सोमवार, अगस्त 27, 2007

आओ पकाएँ, कुछ कर दिखाएँ - 3

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रक्षा बंधन के अवसर पर, आइये आज सीखते हैं "बम्बइया राजमा" बनाना. वैसे तो रेसिपी चुराई हुयी है. इस पकाऊ पकवान के मूल खानसामे हैं साजिद खान, जिन्होंने ये रेसिपी रेडियो सिटी पर सुनाई थी.
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आवश्यक सामग्री:
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1. महारानी – 1
2. राजकुमार – 1
3. राजकुमार का गरीब लेकिन सच्चा मित्र – 1
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कहाँ से प्राप्त करें:
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वैसे तो साजिद खान ने यह नहीं बताया कि इन्हें कहाँ से प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन मेरे ख़्याल से मनमोहन देसाई की हिट फ़िलम “धरम-वीर” से ये सारे निकाले जा सकते हैं.
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बनाने की विधि:
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वीर एक बहुत बड़े साम्राज्य का राजकुमार है. वीर का एक सच्चा और अच्छा मित्र है - धरम. धरम एक निर्धन लोहार का पुत्र है. निर्धन होने के बावजूद, धरम बहुत ही ईमानदार, देशभक्त और खुद्दार व्यक्ति है. धरम और वीर एक दूसरे को बचपन से ही जानते हैं. वो एक साथ खेले और बड़े हुये हैं.
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दोनों मित्रों को अपनी सच्ची दोस्ती पर बहुत नाज़ है और वो अक्सर गाना गाते हैं - सात अजूबे इस दुनिया में आठवीं अपनी जोड़ी, तोड़े से भी टूटे ना ये धरम-वीर की जोड़ी.
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एक दिन राजकुमार अपने गरीब (लेकिन सच्चे) मित्र को राजमाता से मिलवाने के लिये राजमहल लाता है. राजमहल में पहुँच कर, धरम राजमाता को भी अपनी दोस्ती के बारे में गा कर बताता है - दुख सुख के हम साथी हैं ये वादा है. इस पर वीर कहता है - अपना जो कुछ है सब आधा आधा है.
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इस पर धरम सेंटी हो कर गाता है - सब कुछ आधा आधा है तो, जब ये सच्चा वादा है तो, रानीमाँ मुझको भी ममता मिल जाये थोड़ी. यह सुन कर राजमाता के सीने में छिपा माँ का दिल ममता से भर उठता है. राजमाता को धरम में अपना खोया हुआ बेटा दिखने लगता है (इस खोये हुये बेटे के बारे में किसी को पता नहीं है, उसे फिल्म की पहली रील में ही जीवन, प्राण या के.एन.सिंह टाइप के बंदे ने गायब कर दिया था) . उनकी आँखें अश्रुपूरित हो उठती हैं और वह सिंहासन छोड़ कर धरम को गले से लगाती हुयी बोलती हैं - बेटा मैं तेरी माँ हूँ बेटा, तू मुझे राजमाता या रानीमाँ मत बोला कर, सिर्फ़ माँ बोला कर बेटा. बोलो बेटा - माँ.
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यह सुन कर धरम असमंजस में पड़ जाता है. उसके हृदय में द्वंद शुरू हो जाते हैं. एक जिम्मेदार नागरिक के होते महारानी को राजमाता बुलाना ही उचित है और यही तो राज्य का नियम भी है कि आम जनता महारानी को राजमाता कह कर संबोधित करे. लेकिन राजमाता हठ पकड़ लेती हैं कि नहीं तुम तो मुझे बस माँ कहो.
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राजहठ के आगे किसकी चली है? राजमाता धरम से कहती हैं कि वह उन्हें माँ कह ही संबोधित करे. ऐसे में बीरबल के समान चतुर वीर, समस्या का ऐसा हल बताते हैं कि राजमाता और मित्र दोनो की ही बात रख ली जाती है. वीर धरम से कहता है,” राज के नियमानुसार तुम ‘राज’ अवश्य लगाओ और माँ के आदेशानुसार तुम उन्हें सिर्फ़ माँ कहो – तो आज से तुम उनको राजमाँ कह कर बुलाया करो.
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तो लीजिये तैयार हो गया राजमा. शान से खाइये और मेहमानों को खिलाइये.
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बताइएगा अवश्य कि कैसा लगा.
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पूरब से सूर्य उगा, फैला उजियारा.
जागी हर दिशा दिशा, जागा जग सारा.
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राष्ट्रीय पकाऊ अभियान - चलो पकायें, कुछ कर दिखायें.

गुरुवार, अगस्त 16, 2007

आओ पकाएँ - कुछ कर दिखाएँ - 2

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पिछली बार हमने सीखा था हरी मटर बनाना. आइये आज सीखते हैं 'शुगर फ्री', 'फ़ैट फ्री' और कॉलेस्ट्राल फ्री' हलवा बनाना.
