शुक्रवार, जनवरी 19, 2007

इंगलिस इस्कूल - भाग 1

सेंट रैदास कान्वेन्ट, राधे हलवाई, लामाट और फ़्रांसिस

काल चक्र बड़ी तेजी से घूमता है और इस बात का अहसास मुझे तब हुआ जब मेरे बेटे ने अपने तीसरे जन्मदिन का केक काटा।

मुझे तो ऐसा लगा कि मैं पल भर में हरियाले देवानंद से पतझड़िया ए के हंगल बन गया - लीडिंग रोल्स बंद और कैरेक्टर रोल्स शुरू। दुख इस बात का अधिक हुआ कि अब सुमन भाभी की छोटी बहन, जो फ़ैज़ाबाद से लखनऊ पढ़ायी करने आई हुयी है, मुझे ‘हाय अनुराग’ की संती कहीं ‘नमस्ते अंकल’ कहना ना शुरू कर दे। सोच कर ही करंट लग गया और साथ ही साथ मारे टेंशन के दस बीस बाल भी सफ़ेद हो गये।

खैर, काल चक्र को कौन रोक पाया है?

अपनी परेशानी बीबीजी के कही,” मुन्ना अब सयाना हो गया है, हमें उसकी भावी ज़िंदगी के बारे में सोचना चाहिये।“

बीबीजी ने आंखें बाहर निकालते हुये मुझे प्रश्नवाचक दृश्टि से देखा और फिर खिलौनों के खाली डब्बों से खेलते हुये मुन्ने की ओर देखा। मैं उनकी शंका समझ गया,” देखो अब समय आ गया है कि मुन्ना अपनी जिम्मेदारियां समझे, अच्छे अभिभावक का यह दायित्व है कि वह अपनी संतान को सामाजिक चुनौतियों के लिये सक्षम बनायें। अभी तक तो हम यह करने में पूरी तरह असफल रहे हैं, देखो तो नालायक को अपनी जिम्मेदारियां भूल कर कैसे खेल रहा है॰॰॰॰॰”

“॰॰॰ कैसी अजीब सी बातें कर रहे हो!”, बीबीजी ने बीच में ही बात काटते हुये कहा, “ अभी तो तीन ही साल का हुआ है॰॰॰।“

“तो? क्या सारी ज़िंदगी उसे गोद में बैठाए रहोगी? दुनिया बदल गयी है, कम्पटीशन बढ़ गया है, उसे अच्छे स्कूल में ऐसे ही दाखिला नहीं मिल जायेगा, बहुत मेहनत करनी पड़ेगी जिसके लिये हमें अभी से ही कमर कसनी पड़ेगी।“

बीबीजी को मेरी बात समझ में आ गयी, “ सही कहते तो, देखो तो नालायक को कैसे खेलने में मस्त है, यही हाल रहा तो एक दिन खानदान की नाक कटवायेगा, अभी बताती हूँ॰॰॰।“ बीबीजी लपक कर उसके पास पहुँचीं और उसकी गैर-जिम्मेदाराना हरकतों के लिये उसे एक कंटाप रसीद किया, “ चल बैठ कर पढ़! दिन भर या तो खेलता रहता है या टी वी देखता रहता है॰॰॰।“ इससे पहले कि सकपकाया हुआ मुन्ना कुछ समझ पाता, बीबीजी ने खींचते हुये उसे सोफ़े पर जा पटका और किताब थमाते हुये हुक्म दिया, “ पढ़ो बैठ कर ॰॰॰ आज से टी वी देखना, खेलना-कूदना, पिक्चर-शिक्चर सब बंद!!”

हमारे बेचैने दिल को कुछ सुकून मिला और बीबीजी का हौसला बढ़ाते हुये हमने कहा, “ बिलकुल ठीक किया तुमने! इस नालायक को एक और लगाओ – तब अक्ल ठिकाने लगेगी!”

नालायकियत की हद देखिये, वहीं सोफ़े पर बैठ कर, सकपकाया हुआ, आँखें फाड़-फाड़ कर हमें देखे जा रहा था मानो कि उसे कुछ समझ में ही ना आया हो, यह नहीं हुआ कि पढ़ना शुरू करे। यकीन मानिये मन तो किया कि पाँच छ: हाथ मैं भी जड़ दूँ, लेकिन मेरा नेचर काफ़ी शांत टाइप का है मुझे गुस्सा नहीं आता है – गुस्से से विवेक की हानि होती है।

बीबीजी ने मेरे पास आकर पूछा, “ क्या सोचा है?”

“अगले साल इस्कूल में नाम लिखाना है, इंगलिस इस्कूल में नाम लिखवाने की सोच रहा हूं।“

“सही सोचा, इंडिया में बिना इंगलिस के काम नहीं चलता है, हिन्दी फिल्मों में काम करने वाले भी अंग्रेजी में ही इन्टरव्यू देते हैं, हिन्दी फिल्मों की पत्रिकायें भी अंग्रेजी में छपती हैं, वह दिन दूर नहीं जब शायद हिन्दी साहित्य भी इंगलिस में ही लिखा जायेगा। कौन सा इस्कूल सोचा है ॰॰॰॰?“

“कानवेन्ट इस्कूल के बारे में सोच रहा हूं, अब हमारे शहर में तो दो ही कानवेन्ट इस्कूल हैं ॰॰॰ “

बीबीजी की बड़ी गंदी आदत है, बीच में ही बात काटते हुये बोल पड़ीं, “ कैसी बात करते हो, तमाम कानवेन्ट इस्कूल हैं, अभी पिछले हफ़्ते ही डंडहिया की सब्जी मंडी में एक नया कानवेन्ट खुला है “सेन्ट रैदास कानवेन्ट इस्कूल”

“अरे, वह नकली कानवेन्ट इस्कूल हैं, वहां पर हिन्दू टीचरें पढ़ाती हैं। असली कानवेन्ट में ‘फ़ादर’ होते हैं और ईसाई टीचरें पढ़ाती है। किलास में ईसा मसीह की सूली वाली मूर्ति लगी होती है, बड़ा सा प्ले-ग्राउंड होता है, बच्चे इंगलिस में बतियाते हैं – ‘सेन्ट रैदास’ हुंह॰॰॰ राधे हलवाई ने खोला है तुम्हारा यह ‘सेन्ट रैदास कानवेन्ट’, मिठाई की दुकान नहीं चली तो इस्कूल खोल लिया है॰॰॰॰।“

“तो फिर कौन सा इस्कूल सोचा है?”

