठाये हैं, यह प्रश्न निर्माताओं के मन में भी उठे थे इसीलिये उन्होंने अपने नये मॉडल का विकास इन सब बातों को ध्यान में रखते हुये किया है.
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मैं: मसलन?
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राज: तुम तो जानते ही हो, भारत मोटर्स ही वह कम्पनी है जिसने हमारे देश, नेताओं और बाबुओं को चार पहिये दिये. हमारे देश के ‘कार’ के इतिहास में इनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा. इनकी दूरदर्शिता के चलते इनकी कछुआ कार को एक विशेष ‘भारतीय’ छवि मिली है. कछुआ कार प्रतीक है भारतीय नेताशाही और बाबूराज का. कछुआ कार देखते ही आँखों के सामने नेताओं और बाबुओं की छवि घूम जाती है.
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मैं: हां, और टैक्सी वालों की भी..
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राज: जो भी है. भारत मोटर्स अब कुछ बदलाव लाना चाहती है. भारतीय परिस्थितियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुये ही वह एक ‘कम्प्लीट इंडियन कार’ बना रहे हैं.
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मैं: अय्यो! सच्ची !?
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राज: हाँ, और इस नयी कार का नाम है ‘अम्बे-से-डर’.
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मैं: आंयें...! यार सुना सुनाया नाम लग रहा है..
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राज: उनके पिछले मॉडल के नाम से थोड़ा मेल खाता है, लेकिन ध्यान दो भाई, यह शत-प्रतिशत भारतीय नाम है – कोई अंग्रेजी नाम नहीं. भारतीय कार – भारतीय नाम.
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मैं: यह नाम रखने की कोई खास वजह?
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राज: और नहीं तो क्या? बिना वजह ऐसा नाम रख देंगे! देखो, भारत मोटर्स का यह मानना है कि उनकी कार मुख्यत: तीन प्रकार के लोग प्रयोग करते हैं, नेता, बाबू और टैक्सी वाले. नेता अर्थात भूतपूर्व माफिया या डॉन टाइप का आदमी. अगर ऐसा आदमी कार में बैठ कर आ रहा है तो तुम्हारे मन में किस प्रकार का भाव आयेगा?
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मैं: भय का, डर का...
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राज: इसी लिये कार का नाम ‘अम्बे-से-डर’ अगर बाबू अंदर बैठा है तो क्या विचार आयेगा?
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मैं: डर का ही भाव आयेगा, राज बाबू. यह डर कि उनका सिरचढ़ा ड्राइवर जो खुद को खुदा से कम नहीं समझता है पहले तो खुद ही हम ठोंकेगा फिर जुतियाएगा और फिर छोड़ने के लिये सुविधा शुल्क की मांग भी करेगा.
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राज: बिलकुल ठीक, इसीलिये ‘अम्बे-से-डर’. और टैक्सी वाले...
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मैं: ... बताने की ज़रूरत नहीं है, सड़क पर टैक्सी आती देख कर हम ऐसे ही डर के मारे पटरी पर उतर जाते हैं. समझ गये ‘अम्बे-से-डर’, नाम तो वाकई बहुत ‘सूट’ करता है.
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राज: दरअसल, कार निर्माता ने एक बहुत बड़ी टीम को सर्वेक्षण करने हेतु लखनऊ भेजा था. इस सर्वेक्षण में यह पता किया गया कि उनके आगामी मॉडल में क्या परिवर्तन किये जायें.
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मैं: अरे वाह, लेकिन भाई लखनऊ क्यों?
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राज: उनका यह मानना है कि वह worst operating conditions में चल रही कारों का सर्वेक्षण करेंगे तो बेहतर जानकारी प्राप्त होगी. उनका सर्वेक्षण पूरा हो गया है, जिसका खुलासा मैं कल अपने अखबार में करने जा रहा हूं.
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मैं: अरे यार, हमें भी बताओ......!
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राज: कार का पुराना रुतबा ना खराब हो, इसलिये कार के आकार में कोई तबदीली नहीं करी जा रही है...
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मैं: मलतब वही कछुआ छाप!
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राज: हां, और ‘अम्बे-से-डर’ केबल एक ही रंग में उपलब्ध होगी – सफ़ेद. सर्वेक्षण के अनुसार लखनऊ में लोग अपनी कार के ऊपर बत्तियां (Beacon) लगाना बहुत पसंद करते हैं, इसीलिये नयी कार में तीन रंग की बत्तियाँ फैक्ट्री से लग कर की आयेंगी – लाल बत्ती, नीली बत्ती और पीली बत्ती.
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मैं: कोई ‘स्ट्रिक्ट’ एस.पी. आ गया तो चालान कर देगा!
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राज: बीच में मत बोला करो, पूरी बात तो सुनो! बत्तियों के साथ कैनवस के तीन कवर भी मिलेंगे, अगर कोई ‘स्ट्रिक्ट’ पुलिस वाला आता है तो आपको बत्तियां निकालने की ज़रूरत नहीं है, बस कैंवस कवर से ढ़क दीजिये और चलते रहिये. वैसे भी ‘स्ट्रिक्ट’ पुलिस वाले का तबादला 10-15 दिन में दुधुवा नेशनल पार्क की पुलिस चौकी में हो जायेगा.
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मैं: ग्राहकों की डिमांड को ध्यान में रखा है!
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राज: इसके अलावा लाईट की पास दो ज़बरदस्त ‘प्रेशर हार्न’ भी लगे लगाये आयेंगे.
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मैं: लेकिन ‘प्रेशर हार्न’ तो प्रतिबंधित हैं!