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आवश्यक सामग्री:
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1. अपहृत बच्चा – 1
2. अपहृत बच्चे की दुखियारी माँ – 1
3. काली पहाड़ी के पीछे वाला जंगल – 1
4. कुछ चट्टानें, काँच के टुकड़े – स्वादानुसार
5. खिलौने वाली पिस्तौल – 1
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कहाँ से प्राप्त करें:
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अपहृत बच्चा और उसकी दुखियारी माँ प्राप्त करने के लिये आप उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आ जाइये. लखनऊ नगर के विधान सभा मार्ग पर स्थित विधान सभा भवन पहुंच जाइये. विधान सभा भवन में बेरोक-टोक आने जाने वाली सफ़ेद अम्बेसडर कार (जिसमें कि नम्बर प्लेट के स्थान पर “विधायक” की तख़्ती झूलती है और सामने बड़े बड़े प्रेशर हार्न और ऊपर लाल बत्ती लगी रहती है) के अंदर बैठे खादी धारी महोदय से संपर्क करिये, वो आपको तुरंत ही एक अपहृत बच्चा दिलवा देंगे. आम तौर पर अपहृत बच्चे गोदाम में उपलब्ध रहते हैं (ऑफ़ द शेल्फ़) लेकिन किन्हीं कारणवश यदि बच्चा गोदाम में उपलब्ध नहीं है तो खादी धारी जी दो – एक घंटे में यह काम करवा देंगे.
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शहर के किसी भी टीले या पहाड़ या किसी भी पर्वाताकार कूड़े के ढ़ेर को काली पहाड़ी का नाम और उसके पीछे के इलाके को जंगल का नाम दे कर आप काली पहाड़ी के पीछे वाला जंगल प्राप्त कर सकते हैं.
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चट्टानों के टुकड़े तथा काँच के टुकड़े प्राप्त करने के लिये उन स्थानों पर जाइये जहाँ विपक्षी दलों आयोजित ‘शांति पूर्ण’ मोर्चा या जुलूस अभी अभी समाप्त हुआ है. वहाँ आपको ख़ास क़िस्म के नुकीले पत्थर और सरकारी इमारतों व बसों की खिड़कियों के टूटे शीशे बहुतायत में प्राप्त होंगे.
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पटाखे की दुकान से खिलौने वाली पिस्तौल खरीदिये. साथ में चुटपुटिया की लड़ी भी ले लीजिये. इससे पिस्तौल चलाते समय ध्वनि प्रभाव बहुत अच्छा आयेगा, अन्यथा पिस्तौल चलाते समय आपको मुँह से ही ‘धाँय – धाँय’ की आवाज़ निकालनी पड़ेगी.
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बनाने की विधि:
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पहले अपहृत बच्चे को अपने कब्जे में ले लीजिये. एक दिन तक उसे मैरिनेट करिये, मतलब उसे हिमेश रेशमिया के गाने सुनाइये, करण कपूर की फ़िल्में दिखाइये इसका असर यह होगा कि बच्चा आपसे बहुत आतंकित हो उठेगा और मौका मिलते ही आपको देख कर ही भाग खड़ा होगा.
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अब बच्चे की दुखियारी माँ को फोन करिये. दुखियारी अबला नारी को बताइये कि उसका शहज़ादा आपके कब्ज़े में है जिसे वो रात के ठीक ग्यारह बजे काली पहाड़ी के पीछे वाले जंगल से ले जा सकती है.
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बच्चे की दुखियारी माँ को यह भी बता दीजिये कि वह अमुख अमुख स्थान पर ही खड़ी रहे और यदि वह बताये हुये स्थान से जरा सा भी हिलेगी तो उसके राज दुलारे को खिलौने वाली पिस्तौल से गोली मार कर ढ़ेर कर दिया जायेगा.
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निश्चित समय से कुछ पहले आप काली पहाड़ी के पीछे वाले जंगल में पहुंच जाइए और दुखियारी माँ के खड़े होने के निर्धारित स्थान तथा बच्चे के बीच में पत्थर और काँच के टुकड़े बिछा दीजिये.
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दुखियारी माँ के आते ही बच्चे को छोड़ दीजिये और चट्ट चट्ट दो बार पिस्तौल दाग कर चिल्लाइये “भाग”. बच्चा ऐसे ही हिमेश और करण से बाकायदा मैरिनेट हो चुका था आपकी चट्ट चट्ट और भाग सुनते ही अपनी माँ की तरफ़ बेतहाशा भागेगा.
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और उधर दुखियारी माँ अपनी बाहें फैलाए अपने राज दुलारे को गले से लगाने के लिये तड़पती हुयी चीखेगी,” भाग बचवा भाग ! कसि कै भाग !! आवा, आयके अपनी महितारी के करेजे से लगि जावा मोरे लाल !! भागि बचवा भागि...”
