यह मनगढंत कथा तथा इसके मनगढंत पात्र पूर्णतयः मनगढंत हैं, किसी मनगढंत जीवित या मनगढंत मृत व्यक्ति या मनगढंत सत्य या मनगढंत असत्य घटना या मनगढंत कथा से मेल होना मात्र मनगढंत संयोग है.
घटना एक महीना पहले दिल्ली के एक पांच सितारा होटल के अल्पाहार गृह में घटी. भोजन करके निकलते हुये दो सज्जन आपस में भिड़ कर गिर गये.
"सॉरी, मैं आपको देख नहीं पाया." दोनों संभ्रांत व्यक्तियों के मुह से लगभग एक साथ निकला. संभल कर उठते हुये दोनों ने एक दूसरे को पहली बार देखा.
"अरे, तुम्हारे बायें गाल पर तो तिल है...."
"हां, बिलकुल तुम्हारी तरह!"
"कहां के रहने रहने वाले हो?"
"मैं तो "इ" फार इटली का रहने वाला हूं, और तुम?"
"मैं "इ" फार इंडिया का हूं."
दोनों ने एक दूसरे हो थोड़ी देर तक ध्यान से देखा मानो और भी समानतायें ढ़ूंढ़ने का प्रयास कर रहे हों.
"तुम्हारे पूर्वज कहां से हैं?"
"वैसे तो मम्मी ने बताया था कि सारी सभ्यता का विकास ईराक में हुआ था, उस हिसाब से तो पूर्वज ईराक से आये हुये लगते हैं."
"हां, सही कह रहे हो 'वयं रक्षामः' में भी यही लिखा है, मेरे पूर्वज भी ईराक से हैं."
"क्या तुम्हें लगता है कि यह समतायें मात्र संयोग है, या फिर ईश्वर कुछ संदेश देना चाहता है?"
"समझ में नहीं आ रहा है....! तुम्हारा नाम क्या है?"
"अरमानी, और तुम्हारा?"
"अडवानी....नामों में भी समानतायें.......क्या तुम्हें लगता है कि हम बिछड़े हुये...."
"हां भैया हां, आपने सौ प्रतिशत ठीक पहचाना, हम बिछड़े हुये भाई ही हैं...."
यह कहते हुये ईराकी पूर्वजों की संताने और सदियों से बिछड़े हुये दो भाइयों, 'इ' फार इटली के अरमानी और 'इ' फार इंडिया के अडवानी ने एक दूसरे को गले से लगा लिया, "मेरे भाई, इतने दिनों से कहां खोया हुआ था रे तू!! कितना दुबला हो गया है रे! क्या तुझे कभी अपने भाई की याद नहीं आयी?"
"भैया, आपकी भी तो मूंछे सफेद हो गयी हैं, अब जो मिले हैं तो कभी ना बिछड़ेगे."
अडवानी: तुम काम क्या करते हो?
घटना एक महीना पहले दिल्ली के एक पांच सितारा होटल के अल्पाहार गृह में घटी. भोजन करके निकलते हुये दो सज्जन आपस में भिड़ कर गिर गये.
"सॉरी, मैं आपको देख नहीं पाया." दोनों संभ्रांत व्यक्तियों के मुह से लगभग एक साथ निकला. संभल कर उठते हुये दोनों ने एक दूसरे को पहली बार देखा.
"अरे, तुम्हारे बायें गाल पर तो तिल है...."
"हां, बिलकुल तुम्हारी तरह!"
"कहां के रहने रहने वाले हो?"
"मैं तो "इ" फार इटली का रहने वाला हूं, और तुम?"
"मैं "इ" फार इंडिया का हूं."
दोनों ने एक दूसरे हो थोड़ी देर तक ध्यान से देखा मानो और भी समानतायें ढ़ूंढ़ने का प्रयास कर रहे हों.
"तुम्हारे पूर्वज कहां से हैं?"
"वैसे तो मम्मी ने बताया था कि सारी सभ्यता का विकास ईराक में हुआ था, उस हिसाब से तो पूर्वज ईराक से आये हुये लगते हैं."
"हां, सही कह रहे हो 'वयं रक्षामः' में भी यही लिखा है, मेरे पूर्वज भी ईराक से हैं."
"क्या तुम्हें लगता है कि यह समतायें मात्र संयोग है, या फिर ईश्वर कुछ संदेश देना चाहता है?"
"समझ में नहीं आ रहा है....! तुम्हारा नाम क्या है?"
"अरमानी, और तुम्हारा?"
"अडवानी....नामों में भी समानतायें.......क्या तुम्हें लगता है कि हम बिछड़े हुये...."