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राज: हाँ, प्रतिबंधित हैं, लेकिन कछुआ छाप कार के लिये कुछ भी प्रतिबंधित नहीं होता. सड़क पर आंखें मूंद कर चलते हो क्या? देखे नहीं हो सारी सफेद कछुआ कारों में प्रेशर हार्न लगे रहते हैं. कछुआ कारों के लिये कुछ भी प्रतिबंधित नहीं है, जानते नहीं कौन लोग चलते हैं इन पर? और भैये, बिना प्रेशर हार्न के तो कछुआ कार अधूरी रहती है. और कार निर्माता ने राज्य सरकार और केन्द्र सरकार से यह अपील करने की सोची है कि ‘अम्बे-से-डर’ में प्रेशर हार्न लगाने के लिये विधान सभा और लोक सभा में बिल भी पारित करें. यह प्रेशर हार्न भी कुछ खस तरीके के हैं.
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मैं: खास?
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राज: हां, इनको कब्रिस्तान में ट्राई किया गया, सारे मुर्दे कान में उंगली ठूंस कर अपनी कब्र छोड कर भाग निकले. इनकी आवाज़ ऐसी तीखी और तीव्र है कि बहरों को सुनाई देने लगे और सुनने वाले बहरे हो जायें.
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मैं: तब तो दुर्घटना हो सकती है.
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राज: जरूर होगी. हार्न सुन कर बहुत से लोग बेहोश हो कर सड़क पर लुढ़क जायेंगे. इसको देखते हुये ड्राइवरों को ड्राइविंग लाइसेंस के साथ ‘लाइसेंस टू किल’ भी मिलेगा. आखिर खास लोगों की कार है ना ‘अम्बे-से-डर’. कोई गिरे तो उसको कुचलते हुये निकल जाओ. इन सब से लोगों के मन में सफेद ‘अम्बे-से-डर’ का डर बैठेगा और वह कार को साफ रास्ता देंगे.
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मैं: बाप से ! लगता है ‘फियर फैक्टर’ की अगली कड़ी में आने वाली है ‘अम्बे-से-डर’. और कोई नयी बात?
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राज: सर्वेक्षण में यह बात भी निकल कर आयी कि लखनऊ में कार चलाने के लिये इंजन की नहीं बल्कि हार्न की जरूरत होती है. हार्न बजाने से ही गाड़ी चलती है – इंजन से नहीं. इसलिये नयी कार ‘अंबे-से-डर’ में इंजन निकाल दिया गया है.
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मैं: अरे, अजीब हो यार – गाड़ी चलेगी कैसे?
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राज: लखनऊ के यातायात में कार ऐसे भी 15 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से अधिक तेज़ तो चल नहीं पाती. इस गति के लिये इतना बड़ा और प्रदूषण फैलाने वाला इंजन क्यों लगाया जाये? इसलिये अब नयी ‘अम्बे-से-डर’ में बोनट के नीचे एक जोड़ी बैल होंगे.
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मैं: सच्ची !?
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राज: हाँ, देखो, इससे एक तो प्रदूषण कम होगा, दूसरे सड़क पर फैला कूड़ा-करकट भी बैल हजम कर जायेंगे – इनक्लूडिंग पॉलीथीन. उनके गोबर से खाद भी बनेगी और सबसे बड़ी बात यह कार बामपंथियों को भी बहुत पसंद आयेगी. तेजी से चलती और विकासोन्मुख कोई भी चीज़ उन्हें पसंद नहीं आती.
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मैं: हुम्म!
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राज: धीरे-धीरे चलती कार का रास्ता साफ रहे इसलिये प्रेशर हार्न.
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मैं: वाह भई वाह, environmental friendly car. बैल गाड़ी पर भारत – विकास की ओर तेजी से अग्रसर.
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राज: अब तुम ताने ना मारो !
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मैं: भैया, और ज्ञान दो....
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राज: बाकी कई चीज़ें इस कार के साथ लगी-लगाई आयेंगी जैसे पीछे डिक्की पर लाल रंग से लिखा रहेगा “पावर ब्रेक” जो “पावर” का प्रतीक है.
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मैं: सही है भाई!
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राज: अब लखनऊ सर्वेक्षण में यह भी पता चला कि इस शहर के हर इंसान की कोई ना कोई हस्ती ज़रूर है. सब अपनी कार पर तख़्ती ज़रूर लगाते हैं जैसे ‘सचिव’, ‘अध्यक्ष’, ‘बड़ेबाबू’ इसको ध्यान में रख कर ‘अम्बे-से-डर’ लगी लगायी तख़्ती के साथ आयेगी. जिस पर पहले से ही तमाम ओहदे लिखे होंगे, जो ना पसंद आये उस पर पेन्ट मार दीजिये. इस तख़्ती को कुछ ऐसे लगाया जायेगा कि कार की नम्बर प्लेट ढक जाये. अरे भाई नम्बर प्लेट तो आम आदमी की गाड़ी में लगायी जाती है. खास लोग नंबर प्लेट दिखाते घूमेंगे तो शान में कमी आ जायेगी ना.
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मैं: दमदार लोगों की दमदार कार – ‘अम्बे-से-डर’.
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राज: एक बात और नम्बर प्लेट के ऊपर दो इंच की एक लाल पट्टी भी पेंट रहेगी – जिससे टैक्सी वालों की गाड़ी भी सरकारी गाड़ी लगे.
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मैं: जबरदस्त सर्वेक्षण किया है लखनऊ में.