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अब आपको हलुवे के भुनने की सोंधी सोंधी खुश्बू आने लगेगी, लेकिन हलुवा अभी पूरी तरह भुना नहीं है.
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अचानक दुखियारी माँ को दिखेगा कि बच्चा भागते हुये काँच और नुकीले पत्थरों के पास पहुँच गया है. वो सोचती है ‘हे ईस्वर हमरे लाल के पैरन मा काँच चुभि जैहै.’ लेकिन वो हिम्मत नहीं हारती है. भारतीय माँ है, मदर इंडिया है, बच्चे से कहती है,” ऐ बचवा भागि मत. रुक! देख काँच है हुंआ. रुक, भागो नाहीं. सम्भाल के आवा. धीरे धीरे आवा, हाँ धीरे धीरे, हलू – हलू, धीरे आ, हलू आ, हलु आ, हलुवा..हलुवा...हलवा”
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तो लीजिये तैयार हो गया हलवा. शान से खाइये और मेहमानों को खिलाइये.
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बताइएगा अवश्य कि कैसा लगा.
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अगली कड़ी में सीखेंगे राजमा बनाना.

शुक्रवार, अगस्त 10, 2007

आओ पकाएँ - कुछ कर दिखाएँ - 1

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आइये आज सीखते हैं हरी मटर बनाना.
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आवश्यक सामग्री:
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1. मोटर कार – 1 (ध्यान रहे कि यह मोटर कार हरे रंग की ना हो)
2. हरा पेंट – 4 लीटर
3. कूची (ब्रश) – 1
4. बप्पी लाहिड़ी – 1
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कहाँ से प्राप्त करें:
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अपनी मोटर कार का प्रयोग कतई मत करिये. अपने पड़ोसी पर कुछ दिन आँख रखिये, यदि वो उनमें से हैं जिन्होंने मोटर कार सिर्फ़ इसलिये खरीदी है ताकि आपको जला सकें ना कि इसलिये कि उसे चला कर ऑफिस जाया जाये और यदि वो स्कूटर से ऑफिस जाते हुये अपनी मोटर कार को आपके घर के गेट से सटा कर महज़ इसलिये छोड़ जाते हैं कि दिन भर आपके कलेजे पर साँप लोटे, तो समझ लीजिये कि आपको मोटर कार मिल गयी है.
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कुछ दिनों तक पड़ोसी के घर से निकलने और वापस आने का समय देख कर हरी मटर बनाने का ऐसा समय चुनिये कि पड़ोसी पकाने के समय किसी भी प्रकार का विध्न डालने ना आ टपकें.
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हरा रंग और कूची निकट की रंग वाली दुकान से लीजिये. ध्यान रहे कि रंग सबसे सस्ता वाला होना चाहिये.
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बप्पी लाहिड़ी को आप ‘सारेगामा’ से पकड़ कर उठा लाइये (उठाते समय यह ध्यान रखियेगा कि इस काम के लिये आपको एक क्रेन की आवश्यकता पड़ सकती है). यदि किन्हीं कारणों के चलते (जैसे चौकीदार का आपको स्टूडियो में अंदर ना घुसने देना) यदि आप बप्पी दा को वहाँ से ना उठा पायें तो फिल्म निर्माताओं के ऑफिस के बाहर काम मांगने वालों की लम्बी कतार में बप्पी दा खड़े मिल जायेंगे, उन्हें वहीं से उठा लाइये या यह प्रलोभन दीजिये कि आप उनको किसी संगीत मुकाबले में निर्णायक का पद देंगे, वह स्वयं ही आपके पीछे चल पड़ेंगे.
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बनाने की विधि:
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पहले बप्पी दा को अपने पड़ोसी की मोटर दिखा दीजिये और फिर उनको वहाँ से हटा कर बिना खिड़की वाली कोठरी में बंद कर दीजिये.
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अब पेंट का डिब्बा खोलिये और कूची डुबो डुबो कर पड़ेसी की पूरी कार हरे रंग से रंग दीजिये. इस काम को आराम से धीरे धीरे एक ही हाथ से करिये, साथ में ध्यान रखिये कि कार का कोई भी हिस्सा बचा ना रहे – पूरी तरह हरा हो जाये.
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जरूरत होने पर एक कोट और दीजिये. ख़ास कर कि मोटर के शीशों, सीट, अंदर बिछी कालीन, बम्पर, टायर इत्यादि को दो कोट अवश्य दीजिये.
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अब पाँच मिनट तक मोटर को धूप में धीरे धीरे सूखने दीजिये. ज़रूरत होने पर शीशों पर एक कोट और लगाइये और फिर दस मिनट तक सूखने दीजिये.