"हां भैया हां, आपने सौ प्रतिशत ठीक पहचाना, हम बिछड़े हुये भाई ही हैं...."
यह कहते हुये ईराकी पूर्वजों की संताने और सदियों से बिछड़े हुये दो भाइयों, 'इ' फार इटली के अरमानी और 'इ' फार इंडिया के अडवानी ने एक दूसरे को गले से लगा लिया, "मेरे भाई, इतने दिनों से कहां खोया हुआ था रे तू!! कितना दुबला हो गया है रे! क्या तुझे कभी अपने भाई की याद नहीं आयी?"
"भैया, आपकी भी तो मूंछे सफेद हो गयी हैं, अब जो मिले हैं तो कभी ना बिछड़ेगे."
अडवानी: तुम काम क्या करते हो?
अरमानी: मैं कपड़े बनाता हूं, डिज़ाइनर आउटफिट्स, और आप...?
अडवानी: ओह, तो तुम दर्ज़ी हो! मैं राजनीति करता हूं, प्रधानमंत्री पद का त्याग करता हूं, रथ यात्रा करता हूं, क्षमा मांगता हूं.....
अरमानी: अरे भैया, आप तो दीदी वाली लाइन में हैं....
अडवानी: दीदी?!?! क्या कह रहे हो छुटके क्या हमारी एक बहन भी है?
अरमानी: हां भैया, हमारी मुंह बोली बहन, मैका ‘इ’ फार इटली में है और ससुराल ‘इ’ फार इंडिया में. सोनिया नाम है उसका, देखो भैया कैसे दिल के तार जुड़ते जा रहे हैं और सदियों से बिछड़ा परिवार एक हो रहा है.....
अडवानी: हे राम! यह मुझसे क्या अनर्थ हो गया छुटकू. खून ने खून को नहीं पहचाना. अनजाने में मैं ने अपनी छोटी सी गुड़िया को कितने ज़ख्म दिये. लेकिन वह औरत नहीं – देवी है छुटकू – देवी!! मैं भगवान को क्या मुंह दिखाऊंगा? प्रायश्चित करने से भी मुझे मेरे पापों से मुक्ति नहीं मिलेगी!
अरमानी: रोइये मत भैया, ईश्वर को कदाचित यह ही गवारा था, अब जब हम एक दूसरे हो पहचान गये हैं, तो फिर क्यों ना मिल रहें. मैं अभी दीदी को फोन करके यहां बुलाता हूं....तब तक आप मेरे इस डिज़ाइनर रुमाल से अपने आंसू पोंछ लीजिये, इन मोतियों को यूं ही ना ज़ाया करिये (कहीं मगरमच्छ लज्जित ना हो जाये!).
अडवानी: जल्दी से मेरी मुनिया (सोनिया) को फोन करके बुलाओ.
अरमानी: (फोन पर बात करते हुये) दीदी, मेरी प्यारी दीदी, मेरी मां समान दीदी...
सोनिया: ज्यादा लम्बा संबोधन मत कर, पढ़ने वाले बोर हो जायेंगे, बोलो क्या बात है?
अरमानी: दीदी हमें सदियों से बिछड़े अपने भैया मिल गये हैं, मैं ना कहता था कि यह देश (इंडिया) चमत्कारों का देश है, राम और कृष्ण का देश है, यहां ईश्वर का वास है, यहां कुछ भी हो सकता है! अच्छा किया जो तुमने राखी के पावन त्योहार के बाद मुझे यहीं रोक लिया. अब जल्दी से आ जाओ, भैया तुमको गले लगाने के लिये बहुत बेताब हैं.
सोनिया: मैं अभी नहीं आ सकती, मेरी बहुत जरूरी बैठक चल रही है – मुस्लिम वर्ग को लुभाने की, उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने की और फिर मुन्नू को भी बताना है कि आज उसे कब, कहां और क्या बोलना है....
अरमानी: यह क्या कह रही हो दीदी, वक्त की आंधियों, पैसे की चकाचौंध और सत्ता के लोभ में तुम इतना बदल गयी हो, कि आज लहू की पुकार भी तुम्हें सुनाई नहीं दे रही है? अगर तुम्हारे दिल में मेरे लिये जरा भी प्रेम है, तुमने जो राखी इस भाई की कलाई पर बांधी थी उस राखी के उन कच्चे धागों पर थोड़ा भी नाज़ है तो मेरी बहन, अपने इस भाई की पुकार को सुन दौड़ती हुयी चली आओ....
सोनिया: मगर मैं अभी कैसे...