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राज: ‘अम्बे-से-डर’ का कभी चालान नहीं होगा, इसे नो पार्किंग में भी खड़ा किया जा सकता है. अगर कोई मनचला इस पर आपत्ति दिखाये तो ड्राइवर को सिर्फ इतना कहना होगा ‘जानते नहीं हो किसकी गाड़ी है’ साथ ही ड्राइवर को गालियाँ देने का भी हक दिया जायेगा. पार्किंग तो आम आदमी के लिये है ना. मान लो कभी ड्राइवर ने गलती से इसे पार्किंग में खड़ा भी कर दिया तो भी उसे पार्किंग शुल्क नहीं देना होगा. ‘अम्बे-से-डर’ की पार्किंग हमेशा फ्री. अगर पार्किंग वाला गलती से पार्किंग शुल्क मांगे तो ड्राइवर को हक दिया जायेगा कि वह पार्किंग वाले को दो-तीन कंटाप और तीन-चार चुनिंदा गालियाँ भी दे दे.
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मैं: यह तो अनर्थ है भाई.
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राज: तुम्हारे लिये अनर्थ होगा. पर यह कार प्राप्त करने के लिये बहुत मेहनत करनी पड़ती है. इसे शान से हज़रतगंज में, अमीनाबाद में, नखास में कहीं भी बीच सड़क पर खड़ा करके घूमिये, मेमसाहब को शॉपिंग कराइये, बच्चों को स्कूल भिजवाइये. This is the car of elite. समझे.
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मैं: मैं चला.....
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राज: कहां....?
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मैं: भारत मोटर्स की नयी कार ‘अम्बे-से-डर’ खरीदने.
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अरे, आप लोग यहां बैठ कर पानी के बताशे खा रहे हैं! जाइये, जल्दी जाइये और अपने लिये एक नयी नवेली ‘अम्बे-से-डर’ खरीद लाइये. पॉवरफुल लोगों की पॉवरफुल कार.

बुधवार, फ़रवरी 07, 2007

चायनीज़ भोजन - चुन्नू, मुन्नू और मैं

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बचपन में एक चुटकुला सुना था.
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दो हिन्दुस्तानी लड़के चुन्नू और मुन्नू घूमने के लिये चीन जाते हैं. चुन्नू और मुन्नू को चीनी भाषा नहीं आती है. घूमते फिरते चुन्नू और मुन्नू को बड़ी कस कर भूख लगते है, तो दोनो एक रेस्टोरेंन्ट में खाना खाने जाते हैं, और जस-तस वेटर को इशारे से ही समझा देते हैं कि भैया हमें बड़ी ज़ोर की भूख लगी है, कुछ खाने-वाने के लिये ले आओ.
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थोड़ी देर में वेटर दो प्लेटों में खाना लाकर चुन्नू और मुन्नू के आगे सरका देता है और दोनो भूखे बड़े चाव से खाना खाने लगते हैं. खाना बड़ा चटपटा और मजेदार था, स्वाद लेते हुये चुन्नू भाई बोले,” यार मुन्नू इसने मुर्गी बड़ी बढिया बनाई है.” यह सुन कर मुन्नू ने कहा,” यार, बनाई तो बढ़िया है लेकिन यह मुर्गी नहीं बकरी है.”
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इस बात पर दोनों दोस्तों में बहस हो गये, एक बोले ‘मुर्गी’ तो दूसरा कहे ‘बकरी’. कुछ देर झगड़ने के बाद दोनों दोस्तों ने कहा कि यार क्यों बे-फिज़ूल का झगड़ा करें, चलो वेटर को ही बुला कर पूछ लेते हैं. इशारे से वेटर को बुलाया गया और इशारे से ही चुन्नू ने मुर्गी की आवाज़ निकालते हुये पूछा “कुक ड़ू कू”. वेटर ने इशारे से सिर हिलाते हुये कहा “नहीं”. अब, अपने मुन्नू भाई बहुत खुश हुये और उन्होंने अपनी बात सिद्ध करने कि लिये बकरी की आवाज़ निकाली “मेंएंएं मेंएंएं” लेकिन वेटर ने फिर मुंडी हिला कर कहा “नहीं”.
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चुन्नू और मुन्नू बड़े हैरान! खैर, इशारे से ही पूछा “कि भाई फिर यह क्या खिला दिया?” तो अपने वेटर महाशय ने आवाज़ निकालते हुये कहा “ढ़ेंचू ढ़ेंचू”.
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चुटकुला सुन कर हम खूब हंसते थे, इस बात से पूरी तरह अनभिज्ञ कि एक दिन ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी घटित होगा और वह भी चीन में ही.
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पिछले साल एक वाणिज्य जल पोत का निरीक्षण करने के लिये मैं थाईलैण्ड के श्रीराचा बंदरगाह गया. मूल कार्यक्रम यह था कि 3 या 4 दिन बाद वापस सिंगापुर आ जाऊँगा, लेकिन वहाँ जाने के बाद निर्देश मिले कि हमारी ही कम्पनी का एक दूसरा जहाज चीन के निंगबो बंदरगाह पर आ रहा है और मुझे उसका भी निरीक्षण करना है.
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तो हमने अपना झोला लपेटा और चल पड़े निंगबो. श्रीराचा से बैंकॉक और हॉगकॉग होते हुये 28 जनवरी 2006 को शाम 6:30 बजे हम पंहुच गये निंगबो. आप सोच रहे होंगे कि मुझे तिथि इतने पक्के तरीके से कैसे याद है? वैसे तो मेरी यात्राओं की तिथियाँ मुझे कभी भी याद नहीं रहती पर यह वाली इसलिये याद है क्योंकि गत वर्ष 26 जनवरी को “चीनी नव वर्ष” था, जो कि चीनी मूल के लोगों का सबसे महत्वपूर्ण पर्व है.
