बुधवार, जनवरी 10, 2007

पीकदान महादान

रक्तचाप की शिकायत होते ही मैं ने योगासन करना शुरू किया। जिन गुरूजी के पास योगासन सीखने गया उन्होंने पहली शर्त यह रखी कि मैं धूम्रपान छोड़ दूं।

अब जैसे पारो को भुलाने के लिये देवदास चंद्रमुखी की शरण में आया था वैसे ही सुट्टा छोड़ने के लिये हमने गुटखे का सहारा लिया। पारो तो छूट गयी लेकिन हम चन्द्रमुखी के गुलाम बन गये। गुरूजी की शर्त के अनुसार हमने सुटटा तो छोड़ दिया पर तम्बाकू का नशा और योगासन साथ साथ चलते रहे।

पैंट की जेब में आफिस में मिले घूस के मुड़े तुड़े नोटों के साथ गुटखा के पांच छ: पाऊच भी सुस्ताते रहते थे। घर हो या आफिस, दिन भर जुगाली चलती ही रहती थी।

गुटखा खाने के कई फ़ायदे भी हैं जैसे कि जब कोई सवाल पूछे तो आप मुंह ऊपर उठा कर मुंह में भरी हुयी पीक से गरारा करते हुये कुछ भी बोल दीजिये ‘गुड़ गुड़’ करते हुये, जब उसको समझ में नहीं आयेगा तो अगली बार वह खुद ही आपसे प्रश्न पूछने नहीं आयेगा और आप बिना डिस्टर्ब हुये अपने आफिस की कुर्सी पर शान से बैठ कर चैन की नींद सो सकेंगे या वेद प्रकाश शर्मा का लिखा नया जासूसी उपन्यास पढ़ सकेंगे – इच्छा आपकी।

एक फ़ायदा और अगर आफिस में बास परेशान करता है तो चुप्पे से उसके स्कूटर की सीट पर अपनी पीक के साथ साथ अपनी कुंठा भी उगल दीजिये – लगातर 30 दिन तक कर के देखिये आपको कैसे अनंत आंतरिक सुख की प्राप्ति होएगी। मन बड़ा हल्का रहेगा और घर में भी आपको बास के द्वारा दी गयी गालियां याद नहीं आयेंगी। बास अगर बहुतै खड़ूस टाइप का है तो सीट के साथ साथ स्कूटर की हैण्डिल पर भी एक पिचकारी मार दीजिये और फिर आंखें मूंद कर बोलिये,

॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम !!!

फ़ायदों की बात चली है तो यह कैसे भूलें कि गुटखा खाने वालों को ट्रेन और बस में हमेशा खिड़की वाली सीट मिलती है। वह इसलिये कि उन्हें बार बार पिकियाना जो होता है। मान लीजिये कि खिडकी वाली सीट पहले से ही भरी है तो आप ‘विनम्र के साथ’ खिड़की पर बैठे यात्री से बोलिये,”भाई साहब, मैं मसाला खाता हूं और बार बार थूकना पड़ता है, मेहरबानी करके मुझे खिड़की पर बैठने दें।“ 60 प्रतिशत मामलों में तो अगला आपको अपनी सीट दे देगा, लेकिन अगर कोई स्वार्थी और असंवेदनशील cयक्ति ऐसा नहीं करता है तो भी आप निराश ना हों।