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10 मिनट के बाद बप्पी दा को बाहर निकालिये और पड़ोसी की कार फिर से दिखाइये. बप्पी दा बोलेंगे,” उड़ी बाबा, खूब भालो. तूम तो घोर में ही होरी मोटर बोना लीया.” उनका यह संवाद मेहमान हिंदी ऐसे अनुवादित करेंगे,” अरे वाह, बहुत बढ़िया, तुमने तो घर में ही हरी मटर बना ली.”
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तो लीजिये तैयार हो गयी हरी मटर. शान से खाइये और मेहमानों को खिलाइये.
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बताइएगा अवश्य कि कैसा लगी.
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गुरुवार, अगस्त 02, 2007

अनुगूँज 22: हिन्दुस्तान अमरीका बन जाए तो कैसा होगा - पाँच बातें

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ये अनुगूँज में भी कहाँ - कहाँ से टॉपिक उठा लाते हैं, हाँ नहीं तो. बोले कि सोचो क्या होगा गर हिन्दुस्तान बन जाये अमरीका. हमने भी सोचा कि भैया कोई दिक्कत नहीं, केवल सोचने को ही तो कह रहे हैं, सही में थोड़े ही ना बना जा रहा है. लेकिन जब सोचा तो भइया सोच कर ही रूह भीतर तक काँप गयी. ऐसा झटका लगा कि मानो फ़िल्मों की सारी हिरोइनें अपना मेक-अप धो-धा कर सामने आ कर खड़ी हो गयी हों. दिल घबरा गया, धड़कन तेज़ हो गयी और मारे घबराहट के सू-सू आ गयी.
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सू-सू एक ऐसा ब्रह्मास्त्र है जो कि आपको विकट से विकट संकट से भी मुक्ति दिला सकता है. क्लास में मन नहीं लग रहा है – हाथ उठाइये और बोलिये टीचरजी सू-सू आई – और ये ल्यो भइया मिल गयी बाहर जाने की इजाज़त. ऑफिस में डेस्क पर बैठ कर ब्लॉग पढ़ते और लिखते बोर हो रहे हैं तो जाइये, सू-सू के बहाने घूम आइए.
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अब ये सब बातें पढ़ कर आप ये ना समझने लगिये कि मैं सैर करने बाहर जा रहा था. भई हमको तो डर के मारे सच्ची की सू-सू आ गयी. तो हम उठे और चल दिये ऑफिस के बाहर. अब आप सोच रहे होंगे कि ऑफिस के बाहर क्यों? तो भई, ऐसा नहीं है कि हम पहले से ही ऑफिस के बाहर सू-सू करने जाते थे. दो साल पहले तक तो हम ऑफिस के अंदर ही बना हुआ शौचालय इस्तेमाल करते थे. दो अलग अलग शौचालय थे हमारे ऑफिस में हुम्म! एक के दरवाज़े पर लिखा था “शौचालय पुरुष” और दूसरे के दरवाज़े पर लिखा था “शौचालय महिलाएँ”.
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अब क्या हुआ कि दो साल पहले किसी मनचले ने ‘महिलाएँ’ से ‘म’ मिटा दिया, तो भई दरवाज़े पर सिर्फ़ ये लिखा रह गया “शौचालय हिलाएँ”. उन्हीं दिनों एक नए रिक्रूट आये ऑफिस में, अब उनको पता नहीं था कि “शौचालय पुरुष” और “शौचालय हिलाएँ” में किधर जाना है. पता नहीं कि मनचले टाइप के थे या गलती से मिस्टेक हो गयी बेचारे “हिलाएँ” में चले गये. अब पूछिये मत, अंदर से जब साहब बाहर निकले, तो गाल पर सैंडिलों के निशान, मथ्थे पर गूमड़ और आँख ले नीचे काला. बात बड़े साहब तक पहुंची, और उन्होंने फैसला सुनाया कि आज से पुरुषों का शौचालय इस्तेमाल करना बंद. उस दिन के बाद से दोनो ही शौचालय “शौचालय हिलाएँ” बन गये हैं और हमें जाना पड़ता है ऑफिस के बाहर.
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तो ख़ैर साहब हम चले ऑफिस के बाहर ये सोचते हुये कि भारत यदि अमरीका बन गया तो क्या होगा? सबसे पहली बात जो हमारे मन में आई वो थी;
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1. भारत की सारी नई इमारतें कमज़ोर ही बनेंगी:
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आप पूछेंगे कि भइया वो कैसे? तो वो ऐसे कि ऊपर बताये प्रंसंग के बाद हम पुरुषों ने बाहर जुगाड़ ढ़ूँढ़ने शुरू किये. वो तो भला हो कि ऑफिस से लगे हुये खाली मैदान के चारों ओर पी.डब्लू.डी. ने दीवार बनानी शुरू कर दी और हमारी खोज वहीं समाप्त हो गयी. ऑफिस की तमाम पुरुष जाति ने एकमत होकर यह सोचा कि राष्ट्र के मज़बूत भविष्य के लिये हम भी योगदान देंगे. हमने ये फैसला किया कि मैदान के चारों ओर बनाई जा रही सरकारी दीवार की हम नियमित रूप से तराई किया करेंगे. बस, वो दिन था और आज का दिन है, हम सरकारी दीवार की तराई में अविरत लगे हुये हैं.