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निंगबो पहुंच कर सामान पेटी पर गया, देखते ही देखते सबका सामान आ भी गया और लोग अपना सामान लेकर निकास द्वार से निकलते गये. हम टकटकी लगाये उन्हें देखते रहे. काँच की दीवार के पार बाहर खड़े लोग साफ दिख रहे थे. स्वजन और परिवार जन अपने अपने आगंतुक को लेकर चलते बने. दीवार के पार एक सज्जन हाथ में गत्ते की एक तख़्ती लिये खड़े थे जिस पर मोटे मोटे अक्षरों में लिखा था “Capt. Srivastava”. बेचारे की ड्यूटी लगी थी, हमको हवाई अड्डे से होटल छोड़ने की – वह भी नव वर्ष वाले दिन. सोचिये जरा, अगर दीपावली की शाम हमें भी ऐसे ही जाना पड़े तो दिल पर क्या गुज़रेगी.
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हमारे ड्राइवर साहब बाहर बड़ी बेचैनी से चहल कदमी कर रहे थे – उनकी बेचैन चहल कदमी चीख चीख कर कह रही थी “अबे जल्दी बाहर निकल, मुझे घर जाना है”. और इधर हम फंसे थे कि हमारा सामान नहीं आया था. खैर, स्थल कर्मचारियों से सामान ना आने की शिकायत दर्ज़ करवायी और बाहर आ कर चल पड़े निंगबो शहर.
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होटल पंहुच कर हमने जैसे ही कार के बाहर पैर रखा, ड्राइवर साहब कार लेकर उड़न-छू हो गये. हमने चेक इन किया, नहाये-धोये और फिर सोचा कि शहर में थोड़ा टहला मारा जाये. खैर साहब शहर की सारी दुकानें, सारे रेस्टोरेंट बंद थे. सड-अकों पर खूब जोरदार आतिशबाज़ी हो रही थी. रॉकेट, चटाईयाँ, बम चुड़ाई जा रही थीं, पूरा दीपावली वाला महौल था – धूम-धाम!
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भूख लगी तो वापस होटल का रुख किया. होटल के रेस्टोरेंट में गये. वहाँ लोग अपने परिवार के साथ (नव वर्ष में पूरा खानदान इकठ्ठा होता है और साथ ही खाना खाता है) खाने आये हुये थे. इतनी भीड़ कि मानो मुफ्त में खाना बांटा जा रहा हो.
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हमने भी आगे बढ़ कर कहा,” Hi! Table for one please.”
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परिचायिका ने मुझे देखा और कहा,”You alone, may be wait long. No seat. Seat full.”
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“No problems, I’ll wait.”
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“Long waiting. You stay hotel.”
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“Yes, I’m staying in the same hotel.”
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“Then no wait, may be you no eat restaurant, may be you eat room.”
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“No, I don’t like to eat in the room, it’s so very boring (ऊपर से टीवी पर सारे चैनल भी चायनीज़ में आ रहे हैं), I’d rather wait and dine in here.”
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“Ahhh, I see. May be you wait room, when seat empty I tell and you come and you eat.”
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यह सुझाव मुझे पसंद आया तो मैं ने अपने कमरे का नम्बर युवती को बता दिया और कमरे में आ कर बालकनी से खड़े हो कर आतिशबाज़ी के नज़ारे लेने लगा. करीब 45 मिनट बाद फोन घनघनाया, ”Sir, now empty seat may be you eat.”
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हम लदड़ भदड़ करते हुये रेस्टोरेंट में पंहुचे. परिचायिका महोदया मुझे ले चलीं. मैं ने सोचा कि अभी किसी टेबल पर बैठा देंगी, लेकिन टेबल पार करके वो मुझे ले जाकर VIP Room में बैठा दीं. (दक्षिण पूर्वी और पूर्वी देशों में अधिकतर रेस्टोरेंट और बार में VIP Rooms होते हैं, जहाँ आप हाहुओं की तरह आराम से बैठ कर खा सकते हैं).
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अब यह VIP Room हमारे हिसाब से कुछ ज्यादा ही बड़ा था, 21 कुर्सियों वाले कमरे में अकेले बैठने में भी डर लग रहा था. खैर चीन की हरी चाय से स्वागत हुआ और फिर waitress महोदया ने मेन्यू पेश किया. अब क्योंकि यह काफी परंपरागत चीनी खाना परोसने वाला रेस्टोरेंट था सो हमने सोचा कि यहाँ पर अपना food adventure करने में खतरा हो सकता तो हमने कहा,” Sea food.”
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“ 我不瞭解 ”
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“fish, prawns, shrimps, lobster….”
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“我不瞭解 “

“Sea food….sea food.”
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जब उन्हें मेरी बातें समझ में ना आयीं तो उन्होंने अपनी एक सखी को बुलाया. मैं ने फिर कहा,” “fish, prawns, shrimps, lobster….”
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“Ahhh, Lobster. OK!”
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“Yes, lobster.”
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“What style lobster”
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अब एक हिन्दुस्तानी के लिये तो चाईनीज़ खाना दो या तीन ही स्टाइल का होता है “मंचूरियन”, “शेज़वान” या फिर “स्वीट ऐण्ड सॉर”. सो हमने कहा,”मंचूरियन”
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“Ahh, sorry we make no Manchurian style. May be you like eat local style!!??”
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“Yes, local style, I want local style, sounds good!!”
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“You want with ‘lice’ or no ‘lice’?”
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हलांकि हम ने यह समझ तो लिया कि उच्चारण के चलते भद्र महिला ‘rice’ को ‘lice’ बोल रही हैं, फिर भी खतरा उठाने की हिम्मत नहीं पड़ी. मान लीजिये जो सुनाई दे रहा था वही आ जाता तो हम भी चुन्नू-मुन्नू की तरह नप जाते. सो हमने ‘सेफ प्ले’ करते हुये कहा, “ No ‘lice’ only lobster.”