आप शान से उसके बगल में बैठ कर अपना गुटखा चबाइये, जब मुंह पीक से लबालब भर जाये तो होठों को गोल करके, नीचे वाले जबड़े को नीचे की तरफ़ करते हुये – कुछ इस टाइप का मुंह बनाइये कि अगला देखते ही समझ जाये कि अब आपके मुंह में मख्खी घुसने भर की भी जगह नहीं है। अब शान से अपनी उंगली को गोल गोल घुमाते हुये खिड़की पर बैठे स्वार्थी और असंवेदनशील व्यक्ति को इशारे से बताइये कि वह आपको खिड़की तक जाने का और थूकने का ‘सेफ़ पैसेज’ दे। अब आगे का विवरण जरा ध्यान से सुनिये, थूकने के लिये खिड़की की तरफ़ जाते हुये यह ध्यान रहे कि आपका लबालब भरा हुआ मुंह उसके ऊपर से होता हुआ जाये। अगर बस या ट्रेन में धक्के लग रहे हैं तो उसका पूरा फ़ायदा उठाइये, कुछ इस तरह के भाव चेहरे पर लाइये कि आपकी पीक बस उस पर टपकने ही वाली है और आप एक सभ्य नागरिक की तरह उसे अपने मुंह में ही कैद रखने का भरसक प्रयास कर रहे हैं। खिड़की तक पहुंचने में बिलकुल भी जल्दबाज़ी मत दिखाइये – आराम से उस व्यक्ति के ऊपर अपना पीक युक्त मुह ऐसे डोलाते रहिये जैसे लैण्ड करने के पहले हवाई जहाज दिल्ली या मुंबई हवाई अड्डों पर देर तक घूमते रहते हैं। कनखियों से उसके चेहरे के भाव देखिये – आपको सीट ना देने का पश्चाताप उसके चेहरे पर साफ़ नज़र आयेगा। अब आप खिड़की तक पहुंचने की चेष्टा करते हुये उसके ऊपर लगभग लेट ही जाइये, अपने शरीर का सारा बोझ उसके ऊपर लाद दीजिये। फिर खिड़की से सिर निकाल कर पीकत्याग कीजिये। इससे आपको दोहरे आनंद की प्राप्ति होगी, थूकते समय आंखें मूंदिये और मन ही मन कहिये;

॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम !!!

बस या ट्रेन से पीकत्याग करते समय अपनी पीक की दिशा पर खास ध्यान रखिये। कहीं ऐसा ना हो कि आपकी पीक किसी राह चलते या पीछे वाली सीट पर बैठे भले मानस के वस्त्रों को मुफ़्त में ही रंग डाले। चलती बस से थूकना भी एक कला है। खिड़की से सिर निकालने के पश्चात अपनी मुंडी थोड़ी सी बस की तरफ़ घुमा कर ‘हाई प्रेशर’ के साथ अपनी पिचकारी बस की बाडी पर मारिये, इससे आपकी पवित्र पीक के इधर उधर भटकने की संभावनायें बड़ी ही सीमित रहेंगी।

पीकत्याग करने के पश्चात जो दो-चार बूंदें होठों के नीचे लुढ़क जाती हैं, उसे अभी पोंछिये मत, उन बूंदों के साथ अपनी मुंडी भीतर करिये और फिर मंडराइये उस व्यक्ति के ऊपर ऐसे कि मानों बूंदें अब टपकी या तब। अब धीरे से अपनी सीट पर वापस आइये, मुंह पोंछिये और मुस्कुरा कर सौम्यता से कहिये, “ थैंक यू भाई साहब।“

थुकाई का यह री-टेलीकास्ट एक बार और करिये और तीसरी बार जब आप थूकने के लिये उठेंगे तो वह खुद ही आपसे कहेगा,”भाई साहब, आप खिड़की पर बैठिये मैं उतर कर पैदल ही चला जाता हूं।“ आप इत्मिनान से खिड़की पर बैठ कर मुफ़्त में ही ठंडी ठडी हवा का आनंद लीजिये, दोनो आंखें मूंद कर मन ही मन कहिये - ॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम !!!

सच में पीकत्याग का आनंद ही कुछ और है! आप शायद ना जानते हों, लेकिन क्रिकेट में जैसे भिन्न प्रकार के स्ट्रोक होते हैं, उसी प्रकार पीक थूकने के भी कई तरीके हैं।

मुझे सबसे अधिक पसंद है आफिस में टेबल के नीचे रखी कचरे की टोकरी में थूकना। इसके लिये आप दाहिने हाथ से कचरे की टोकरी को उठाइये और उसको कमर की उंचाई तक लाइये, फिर अपने कमर के ऊपर के हिस्से को दाहिनी तरफ़ झुकाइये और सिर को कुछ इस तरह एडजस्ट करिये कि आपका मुंह टोकरी से कुछ 3 या 4 इंच दूर रहे। अब आंखें मूंद कर, होठों को गोल बना कर अपनी जिह्वा को तालू की तरफ़ और गालों को अंदर की तरफ़ दबाइये। मुंह की मांस पेशियों के इस तरह चलने से मुंह में भरी कत्थई रंग की खुश्बूदार पीक स्वत: ही आपके होठों के बीच से होते हुये टोकरी में लुढ़कने लगेगी। आंखें बंद रखिये, लुढ़कती हुयी पीक को महसूस कीजिये और स्वर्ग तुल्य आनंद लोक में स्वयं को खो जाने दीजिये।

॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम !!!