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भाई साहब, आप मानियेगा नहीं, आज दो साल हो गये हैं उस दीवार को बने हुये और ये हमारी तराई का ही नतीजा है कि उस दीवार पर लगाया गया पी.डब्लू.डी. का बालू ज़्यादा और सीमेंट कम वाला प्लास्टर भले ही धुल कर बह गया हो, भले ही उस दीवार की एक एक ईंट दिखती हो, लेकिन वह आज भी वैसे ही मजबूती से खड़ी हमारी अविरत तराई की दाद देती है.
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अगर भारत, अमरीका बन गया तो हमसे दीवारों पर सू-सू (तराई) करने का अधिकर छिन जायेगा. राष्ट्र निर्माण में सदुपयोगी सिद्ध होती सू-सू ना ही केवल सीवर लाइन के जरिये नदियों में मिल कर उनको प्रदूषित करेगी, बल्कि नये राष्ट्र की नई इमारतों को कच्चा करेगी.
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2. ज़मीन बंजर हो जायेगी:
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रेल गाड़ी में तो आपने अवश्य ही यात्रा करी होगी. रेल की पटरी के दोनों ओर हरे-भरे लहलहाते हुये खेत कितने मनभावन लगते हैं. क्या कभी आपने ये सोचा है कि वो कौन सी ताकत है जो रेलवे लाइन के किनारे के खेतों को हरा भरा रखती है? क्या आप हरियाले के उन अनजान सिपाहियों को जानते हैं जिनका नाम इतिहास के पन्नों में नहीं मिलता? अगली बार ट्रेन से यात्रा करते हुये ज़रा ग़ौर से देखियेगा (मुंबई की लोकल ट्रेनों के यात्रियों को बिना गौर किये ही दिख जायेगा), उन झाड़ियों के पीछे हमारे गाँव के जागरूक नागरिक, स्वेच्छा से और निःस्वार्थ भावना से ट्रेन की पटरी के किनारे अपना मल-दान करते हुये दिख जायेंगे.
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आगे बढ़ने से पहले आइये, हम इनके योगदान की सराहना करते हुये, इनके प्रति नतमस्तक होकर दो मिनट का मौन धारण करें.
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सोचिये, अगर भारत अमरीका बन गया तो मल-दान करते हुये, हरियाली के इन सिपाहियों को “अभद्र प्रदर्शन” के इल्ज़ाम लगा कर कारागार में डाल दिया जायेगा. बिना इनके आये, धरती प्राकृतिक उर्वरक के लिये तरसेगी. भूखी रह जायेगी हमारी हिरण्यगर्भा. सूख जायेंगे हरे भरे खेत. सोचिये क्या आप चेहरे हो अपने पंजे से ढ़ाँक कर (मनोज कुमार उर्फ़ भारत इश्टाइल में) ये गाना गा पायेंगे “मेरे देश की धरती सोना उगले..” नहीं ना!!
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ज़मीन को बंजर होने से बचाइये, हिन्द को हिन्द ही रहने दो कोई नाम ना दो.
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3. सारे पेड़ कट जायेंगे:
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एक मुश्किल ये भी कि भइ पेड़ धड़ाधड़ कट जायेंगे. पूछिये कि भाई वो कैसे? हाँ, तो वो ऐसे कि हम हिन्दुस्तानी अपनी नित्य क्रिया करने के पश्चात पानी के स्वयं को साफ़ कर लेते हैं. लेकिन अमरीका बनने के पश्चात हमें कागज़ या टायलेट पेपर इस्तेमाल करना पड़ेगा. (टायलेट पेपर के विकल्प के रूप में हम ‘द टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ इस्तेमाल नहीं कर पायेंगे क्योंकि अमरीका बनते ही वह भी बंद हो जायेगा).
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अब उस भयानक समय की कल्पना करिये जब कि तकरीबन 1,20,00,00,000 भारतीय (या अमरीकी) सुबह सुबह कागज़ का प्रयोग करेंगे. आपको तो महसूस भी ना होगा और आपके बैठे बैठे कितने ही पेड़ शहीद हो जायेंगे.
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1,20,00,00,000 लोगों की इस तुच्छ सी दैनिक माँग को पूरा करने के चक्कर में इतने पेड़ कटेंगे कि धरती सूनी हो जायेगी.