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दो मिनट के अंदर ही हमारा खाना आ भी गया. हम तो भैया बड़े खुश हुये – क्या धुंआ धार सर्विस है. खाना आया भी बड़े शाही अंदाज़ में. मेरे बायीं तरफ से एक वेट्रेस ने खाने का थाल मेरे सामने रखा और दाहिनी ओर खड़ी वेट्रेस ने बड़ी नज़ाकर से मुस्कुराते हुये थाल का ढक्कन हटाया.
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ढ़क्कन के हटते ही थाल का जो नज़ारा दिखा, तो मन किया कि कुर्सी से कूद कर भाग निकलूं. पर भाई विदेश में थे तो अपने देश की इज्जत का ख्याल रखते हुये जमे रहे मैदान में.
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थाल की सजावट बड़ी धांसू थी, गाजर, लेट्यूश, मूली वगैह की कालीन से थाल ढ़का था और कालीन के ऊपर लाब्सटर!
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<< चेतावनी: आगे का विवरण विचलित कर सकता है ! ! >>
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इस लाब्सटर को क्या कहूं समझ में नहीं आ रहा है – ‘अधजिंदा’ या ‘अधमरा’. जिंदा लाब्सटर को बीच से काट कर उसका ऊपरी भाग मोड दिया गया था, नीचे के हिस्से का गूदा ‘स्कूप आउट’ करके एक छोटी सी प्लेट में नीबू की फाँकों के साथ सजा दिया गया था. बेचारे में अभी भी थोड़ी सी जान बाकी थी सो रह-रह कर उसके डैने हिल रहे थे, और काफी देर तक हिलते रहे.
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ढ़क्कन हटाने के बाद दोनों महिला “Enjoy” कह कर बाहर चली गयीं. मेरे सामने एक अधमरा – कच्चा लाब्सटर छोड़ कर कि लो भैया – सी फ़ूड खाओ.
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बड़ी मुश्किल कि क्या करें, खैर थोड़ा सा खाया मगर हरी चाय से गुटक गुटक कर. फिर घंटी बजा कर वेट्रेस को बुलाया और कहा कि एक और डिश लाओ. उसने पूछा क्या तो हमने कहा “क्रैब”.
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दो मिनट बाद क्रैब भी आ गया इस बार जिंदा तो नहीं था लेकिन कच्चा और जमा हुआ (फ्रोज़न) – हमारा संघर्ष चल ही रहा था और शायद कन्यायें इसे समझ गयीं तो आ कर खुद ही पूछ लिया,” May be we fry for you.”
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“Yes, yes….” मारे खुशी के हमारे मुंह से केवल दो ही शब्द निकले.
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जब तक हमारा खाना तलने के लिये गया, एक वेट्रेस ने आ कर कहा,” Today China new year, all hotel staff make special food. We offer everyone that. May be you also eat – we make dumplings.”
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“Sure, I’d love to try that.”
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थोड़ी देर के बाद तला हुआ लाब्सटर और क्रैब दोनो आ गये और साथ में ड्म्पलिंग्स भी. स्वादिष्ट होने के बावजूद भी लाब्सटर और क्रैब मेरे गले के नीचे नहीं उतरे देखते ही उसके हिलते हुये डैने याद आते रहे और मेरी हिम्मत नहीं हुयी, खैर, मैं ने मुफ्त की डम्पलिंग्स खाकर ही पेट भरा.
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उस दिन चुन्नू-मुन्नू वाला चुटकुला बहुत याद आया, लेकिन हंसी बिलकुल नहीं आयी.

शुक्रवार, फ़रवरी 02, 2007

किस्सा कुर्सी का

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कई दशकों से बैचैन जी ने बॉलीवुड की बादशाहत का ताज पहन रखा है. अच्छा अभिनय, कड़ी मेहनत, लगन और ईमानदारी से बेचैन जी ने अपने लिये जो जगह बनाई है, बेशक ही वह उस स्थान के पूरे हकदार हैं. चाह कर भी जब उन्होंने उस स्थान से नीचे उतर कर किसी और वहाँ बैठा देखना चाहा – तो भी ऐसा ना कर सके. बेचैन जी की ने ‘सुपरस्टार’ के स्थान को ऐसी ऊंचाई पर पंहुचा दिया है जिस ऊंचाई तक पहुंचने का प्रयास तो कई लोगों ने किया (और कर भी रहे हैं) लेकिन वहाँ पंहुच नहीं सके.
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बेचैन जी की बेचैनी भी अटल जी की तरह है, बिना किसी उपयुक्त विकल्प के, नम्बर 1 के स्थान से चाह कर भी हट नहीं पा रहे हैं. इसके साथ कुछ और भी बातें थीं जो हमारे प्रिय बेचैन जी को बहुत चिंतित कर रही थीं और उसमें सबसे ऊपर थी कि उनके एकलौते बेटे ने अब तक अग्नि के सात फेरे नहीं लगाये थे. खैर, बेचैन जी की यह चिंता अब दूर हुयी है – उनके पुत्र ने अपनी प्रेयसी के साथ विवाह करने का ऐलान करते हुये, उससे मंगनी भी कर ली है.
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बेचैन जी को इससे बहुत राहत मिली – बेचैन दिल को चैन मिला और उन्होंने अपने व्यस्त कार्यक्रम से कुछ दिन चुरा कर छुट्टी पर जाने का फैसला किया.
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अब बेचैन जी जैसे व्यक्ति के लिये यह भी एक भारी भरकम समस्या है कि ‘जायें तो जायें कहाँ?”. सारी दुनिया तो घूम ही चुके हैं – और फिर जहाँ भी जाओ लोग-बाग घेर लेते हैं – आटोग्राफ माँगने लगते हैं – वहां भी चैन नहीं.