अरमानी: .....कोई अगर – मगर नहीं तुम्हें पिज़्ज़ा, पास्ता, मैकरोनी, रोम, वेनिस, वेस्पा की कसम अपने भाई की पुकार सुनो, अपने दिल की पुकार सुनो....क्या तुम्हारा दिल पत्थर का हो गया है, सच्ची खुशियों को पहचानो दीदी, आओ दीदी आओ...
सोनिया: तुमने मेरी आंखें खोल दीं भैया, मैं भटक गयी थी. मैं इस झूठी शान-ओ-शौकत, इस दौलत को लात मारती हूं. आज मुझे सच्चे प्यार और परिवार की कीमत का अंदाज़ा लगा है. मैं आयी, आयी, आयी, आयी.....
अरमानी: ... आ जा! (फोन काटते हैं, और अडवानी की ओर मुखातिब हो कर) दीदी आ रही हैं भैया, आज पूरा परिवार एक हो जायेगा फिर हमें कोई जुदा नहीं कर सकेगा...
अडवानी: इंशा अल्लाह, वाहे गुरू, जीसस...
अरमानी: जय श्री राम....
(सोनिया हड़बड़ाती हुयी प्रवेश करती हैं)
सोनिया: (अरमानी को डांटते हुये) यह क्या ‘जय श्री राम’ लगा रखा है – सांप्रदायिकता फैला रहे हो, देश का चैन-ओ-अमन खराब कर रहे हो...
अरमानी: दीदी मैं तो बस ईश्वर को याद कर रहा था...
सोनिया: मेरे भोले भाई, हिन्दू पूजित ईश्वरों की जय करना सांप्रदायिकता होती है, तुम किसी गैर-हिन्दू धर्म की जय करो.... और धर्म निरपेक्ष बनो!
अडवानी: मुझे आपके इस कथन पर आपत्ति है!
सोनिया: अडवानी जी, आप यहां क्या कर रहे हैं, और आप यह कैसी बहकी हुयी बातें कर रहे हैं - 'इंशा अल्लाह, वाहे गुरू, जीसस'?
.
अडवानी: मैं अपने कथन को वापस लेता हूं और उसके लिये क्षमा याचना भी करता हूं. दरअसल मेरे कहने का मत्लब कुछ और था जिसे मीडिया ने तोड़ मरोड़ कर पेश किया है. इसमें विपक्षी दल और पड़ोसी मुल्क की सांठ-गांठ दिखायी देती है.
.
सोनिया: लेकिन आप यहां कर क्या रहे हैं...?
अरमानी: दीदी, यही तो हैं हमारे बिछड़े हुये भाई.
सोनिया: नहीं! यह नहीं हो सकता. एक बार, सिर्फ एक बार, भगवान के लिये कह दो कि यह झूठ है!
अडवानी: यही सच है बहन, मैं ने आज तक तुमको बहुत पीड़ा दी, तुमको विदेशी कहा, तुमको ताने दिये – अपने इस बूढ़े भाई को और शर्मिंदा मत कर – आ जा मेरी बहन....
अरमानी: दीदी, यही तो हैं हमारे बिछड़े हुये भाई.
सोनिया: नहीं! यह नहीं हो सकता. एक बार, सिर्फ एक बार, भगवान के लिये कह दो कि यह झूठ है!
अडवानी: यही सच है बहन, मैं ने आज तक तुमको बहुत पीड़ा दी, तुमको विदेशी कहा, तुमको ताने दिये – अपने इस बूढ़े भाई को और शर्मिंदा मत कर – आ जा मेरी बहन....
सोनिया: नहीं भैया, गलतियॉ तो मुझ अभागिन से हुयी हैं. मैं ने आपको सांप्रदायिक कहा, आपकी रथ यात्राओं का मज़ाक बनाया. मेरी इन हरकतों से सदियों तक यह समाज मुझे माफ नहीं करेगा, मैंने भाई बहन के पवित्र रिश्ते को नहीं पहचाना... मुझे अपने पैरों पर गिर कर अपने पापों का प्रायश्चित करने दीजिये....
अडवानी: नहीं मुनिया, बहन भाई के पैर नहीं छूती है. चल मेरी बहन इस बेरहम ज़माने से दूर हम अपने घर चलते हैं, जहां अपनापन है, जहां हमारी जड़े हैं....यहां से बहुत दूर...
अरमानी: हम कहां जा रहे हैं भैया? दीदी? 'इ' फार इंडिया या 'इ' फार इटली?
सोनिया & अडवानी: अब हम किसी छोटे 'इ' नहीं जा रहे हैं. हम बड़े 'ई' फार ईराक जा रहे हैं – आखिर वहीं से तो जुड़े हैं हम....