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4. शादी की बर्बादी हो जायेगी:
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हिन्दुस्तानी शादियों की चमक दमक के बारे में क्या बतायें. समझिये कि मेला ही लगता है. लोग कितने दिनों से तैयारियाँ करते हैं कि फलाने की शादी में जायेंगे. बीबी जी साड़ी और गहने खरीदती हैं और इसी बहाने मियाँ जी को भी एक ठो पैंट और कमीज मिल जाती है. बन्ना-बन्नी गाने का रियाज़ किया जाता है – बन्ने काला कोट सिलवाना, उसमें सोने के बटन लगाना. कुछ एक बन्नों को देख कर सोचता हूँ कि यदि इसने काला कोट सिलवा कर पहन लिया तो ये तो पता ही नहीं चलेगा कि बन्ना कहाँ खतम हुआ है और कोट कहाँ से शुरू हुआ है.
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लपक धपक सब शादी में पहुँचते हैं. महिला संगीत के बहाने महिलायें ढोलक पीट पीट कर ऊँचे सुरों में बन्ना-बन्नी गाती हैं. अरे इससे हमें क्या कि पड़ोसी के बच्चे का हाई-स्कूल का इंतहान है. पड़ोसी भी मन मसोस कर सिर्फ़ इसलिये चुप रह जाता है कि ‘गाओ, बेटा गाओ, पिंटू की शादी में लाउड स्पीकर लगवा कर महिला संगीत करवाऊँगा तब झेलना.’
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बीबी जी को मस्ती मारते देख कर मियाँ जी भी जोश में !! इधर बारात निकली और उधर मियाँ जी ने सोनी ब्रास बैण्ड वाले को बीस रुपये का पत्ता थमा कर फ़रमाइश करी – ‘नागिन वाना मन डोले मेरा तन डोले’ और ‘नया दौर वाला ये देश है वीर जवानों का’ वाला गाना बजाओ.
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बैण्ड वाला शुरू – और मियाँ जी ने जेब से रुमाल निकाल कर झाड़ा, एक कोना मुँह दाँतों के बीच में दाबा, दूसरा कोना हाथों में थामा और सपेरा बन कर शुरू, बन्ने के ताऊ जी भी जोशिया गये, सिर के ऊपर दोनों हथेलियाँ टांगी और अपनी थुलथुल तोंद और कमर हिलाते हुये नागिन बन कर नाचना शुरू. पूरा पिरोगिराम सड़क के बीचों-बीच. क्या मज़ा आता है.
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धीरे धीरे सारे बराती, बन्ने के दोस्त, ताऊ, चाचा, बाऊ जी, बाऊ जी के दोस्त सब के सब अपनी थुलथुली तोंद और कूल्हे हिलाते हुये सड़क पर चक्का जाम करते हुये नाचना शुरू. अब ट्रैफिक जाम, एम्बुलेंस या फायर ब्रिगेड के रुकने जैसी छोटी छोटी बातों से काहे अपना मूड खराब करें भाई. शादी कोई रोज़-रोज थोड़े ही ना होती है.
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शादी के दूसरे दिन होती है भात की रस्म. भात के समय नाते-रिश्ते, गली-मोहल्ले की औरतें मिल कर बरातियों को गालियाँ गाती हैं. गालियाँ सुन कर बराती इन महिलाओं को शगुन भी देते हैं.
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अब अगर भारत बन गया अमरीका तो जैसे ही औरतों ने ढ़ोल पीट कर गाना शुरू किया वैसे ही पड़ोसी ने मिलाया 911. इधर आप सड़क पर ट्रैफिक जाम करके नाचे उधर सारे के सारी बराती गये ‘ससुराल’. भात के समय महिलाओं ने गालियाँ गायीं तो समझो कि बरातियों ने उनको भी अभद्र भाषा के प्रयोग करने का लगाया इल्ज़ाम और जेल में किया उनका इंतजाम.
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शार्ट में ये समझिये कि शादियों से रस ही खतम हो जायेगा. वो बड़े बुज़ुर्ग जो आज युवाओं पर जोर डाल कर हकते हैं कि बेटा जल्दी से मेरे लिये एक बहू ला दे, वही कहेंगे कि मत कर शादी, ये भी कोई शादी है – ये तो शादी की बर्बादी है.
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अब जवानी कोई फिक्सड डिपासिट में रखने की चीज़ तो है नहीं, जवान लड़के-लड़कियाँ इसे बिना शादी के ही खर्च करने लगेंगे, इससे समाज का नैतिक पतन होगा. मान्यताओं को ठेस लगेगी. और सबसे बड़ी बात ये कि हम सड़क पर नाच नहीं पायेंगे!!
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ये तो हुयीं चार बातें.
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5. और भी ग़म हैं:
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- हम हाई वे पर उल्टी दिशा में गाड़ी नहीं चला पायेंगे.
- सड़क के किनारे लगे पान-सिगरेट के खोमचे उठ जायेंगे, असुविधा होगी.