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ऐसे में किसी करीबी दोस्त ने बेचैन जी को ‘अंतरिक्ष पर्यटन’ (Space Tourism) के विषय में ना ही सिर्फ बताया बल्कि रूस में तैनात इन कम्पनियों के पते वगैरह भी बताए.
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बेचैन जी को पर्यटन का यह रोमांचकारी विचार बहुत भाया. बस फिर क्या था, बेचैन जी ने रूस की एक निजी कम्पनी को फोन लगाया और अपनी अंतरिक्ष यात्रा का टिकट बुक कर डाला.
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उनकी छुट्टी को मीडिया कहीं तमाशा ना बना दे, इसलिये उन्होंने ने यह बात ‘सबसे’ छिपा कर रखी और चुप चाप रूस के लिये रवाना हो गये.
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लेकिन अपने देश का मीडिया कोई मामूली मीडिया है, जब भैंस और बकरी के खो जाने तक की खबर रख सकते हैं तो फिर बेचैन जी का ‘गायब’ होना कोई मामूली बात है. एक निजी चैनल ‘तहलका’ ने पता कर ही लिया कि बेचैन जी रूस की एक निजी कम्पनी की मदद से अंतरिक्ष की यात्रा पर जा रहे हैं और उन्होंने झटपट अपना संवाददाता (खबरिया) रूस के लिये रवाना कर दिया, ताकी वह खुफिया तरीके से बेचैन जी की अंतरिक्ष यात्रा को कैमरे में कैद कर लाये और चैनल रात दिन उसे दिखा देखा कर पैसे बटोर सके. मुआ संवाददाता भी, जाते-जाते अपनी बीबी के कान में अपनी यात्रा का कारण फुसफुसा ही गया.
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कुछ दिनों तक तो मेमसाहिब ने इस बात को अपने पेट में रखा लेकिन जब पेट दर्द और खट्टी डकारों से परेशान हो गयीं तो फिर मजबूरी में उन्हें यह उगलना ही पड़ गया.
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इन सब बातों से अनभिज्ञ बेचैन जी रूस में अपनी अंतरिक्ष यात्रा की तैयारियों में लगे हुये थे. और ‘तहलका’ टीवी के संवाददाता उनकी गतिविधियों को लगातार कैमरे में कैद कर रहे थे.
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आगे का विवरण ‘तहलका’ के संवाददाता के कैमरे पर बनी फिल्म पर आधारित है, बहुत ‘एक्सक्लूसिव’ ब्योरा है सिर्फ ‘पानी के बताशे’ पर उपलब्ध है – दरअसल अपने रूसी (बालों वाली नहीं) जुगाड़ों की मदद से मैंने उस कैमरे की फिल्म चोरी करवा ली थी – किसी से बताइयेगा नहीं – एक्सक्लूसिव फॉर हिन्दी ब्लागर्स. आइये देखें;
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बेचैन जी ने अपना अंतरिक्ष सूट पहना हुआ है और अपनी सीट पर बेल्ट बाँध कर बैठ गये हैं.
उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है – 9 – 8- 7 – 6 – थोड़ी ही देर में बेचैन जी अंतरिक्ष की ओर रवाना हो जायेंगे, यह फुटेज सिर्फ हमारे ‘तहलका’ टीवी के दर्शकों को ही उपलब्ध है, उल्टी गुनती चालू है...
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अरे यह क्या...? अविश्वस्नीय ! मुझे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हो रहा है...! !
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(कैमरा खुले मैदान की ओर घूमता है, एक आदमी भागता हुआ दिखायी दे रहा है)
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देखिये, दूर से भारतीय मूल का एक व्यक्ति दौड़ता हुआ चला आ रहा है, दूर होने की वजह से मैं उसे ठीक से देख या पहचान नहीं पा रहा हूं. हाँ, यह बात समझ में आ रही है कि यह आदमी हाथ हिला कर, चिल्लाते हुये कुछ कहने का प्रयास कर रहा है जो यहाँ से सुनाई नहीं दे रहा है...
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देखते रहिये यह एक्सक्लूसिव फुटेज ओनली ऑन ‘तहलका’ टीवी.....
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उल्टी गिनती बंद कर दी गयी है...लगता है ब्लास्ट ऑफ स्थगित कर दिया गया है...
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और इस तरफ अब साफ नज़र आ रहा है, इस आदमी ने धोती कुर्ता पहना हुआ है, आँखों पर सुनहरे फ्रेम का चश्मा लगा हुआ है, सिर पर बाल थोड़े से कम हैं, अधेड़ उम्र के लगते हैं.....लगता है जैसे चिल्लाते हुये कह रहे हों “कॉल ऑफ़...डोंट लॉंच..” हलाँकि यह बात मैं पक्के तौर पर कह नहीं सकता कि वक क्या कह रहा है....इसी बीच सुरक्षा कर्मियों ने उसे दबोच लिया है और वह उसे यान के पास जाने से रोक रहे हैं.....
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मैं भी अपना कैमरा ले कर उसके पास जाता हूं ताकि आप भी पूरा नज़ारा पास से देख सकें.....
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देखते रहिये यह एक्सक्लूसिव फुटेज ओनली ऑन ‘तहलका’ टीवी.....
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(कैमरामैन और संवाददाता यान की ओर जाने को कसमसाते हुये आदमी की ओर भागते हैं)
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देखिये अब हम पंहुचने ही वाले हैं और मुझे अब साफ दिख भी रहा है....अरे यह क्या....यह तो गज़ब हो गया (कैमरा मैन से – इन पर फोकस करो, इन पर फोकस करो...)....सभी दर्शक गण गौर से देखिये यह और कोई नहीं बल्कि हमारे नेता कमर सिंह जी हैं और वो चिल्ला कर कुछ कह रहे हैं....हम और भी पास जाते हैं.....