अरमानी: भैया, दीदी, मैं सफर के लिये कुछ ऊंट, खजूर और पानी ले कर आता हूं...
.
सोनिया & अडवानी: छुटकू कुछ एक बुलेट प्रूफ जैकेट भी लेते आना... आ अब लौट चलें, नैन बिछाये बाहें पसारे तुझको पुकारे देश तेरा...
अरमानी: आ जा रेएए..आ जा रे ....
= = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = = =
दूर एक बहुमंजिला इमारत पर खड़े हो कर मायावती और मुलायम अपनी दूरबीन से यह दृश्य देख रहे हैं और अपने खुफिया यंत्रों से उनकी बातें भी सुन रहे थे.
मायावती: माननीय मुलायम सिंह जी, बधाई हो आपकी सूझ बूझ का जवाब नहीं, कैसे दोनों को चुनाव से क्या पूरी राजनीति से ही हटा दिया...हें...हें...हें...
मुलायम: बहन मायावती, इसमें आपका भी बहुत सहयोग रहा है....हें...हें...हें...इसी खुशी में एक कुल्हड़ लस्सी पीजिये.
मायावती: लस्सी क्यों, कोका कोला क्यों नहीं...?
मुलायम: जी वो ऐसा है कि कोका कोला पूंजीवाद का प्रतीक है और लस्सी समाजवाद का....
मायावती: ओह अब समझी! वैसे आपने मुझे ‘बहन मायावती’ कह कर संबोधित किया है, इसलिये मैं आपको राखी बांधना चाहती हूं...
मुलायम: (हड़बड़ा कर पीछे होते हुये) अरे ऐसा अनर्थ मत करिये, मैं अपने शब्द वापस लेता हूं....
मायावती: मतलब क्या है आपका....?
मुलायम: ऐसा वैसा कोई मतलब नहीं है, बस याद आ गया कि आपने लाल जी टंडन को राखी बांधी थी तो उनका क्या हाल हुआ था...आपकी राखी आपको ही मुबारक..
मायावती: अरे जा, बड़ा आया सायकिल पर चलने वाले, मैं तो हाथी की सवारी का प्रस्ताव दे रही थी....
मुलायम: हुंह, तुम्हारे हाथी के चक्कर में सायकिल से भी जाऊंगा....
मायावती: ठीक है – ठीक है, चुनाव में देख मैं कैसे अपने हाथी से तेरी सायकिल रौंदती हूं .... अब भाग यहां से नहीं तो ऐसी ऐसी गालियां दूंगी कि कान के सारे कीड़े मर कर बाहर गिरेंगे...शुरू करूं क्या?
मुलायम: चुनाव में देखते है....(अमर को ढ़ूंढ़ते हुये) अरे भाई अमर कहां हो, चलो यहां से चलें....’कमल’ और ‘हाथ’ तो हट गये लेकिन ‘हाथी’ हटाना मेरे अकेले के बस की बात नहीं है.....
अमर: आया नेता जी, बड़े भैया की नयी फिल्म रिलीज़ हो रही है ना, उनसे ही बात हो रही थी. (फोन पर) अच्छा भैया, जया भाभी को नमस्ते कहियेगा, मैं बाद में फोन करता हूं. (नेता जी से) चलिये नेताजी...अरे आप चिंता मत करिये, चुनाव में हम इस ‘हाथी’ को अपनी ‘सायकिल’ से कुचल देगे...
.
मुलायम: इस बार आप सायकिल चलाइये, मैं बैठता हूं. आपको खींचते हुये तो मेरी कमर में दर्द हो गया.
.
अमर: क्या नेता जी, आप तो पहलवान हैं.
.
मुलायम: अरे भाई हमने तो जवानी में पहलवानी करी थी, आप तो इस उम्र में भी कसरत करते रहते हैं...हें...हें...हें...
.
अमर: क्या नेता जी आप तो यूं ही मजाक करते रहते हैं, चलिये बैठिये. इतने दिनों से कह रहा हूं एक कार ले लीजिये...नेता जी मैं सोच रहा था कि क्यों ना हम अपना चुनाव चिह्न 'व्हेल' रख लें, हाथी से बड़ा भी होता है....
.
मुलायम: अरे अब चुप भी करिये और यहां से निकलिये, वर्ना यह पकाऊ ब्लगोड़ा ऐसे ही लिख-लिख कर पाठकों को पकाता रहेगा...चलिये!
.
अमर और मुलायम सायकिल पर और मायावती हाथी पर बैठ कर प्रस्थान करते हैं और उधर अरमानी, अडवानी और सोनिया का संयुक्त परिवार ऊंट पर बैठ कर ईराक के किये कूच करता है.