- नेता जी अपनी प्रेयसी को गर्भवती करके, बदनामी से बचने के लिये उसकी हत्या नहीं करवा पायेंगे – ग्रॉड ज्यूरी को झेलना पड़ेगा
- सबके पास कार हो जायेगी जिसके चलते ट्रेनों में भीड़ कम हो जायेगी. इसका दुष्परिणाम यह होगा कि मुंबई की लोकल ट्रेनों में जो मुफ़्त की मालिश मिलती है वो बंद हो जायेगी.
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वैसे तो बहुत सी बातें हैं, लेकिन फ़िलहाल इतना काफ़ी!!

बुधवार, अगस्त 01, 2007

चाँदी जैसा रंग है तेरा

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पुराणिक जी ने कुछ दिन पहले गोरा बनाने वाले जादूई लेप पर यह लेख लिखा था और साथ में बड़ी सी चिप्पी भी चिपका दी कि इस लेख को महिलायें कतई भी ना पढ़ें. मतलब साफ़ – पुरुष और पशु चाहें तो पढ़ लें महिलायें नहीं पढ़ सकतीं.
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अब साहब आप ही बताइये, ऐसी शर्त से भला कौन खुश हो सकता है. महिलाओं ने नथुने फड़काते हुये कहा,” पशुओं की बात तो समझ में आती है, लेकिन ऐसी क्या बात है कि मुए मरद पढ़ सकते हैं लेकिन हम नहीं.”. कुछ बोलीं,” अरे ठीक ही तो किया पशुओं और पुरुषों की श्रेणी से बाहर रख कर हमें सम्मान ही दिया है.”
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उधर पुरुष भी घुन्ने में आ गये,” बताइये साहब, ये पुराणिक साहब ने हमें पशुओं की श्रेणी में ला खड़ा किया है. ये तो हद ही हो गयी भाई!”
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कुछ पुरुष जिनको अपने आत्मसम्मान की तनिक भी चिंता नहीं है, दबी आवाज़ में बोले,” ठीक ही तो कह रहे हैं, गौर से देखो तो उन्होंने हमें पशुओं की श्रेणी में खड़ा करके, हमारा समाजिक स्तर ऊँचा ही किया है. पशु तो यदा-कदा ही पिटते हैं और हम, बीबी से, सास से, बॉस से, घर में, ऑफिस में जहाँ भी देखो, पिटते ही रहते हैं.
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अब हुआ ये कि ये छोटी छॉटी नोंक झोंक विवाद बन गयी और महिलाओं और पुरुषों के गुट इस विषय को ले कर जूतम लात पर उतारू हो गये.
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लेकिन, इस सब बातों से दूर, राजेश बाबू की प्यारी, सांवली सलोनी भैंस – श्यामा, इस लेख से बड़ी खुश. मुस्कुराते हुये रंभाई,” कोई तो है जिसने हमारे बारे में भी सोचा. आज ब्लॉग पढ़ने का निमंत्रण मिला है, कल किसी पार्टी का टिकट मिलेगा, फ़िर क्या मालुम किसी फ़िल्म में बिपाशा की जुड़वा बहन का रोल भी मिल जाये.” थोड़ी देर तक आंखें मूंद कर श्यामा ने कुछ सोचा और फिर रंभाई,” बेचारी बिपाशा! मेरे फ़िल्मों में आ जाने से तो वो बुरी तरह पिट जायेगी. भला मेरा और उसका क्या मुकाबला? वो तो फिर भी रुमाल के साइज़ के कपड़े पहन लेती है हम तो बिना कुछ पहने ही स्क्रीन पर आ जायेंगे, कौन देखेगा बेचारी को ? कितना छटपटाएगी. कैसे चीख चीख कर कहेगी ‘अब-रहम, अब-रहम’ (एब्राहम).”
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बड़ी खुश. मुस्कुराये जाये. गुनगुनाये जाये. मटक कर गोमती नदी की ओर चल पड़ी. गोमती वही नदी है जो किसी समय लखनऊ की मशहूर “शाम-ए-अवध” से जुड़ी हुयी थी और आज शहर के तमाम नालों और सीवर लाइनों से जुड़ी पाई जाती है. सुबह होते ही तमाम ग्वाले अपनी भैंसों को नहलाने – धुलाने और गर्मी से बचाने के लिये गोमती में ठेल देते हैं. दिन भर भैंसों की मीटिंग वहीं होती है.
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गोमती में घुसते ही श्यामा ज़ोर से रंभाई,” बॉ S S S S S ...”
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सब भैंसन ने घेर लिया,” क्या बात है श्यामा बहिन बहुत खुश दिखाई दे रही हो, कोई ‘गुड न्यूज़’ है क्या?”