चलती हुई कार से पीक थूकने के समय यह देखिये कि आप दूसरे की कार में बैठे हैं या अपनी कार में बैठे हैं। यदि आप दूसरे की कार में हैं तो नि:संकोच खिड़की से सिर बाहर निकालिये और पिचकारी छोड़ दीजिये। इस प्रक्रिया से कार के ऊपर आपकी सुगंधित पीक के प्रेम चिह्न अंकित हो जायेंगे। वैसे भी मित्रों के बीच प्रेम की निशानियों का लेन-देन तो होता ही रहता है। सोचिये, जब आपका मित्र अपनी कार साफ़ करेगा तो आपके द्वारा दी गयी प्रेम की इस निशानी को देख कर कितना प्रसन्न होएगा और मंद मंद मुस्कुरा कर कैसे प्रेम से आपको याद करेगा।

खिड़की से थूकने के बाद, सुगंधित पीक की दो-चार बूंदें जो आपकी ठुड्डी पर लुढ़क गयी थीं, उनको धीरे से अपने अंगूठे के नाखून से ऐसे साफ़ करें मानो कि आप शेव कर रहे हों। अब ‘चुपके’ से अपने अंगूठे को कार के सीट कवर पर पोंछ दीजिये।

॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम !!!

यह तो रही बात दूसरे की कार से थूकने की, अब बात करते हैं अपनी कार से थूकने की। इसमें थोड़ा केयरफुल रहने की आवश्यकता है। इसको करने के लिये आपको एक वैज्ञानिक का दिमाग और एक कलाकार का हृदय दोनो चाहिये होगा।

कार चलाते हुये देखिये कि आपके आगे की सड़क पर अधिक भीड़ भाड़ तो नहीं है, अब धीरे से अपने बगल वाला दरवाज़ा खोलिये – ध्यान रहे यह बड़ा ही टेक्निकल मामला है – दरवाज़ा बहुत थोड़ा सा ही खुलना है (बस इतना कि आपकी पीक कार के किसी भी भाग को बिना सहलाये हुये बाहर का रास्ता ढ़ूंढ़ ले) नहीं तो कोई कमबख़्त मोटरसाइकिल पर सवार, सूरदास की तरह आपको ओवरटेक करता हुआ आपके दरवाज़े को ही ले उड़ेगा और फिर बाद में बेफ़िजूल आपसे झगड़ा भी करने लगेगा। जी हां, बिलकुल ठीक कह रहे हैं आप – उल्टा चोर कोतवाल को डांटे। अब आजकल के लड़के अंधाधुंध चलाते हैं इस चीज़ का लिहाज ही नहीं कि भाई आगे वाली गाड़ी का दरवाज़ा अचानक खुल सकता है – पता नहीं काहे को इतनी हड़बड़ी में रहते हैं हर वक्त! अब भाई अगर कार में बैठ कर कोई संभ्रांत व्यक्ति गुटखा चबा रहा है तो थूकने के लिये दरवाज़ा तो खोलेगा ही ना – यह तो खुद ही समझ लेने वाली बात है।

ख़ैर, अब आप एक हाथ से दरवाज़ा पकडे हैं और एक हाथ से स्टीयरिंग और आपकी नज़रें अभी भी सामने सड़क पर ही हैं। अगर सामने मैदान (सड़क) साफ़ है तो अपने शरीर के ऊपरी भाग को इतना झुकाइये कि आपका सिर दरवाज़े के निचले हिस्से तक जा पंहुचे और फिर गालों को कस कर दबाते हुये पिचकारी मारिये – पिच्च से सड़क पर!

॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम !!!