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देखते रहिये यह एक्सक्लूसिव फुटेज ओनली ऑन ‘तहलका’ टीवी.....
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(कैमरा कमर सिंह जी का क्लोज़ अप लेता हुआ, कमर सिंह कैमरे की ओर देखते हुये)
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“अरे कोई रोको, अरे कोई रोको, भगवान के लिये कोई रोको....” और फिर यान की तरफ देखते हुये,” बड़े भैया मत जाइये, हमसे क्या गलती हो गयी बड़े भैया? मत जाइये ना.......”
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देखिये.... कमर सिंह जी ने भी पता लगा लिया है बेचैन जी की यात्रा के बारे में और अब वह यहाँ पर बेचैन जी को रोकने के लिये आये हुये हैं (बैक ग्राउंड में कमर सिंह का क्रंदन और छटपटाना दिखाई और सुनाई पड़ रहा है) ....कमर सिंह जी क्या आप हमें बताएंगे कि आप को बेचैन जी की यात्रा के बारे में कैसे पता चला...”
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“अरे कोई रोको.....बड़े भैया मत जाओ...क्या गलती हुयी हमसे बड़े भैया...बतला तो दो...अरे कोई रोको, मोरे गोरे गोरे बड़े भैया.....”
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कमर सिंह जी, क्या आप बताएंगे आपको पता कैसे चला...”
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“अबे %&ं#$ पत्रकार, तुझे इतनी स्कॉच इसी दिन के लिये पिलाई थी कि तुम मुझे यह बात ना बताओ.....खिला पिला कर मोटा किया और मुझसे ही पूछ रहे हो, कैसे पता किया.....तुम्हारी बीबी ने ढ़ोल पीट दिया है.....सारे देश को पता चल गया है....काफी लोग आ रहे हैं......सारी फ्लाइट्स भरी हुयी हैं.....अरे कोई रोको.....बड़े भैया...”
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देखते रहिये यह एक्सक्लूसिव फुटेज ओनली ऑन ‘तहलका’ टीवी.....
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जैसा कि आपने कमर सिंह जी से सुना कि भारत से काफी लोग यहाँ आने वाले हैं, लेकिन यह बता देता हूं कि अब तक का एक्सक्लूसिव नज़ारा सिर्फ ‘तहलका’ टीवी पर ही उपलब्ध है.....
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और यह क्या.....पता चला है कि अंतरिक्ष यान के अंदर बैठे बेचैन जी तक कमर सिंह के आगमन की सूचना पहुंचा दी गयी है.....
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....और बेचैन जी यान से बाहर आ रहे हैं....उन्होंने अपना अंतरिक्ष सूट भी नहीं उतारा और ऊपर से ही कूद कर कमर सिंह की तरफ ‘कमर मेरे भाई...कमर मेरे भाई’ कहते हुये दौड़ते आ रहे हैं......कमर जी ने भी सुरक्षा कर्मियों को जोर से धक्का और मुक्का मार कर खुद को मुक्त किया और दौड़ पड़े हैं बेचैन जी की तरफ.....
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कैसा मार्मिक दृश्य है.....मेरी तो आँखें छलक उठी हैं...गला भर्रा रहा है......आप सब देखिये यह अनोखा ‘भरत मिलाप’ .... देखते रहिये यह एक्सक्लूसिव फुटेज ओनली ऑन ‘तहलका’ टीवी.....
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बेचैन और कमर गले मिल रहे हैं...और बेचैन जी ने कमर सिंह का हाथ थाम लिया है और वह मैदान से बाहर जा रहे हैं......
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बेचैन जी...बेचैन जी क्या आपने अपनी अंतरिक्ष यात्रा कैंसिल कर दी है...?
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“हां भाई, अगली बार दो टिकटें बुक करवाऊंगा और कमर को साथ ले कर जाऊंगा, फिलहाल यात्रा निरस्त”
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लगता है कि हमें अपनी यह एक्सक्लूसिव स्टोरी यहीं समाप्त करनी पड़ेगी, बेचैन जी और कमर सिंह जी वापस भारत जा रहे हैं.......
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अब हम आप से विदा लेते हैं..... कैमरा मैन सूरदास के साथ मैं हूं खबरिया, ‘तहलका’ टीवी के लिये........
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ठहरिये.....यह मैं क्या देख रहा हूं (कैमरा मैन से कीप रोलिंग बडी, कीप रोलिंग!), मैदान के दूसरे छोर से कई हिन्दुस्तानियों का हुजूम मैदान में घुसा आ रहा है.....
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मिलते हैं एक छोटे से ब्रेक के बाद, यह जानने के लिये कि ये कौन लोग हैं?
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देखते रहिये यह एक्सक्लूसिव फुटेज ओनली ऑन ‘तहलका’ टीवी.....
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इस बड़े से हुजूम में मुझे बॉलीवुड की कई नामी हस्तियाँ दिखायी दे रही हैं, लगता है ये लोग भी बेचैन जी को वापस लेने आये थे. और इस हुजूम में सबसे आगे किंग खान – बादशाह खान हमारे प्यारे शहतूत खान भी हैं – कितना चाहते हैं वह बेचैन जी को! पर यहां कुछ कंफ़्यूज़न सा लगता है, शहतूत खान का दल बेचैन जी के पीछे ना जाकर अंतरिक्ष यान की ओर बढ़ गया है....आइये वहीं चल कर पता करते हैं.
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किंग खान जी आप यहां कैसे?