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”अरे धत्त, तुम लोग तो बस एक ही बात सोचती हो.” श्यामा कुछ लजा सी गयी,” खबर तो अच्छी है लेकिन वो नहीं जो तुम सब सोच रही हो.”
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”ऐसा क्या? कमर सिंह जी का दिल आ गया है क्या तुम पर?”
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श्यामा हताश होते हुये बोली,” नहीं री, वो तो उस मुई बिप्स पर ना जाने क्यों फ़िदा हैं. खैर, मैं तो ऐसी खबर लाई हूँ जिससे हमारे सारे कष्टों का निवारण हो जायेगा.”
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इतना सुनना था कि सारी भैंसों ने श्यामा को धर घेरा, जो भैंसें गोमती के तट पर घास चर रही थीं, या पेड़ के नीचे बैठ कर जुगाली कर रही थीं, वो भी छपाक छपाक गोमती में कूद कर श्यामा के पास आ गयीं.
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श्यामा ने अपनी पूंछ से नथुने और मुँह पर मंडराती हुयी मक्खियों को उड़ाते हुये कहा,
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” बहिनों, सदियों से हम पर होते आ रहे अविरत अत्याचारों का मूल कारण आज मुझे पता चल गया है. हमारे साथ मानव जाति ने जो सौतेला व्यव्हार किया है उसका कारण भी पता चल गया है.
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ऐसा क्यों होता आ रहा है हमारे साथ, कि मानव जाति दूध तो हमारा पीती है और पूजा करती है गाय की. दूध पिया हमारा और मइया बनी गइया. गाय को मंदिरों में स्थान दिया और हमें इस प्रदूषित गोमती में.
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गाय का मांस खाने से पाप लगता है! लेकिन जब ‘बीफ़’ खाने का मन किया तो हम भैंसों को हलाल कर दिया! ये क्या बात हुयी?
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केवल इतना ही नहीं बहिनों, उनका साहित्य पढ़ो, जब किसी सीधी सादी सर्वगुण सम्पन्न नारी की बात होती है तो उसे गाय कह कर पुकारते हैं. जब किसी मोटी, काली कलूटी, बदसूरत सी औरत का विवरण देना होता है तो कहते हैं कि ‘वो तो भैंस है भैंस’. सभी इच्छा पूरी करने वाली को “कामधेनु” कहते हैं, मैं पूछती हूँ कि “काम-भैंस” क्यों नहीं कहते. गाय को शशी कपूर जैसे ‘हैण्डसम’ दिखने वाले कृष्ण के साथ जोड़ा और हमें जोड़ा अजय देवगन के हमशक्ल यमराज से. कोई अच्छा लड़का मिलता है तो उसे कहते हैं कूल ‘गाय’, कूल ‘भैंस’ क्यों नहीं कहते भाई? क्या ये न्याय है?”
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”श्यामा बहिन, बात तो ठीक कहती हो, लेकिन क्या करें हम हैं ही काले-कलूटे.”
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”हाँ श्यामा बहिन, काला होना बहुत बड़ा अभिशाप है.”
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”गुस्सा शांत करो श्यामा बहिन, मानव श्याम सुंदर की पूजा भले ही करते हों, लेकिन कालों को पसंद नहीं करते. अब देखो ना सांवली कन्या के दहेज कें अधिक पैसा लगता है. सांवली कन्या एयर होस्टेस नहीं बन सकती, टीवी पर क्रिकेट की कमेंट्री नहीं बोल सकती और तो और पाप की कमाई को भी काली कमाई बोलते हैं. कुछ उल्टा पुल्टा हो जाये तो कहते हैं कि मुँह काला हो गया.”
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सबकी बातें सुन कर श्यामा रंभाई,” सही कहा ! तो तुम ये सब समझ चुकी हो कि यह काला रंग ही हमारे कष्टों और त्रासदियों का मूल कारण है. मैं भी यही कहना चाहती थी ! चलो हम अपने कष्टों से मुक्त होते हैं इस काले रंग से मुक्त होते हैं.”
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ये सुन कर कुछ भैंसे तो फुसफुसाते हुयी रंभाईं,” बेचारी श्यामा बहिन, इंसानी ब्लॉग पढ़ पढ़ कर और इंसानी टीवी धारावाहिक देख देख कर, कैसी अजीब बातें करने लगी है.”
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श्यामा ने फुसफुसाहट सुन ली और रंभाई,” मैं अजीब बातें नहीं कर रही हूं. सच कहती हूँ. अब हमारे पास साधन हैं कि हम अपने काले रंग से छुटकारा पा कर खुद को गाय की पूज्य श्रेणी में ला खड़ा करेंगे.”
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”वो कैसे श्यामा बहिन?”
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श्यामा ने पूंछ से अपना मुंह साफ़ करते हुये कहा,” हम सब कल से ‘फ़ेयर एण्ड लवली’ लगायेंगे.”