पीकने की यह इश्टाइल बड़ी ही एडवेन्चरस है, मैं तो अब भीड़ भाड़ वाले रस्ते में भी इस प्रकार पिकिया लेता हूं, लेकिन हां भीड़ भाड़ वाली सड़कों पर यह काम किस्तों में करता हूं। मतलब, थोड़ा थूका फिर मुंडी उठा कर देखा कि सड़क क्लियर है या नहीं फिर थोड़ा थूका ऐण्ड सो आन। हाई वे पर इस तरीके से थूकना बहुत थ्रिलिंग लगता है – लाइक जेम्स बाण्ड।

थूकने की इस विधि में यह अवश्य देखियेगा कि हवा किस तरफ़ से आ रही है, यदि हवा का रुख कार के पीछे से है तो इस विधि का प्रयोग कदापि मत करिये और हवा का रुख बदलने तक अपनी थुकास पर काबू रखिये, कंट्रोल ना कर पायें तो निगल जाइये लेकिन किसी भी अवस्था में कार को साइड में खड़ा कर के मत थूकियेगा ऐसा करना कम सब पीकबाज़ों का घोर अनादर होगा। थूको तो शान से थूको – चलती हुयी कार से थूको आनंदित मन से कहो ॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम !!!

पैदल चलते हुये सड़क पर थूकना भी बहुत आनंदमयी है। ऐसा करते हुये मुझे लगता है कि मैं किसी पौराणिक महाकाव्य का पूजनीय चरित्र हूं। जब मैं अपनी धारदार लाल पीक सड़क पर मारता हूं तो ऐसा लगता है कि मानो मैं ने अपने तरकश से तीर खींच कर धरती (सड़क) का सीना बींघ दिया हो और उसमें से रक्त की धार फूट पड़ी हो। ऐसा लगता है कि मैं हाथों में धनुष उठाये, सिर पर मुकुट धारे, युद्ध भूमि में श्याम वर्णीय असुरों का वध करके मानव जाति की रक्षा कर रहा हूं। कैसी अद्भुत अनुभूति है – आनंद की चरम सीमा – देवत्व - ॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम !!!

हम पीकत्यागियों के आदर में हमारे नगर के सभी भवनों की दीवार का निचला 3 फ़ुट का हिस्सा गेरू से रंगवा दिया गया है।

पीक के कारण आज धर्म से मुंह मोड़ चुका समाज पुन: धर्म से जुड़ रहा है – घर या भवन की जिन दीवारों पर पथिक थूका करते थे वहां लोगों ने धार्मिक टाइल्स लगवाने शुरू कर दिये हैं। ध्यान रहे कि इन टाइल्स पर बनी छवियां किसी एक ही धर्म या जाति की नहीं है – इसमें हिन्दू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन सभी धर्मों का समावेश है। इससे यह भी सिद्ध होता है कि पीकत्यागियों के कारण देश में धार्मिक एकता का वातावरण बन रहा है।

आप सब भी गुटखा खाइये, पीकदान अपनाइये, सभी धर्मों का आदर करना सीखिये, हमसे जुड़िये, शान से थूकिये और आंख मूंद कर मन ही मन कहिये

॰॰॰अहहा॰॰॰अहहा
॰॰॰अहहा॰॰॰अहहा
॰॰॰आनंदम्
॰॰॰आनंदम !!!

पीकदान – महादान!

18 टिप्‍पणियां:

rajeshgupta ने कहा…

॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम !अएसा आनन्द आया कि मारे तैश के बेड्र रूम की विन्डो से ही पिकिया दिया…।

बेनामी ने कहा…

क्याआआआ लिखते हो भैया कसम से :D
मजा आ गया। अपन तो पान अथवा पान पराग खाते नहीं मगर अब पता चला कि खाने वाले को क्या आनंद आता होगा ..।
बहुत अच्छा लिखा है।

obelix ने कहा…

॰॰॰अहहा॰॰॰अहहा
॰॰॰आनंदम्
॰॰॰आनंदम !!!

बेनामी ने कहा…

bhiya itna close observation.....lagta hai "sarkari daftaro' ke bahut ki chakkar mare ho.....bahute maza aaya....

Udan Tashtari ने कहा…

यार मार डालोगे क्या हंसा हंसा कर. क्या जबरदस्त लिखे हो, यह तो बिना मसाला खाने वाला लिख ही नहीं सकता...बहुत खुब,बनाये रहो महौल. शानदार...

बेनामी ने कहा…

॰॰॰अहहा॰॰॰अहहा
॰॰॰अहहा॰॰॰अहहा
॰॰॰आनंदम्
॰॰॰आनंदम !!!

बेनामी ने कहा…

॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम इसको पडने के बाद तो वाकई लगता है पीकदान महादान और इसी दान के बलबूते आप जबरदस्त लिख गये
पारो तो छूट गयी लेकिन हम चन्द्रमुखी के गुलाम बन गये
तभी तो किशोर दा गा गये हैं चन्द्रमुखी हो या पारो कि फर्क पेंदा यारो

संजय बेंगाणी ने कहा…

॰॰॰अहहा॰॰॰अहहा
॰॰॰आनंदम्
॰॰॰आनंदम !!!