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“हाय! (सिगरेट का धुंआ उगलते हैं) मुझे बेचैन जी की यात्रा के बारे में पता चला, इसलिये मैं यहां आया हूं – ताकि उनको यान से उतार सकूं”
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लेकिन उनको उतारने क्यों आये हैं?
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“अरे भाई वो इसलिये कि जब वह अपनी यात्रा निरस्त करेंगे तो उनकी खाली सीट पर मैं धावा बोल दूंगा.”
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तो आप चाहते हैं कि बेचैन जी अपनी गद्दी खाली करें और आप झटपट उस पर चढ़ जायें.
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“हाँ भाई, देखो उनके ही पीछे पीछे चल रहा हूं, पहले ‘डॉन’ बना, फिर “Eye See I Sea I” का ब्रॉड अम्बेसडर बना फिर “करोड़पति” बना...”
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मतलब कि आप उनका उतारा फेंका सब कुछ लपक लेते हैं?
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“हाँ भाई, उनके आँगन में लंगड़ मार कर उनकी चढ़्ढ़ी बनयान भी उतार लाता हूं...उनके जैसा बनना है, उनकी कुर्सी चाहिये.”
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ओह आई सी
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"मेरा बेटा अभी छोटा है नहीं तो मैं ऐशू को अपनी बहू भी बना लेता."
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आँयें...!!!
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“यहाँ आकर पता चला कि कमर सिंह जी बेचैन जी को साथ ले गये हैं, तो लगा कि उनकी सीट खाली हो गयी है, इसलिये अब मैं इस सीट को अपने लिये क्लेम करने जा रहा हूं”
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तो (यान में) बेचैन जी की सीट आप लेने जा रहे हैं!
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“या, यू सी आय ऐम हियर टु टॉक टू दीज़ स्पेस पीपुल अबाउट इट.”
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आप लोग देखिये शहतूत खान कैसे अपने चार्म से नम्बर वन की कुर्सी पर विराजमान होने जा रहे हैं – एक्सक्लूसिव ऑन “तहलका”.
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शहतूत जी इस समय अंतरिक्ष यान कर्मियों से वार्तालाप कर रहे हैं, आइये आप भी सुनिये,
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“हे..हे..हे..आय ऐम किंग खान, बादशाह खान, शहतूत खान – अभी अभी बेचैन जी ने जो सीट छोड़ी है, वह सीट मुझे चाहिये. बिकॉज़ आय ऐम किंग खान.”
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“सॉरी सर यह सीट तो बेचैन जी की थी, उनके अलावा किसी और को नहीं दी जा सकती है.”
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“हे...हे...हे...किसी और की बात नहीं कर रहा हूं मैं. मैं अपनी बात कर रहा हूं – किंग खान की बात कर रहा हूं - क्यों नहीं दी जा सकती है? देखो मेरे साथ कितना बड़ा हुजूम है. इस हुजूम में करण है, चोपड़ा है, जौहर है, घई है, डॉन है, करोडपति है - किसी से भी पूछ लो – आय डिसर्व दिस सीट.”
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“देखिये हमको उन सब से पूछने की ज़रूरत नहीं है – यह सीट आप को नहीं मिल सकती – बस.”
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“हे...हे...हे..आय विल पे यू...”
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“पे करने से भी नहीं मिलेगी.”
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“पे करने से कैसे नहीं मिलेगी, मैंने मशहूर अखबारों जैसे “द स्लाइम्स ऑफ इंडिया” और “हिन्दुस्तान स्लाइम्स” को पे करके उनसे नम्बर वन खान – किंग खान – बादशाह खान जैसे ख़िताब ले लिये तो फिर यह सीट क्यों नहीं? हुम्म...”
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“जी, वह इसलिये नहीं मिल सकती क्योंकि हमारे अंतरिक्ष यान में सीट खास तौर से व्यक्ति विशेष के लिये बनाई जाती है, बेचैन जी की ऊंचाई काफी ज़्यादा है – आप उस ऊंचाई तक अभी पहुंच नहीं पाये हैं. उस सीट पर बैठने के लिये आपको अपनी ऊंचाई बढानी पड़ेगी. फिर यह सीट आपको मिल सकती है.”
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“हे..हे..हे..मैं समझ गया, मैं आज से ही इंक्रीमेंट टॉनिक पीना शुरू करता हूं...पर यह सीट ले कर रहूंगा – तुम नहीं दोगे तो “द स्लाइम्स ऑफ इंडिया” और “हिन्दुस्तान स्लाइम्स” दे देगा...”
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शहतूत खान को फिलहाल बेचैन जी की सीट नहीं मिली और वह वापस इंडिया जा रहे हैं इस उम्मीद से कि उनका कद शायद कभी इतना ऊंचा हो सके कि वह बेचैन जी की सीट पर चढ़ सकें.
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तहलका टीवी के लिये मैं खबरिया, कैमरामैन सूरदास के साथ अब आप से विदा लेता हूं – नम्स्कार.
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चलते – चलते:
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अभी अभी समाचार मिला है कि कई संस्थाओं ने देश की कई नामी गिरामी हस्तियों की अंतरिक्ष यात्रा के लिये जनसाधारण से चंदा लेना शुरू कर दिया है.
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अखिल भारतीय विद्यार्थी गैंग ने चंदा जमा करके मान संसाधन विनाश मंत्री श्री दुर्जन सिंह को अंतरिक्ष यात्रा का टिकट भेंट किया है. (अंदर की बात यह है कि यह टिकट वन वे है).
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अगर आपको भी ऐसी ही कोई ख़बर मिले तो मुझे बताइयेगा ज़रूर.
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चलो दिलदार चलो,
चाँद के पार चलो,
हम हैं तैयार चलो...