समय रहते चेता दिया गुरू. वरना यह जिन्दगी बीना पिकदान का आन्नद प्राप्त किये बित जाती. अभी घनघोर पीक पैदा करनेवाला मसाला ले आता हूँ, तथा पीकमार साधना में लिन हो जाता हूँ.

पंकज बेंगाणी ने कहा…

॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम

क्या सचमुच इतना मजा आता है? भाई, मैं गुटखा खाना चाह्ता हुँ.... :)

रंजू भाटिया ने कहा…

हा हा...सच में पढ़ के आनन्द आ गया .....बहुत ही सुंदर तरीक़े से शब्दो को पिरोया है !!॰॰॰आनंदम्


र्रन्जू

Jitendra Chaudhary ने कहा…

॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम !!!
वाह क्या बात है प्रभु?
कहाँ थे इतने दिन? तुम्हारा गुटखा पुराण का पीकदान महादान अध्याय पढकर, तो तन-मन आनंदित हो गया। अब तो इसका प्रैक्टिकल करने की इच्छा हो रही है। तमने तो ज्ञान चक्षु ही खोल दिए, समस्त प्राणीजनों का तरफ़ से शत शत प्रणाम स्वीकार करो।

बेनामी ने कहा…

॰॰॰अहहा॰॰॰अहहा
॰॰॰अहहा॰॰॰अहहा
॰॰॰आनंदम्
॰॰॰आनंदम !!!

अनुराग जी, आप तो छा गये!!! क्या लिखा है भाई, लगता है अब हमें भी यह आनन्द लेना पड़ेगा। :)

ePandit ने कहा…

॰॰॰अहहा॰॰॰आनंदम्॰॰॰आनंदम !!!

थैंक्स फोरम दिस 'पीकदानम महादानम' स्पेशल अध्यायम। आवाम सर्वम मस्ट इट गुटखाम।

धन्य धन्य त्वं महाभागम हू टोल्ड अस नादानम दिस ग्रेट फिलोस्फी ऑफ पीकदानम।

बेनामी ने कहा…

भाई अनुराग जी,
पीकदान की विभिन्न प्रक्रियाओँ का इतना सहज, गहन और चित्रात्मक विश्लेषण! और साथ ही उसके लाभोँ का वर्णन - अतीव आनन्दम्। जुगाली करते हुए ही मैंने इस लेख का आनन्द लिया और बड़ी मुश्किल से पीकदान को स्थगित रखा।

मैं इन सभी प्रक्रियाओँ की सत्यता को पूर्णत: प्रमाणित करता हूँ।

इतना गम्भीर और गहन अध्ययन तो शेरलॉक होम्स ने भी किसी घटना का नहीँ किया होगा।

दूसरी बात यह कि यदि यह लेख किसी गुटखा निर्माता ने पढ़ लिया तो वे अपने उत्पादों के आवरणों पर उनके अनुप्रयोग से होने वाली सम्भावित हानियोँ की चेतावनी के साथ-साथ इन लाभोँ का भी प्रकाशन करने लगेंगे।

और हाँ, जो सज्ज्न इसका प्रयोग आरम्भ करना चाहते हैं तो वे जान लें कि इसके प्रयोग से हानियोँ की सम्भावना अधिक है। (नेपथ्य में - यह लेख पढ़ कर यदि सभी ब्लॉगर पान खाने लगेंगे तो फिर तो सभी खिड़की वाली सीट के प्रत्याशी हो जायेंगे)

बेनामी ने कहा…

हा हा हा! वाह वाह अनुराग भाई! आपने तो ऐसा यथार्थ दृश्य दिखाया कि बस!!

अनूप शुक्ल ने कहा…

लेख पढ़कर आनंदित हुआ !

अतुल श्रीवास्तव ने कहा…

पीक में ही तो असली स्वाद घुला होता है. उसे थूकना तो शेखचिल्लियों का काम है जो केला छील कर छिलका खा लेते हैं और अंदर का माल कूड़ेदान में फेंक देते हैं.

घोर पापम घोर पापम.

Vishal Bachchan ने कहा…

bahut majja aaya