“या तो लामाट या फिर फ़्रांसिस।“

“लामाट ज्यादा अच्छा है, वहां ‘गदर’ फिल्म की शूटिंग भी हुयी थी। वहां के बच्चे भी फ़र्राटेदार इंगलिस बोलते हैं, बिलकुल शाहरुख खान की तरह। एक दिन मुन्ना भी शाहरुख की तरह गिट-पिट इंगलिस बोलेगा – यू बगर, यो मैन, हे बेबे, ओह शिट, खूल मैन, यू डम्बो॰॰॰॰।“

“हां, लेकिन वहां एडमिशन बड़ी मुश्किल से होता है, अभी से ही मुन्ने से इंगलिस में बोलना शुरू करो।“

“I तो always talking to Munaa in inglis, लेकिन Amma and Babuji speaks to Munna always in Hindi. I teaches him cat, dog, cow but Amma and Babuji speaking बिल्ली, कुत्ता, गाय। तुम उनको भी समझा दो, आखिर if he can not getting admission in good inglis iskool तो you are only blaming to me in future, हाँ।”

“अब, अम्मा और बाऊजी को कहां इंगलिस आती है कि मुन्ने से अंग्रेजी में बात करेंगे?”

“लो तुम भी तो हिन्दी में ही बात करते हो, तो Amma and Babuji you send them inglis speaking course – learn inglis in 90 days. I speaks good inglis तो I am helping to them to learning in good inglis when they are in home.”

“OK, I talking with them.”

“मेरा नाम मत लेना, नहीं तो कहेंगे कि बहू ने ही कान भरे हैं। तुम तो मेरा नेचर जानते हो मैं तो कुछ बोलती ही नहीं हूं।“

बड़ी मुश्किल से अम्मा और बाऊजी को बच्चे के भविष्य का हवाला देते हुये “Learn English in 90 days” वाला कोर्स ज्वाइन करवाया।

अम्मा और बाऊजी के कोर्स ज्वाइन करते ही, यह बात आग की तरह पूरे मोहल्ले में फैल गयी कि हमने मुन्ने को कानवेन्ट या असली इंगलिस इस्कूल में डालने का फ़ैसला किया है। एक के बाद एक मोहल्ले के लोग अपनी मुफ़्त सलाह देने लगे।

सैय्यद चचा मिले,”और बर्ख़ुरदार, सुना है साहबज़ादे को अंग्रेज़ी तालीम देने का ख़्याल रखते हैं आप।“

“जी, चचा।“

“मियाँ, बुरा मत मनना, ये कमबख़्त अंग्रेज़ी स्कूल ठीक से तालीम नहीं देते हैं। महज़ अंग्रेज़ी बोलना सिखा देते हैं। नींव पुख़्ता नहीं बनाते – हमारे और आप के मुकाबले में अंग्रेज़ी स्कूल के पढ़े लोग खड़े ही ना हो पायेंगे। अंग्रेज़ी भी काफ़ी गलत-सलत बोलते हैं और लिखते तो इतनी ख़राब हैं कि, मियाँ लाहौल विला कुव्वत, सिर्फ़ तरस ही आती है। आप हमारे ज़ाकिर साहब के भतीजे से नहीं मिले हैं, ताउम्र उन्होंने मदरसे में तालीम पायी और अब लंदन में रहते हैं और माशा अल्लाह क्या अंग्रेज़ी बोलते हैं कि गोरे भी पानी भरें!”

हमें भी मानो अचानक जैसे मिर्गी का दौरा पड़ गया था जो हम बोल बैठे, “चचा, ऐसी बात नहीं है, इंगलिस इस्कूल में भी अच्छी पढ़ायी होती है ॰॰॰॰॰”

“अमाँ जाओ, तुमसे तो बात करना ही बेकार है, जब देखो बहस करने लगते हो। बड़ों की बात ना मानने की तो तुमने जैसे कसम खायी है, जो तुम्हारी मर्ज़ी में आये करो। सत्तर साल की उम्र में वालिद को अंग्रेज़ी सिखवा रहे हो, शर्म नहीं आयी तुम्हें – नामाकूल।“

सैय्यद चचा की बात बड़ी पिन्च करी, लेकिन हमने यह सोच कर उन्हें क्षमा कर दिया कि बेचारे पुराने ख़्यालात के बुजुर्ग इंसान हैं और उम्र के चलते कुछ सठिया भी गये हैं।

चंद्रा अंकल मिले उन्होंने भी चेता,” अंग्रेजी इश्कूल में पढ़ाओगे तो लड़का ईसाई बन जायेगा, फिर रोना जब वह मंदिर में अगरबत्ती की जगह मोमबत्ती जलाएगा। बेगैरत इंसान ! हिन्दी पढ़ने वाले क्या सब भीख मांगते हैं जो तुमको अंग्रेज़ियत का भूत सवार है। अरे, अपने धर्म के बारे में तो कुछ सोच लिया होता।“

हमने भी गुस्से में उन्हें चार बात सुना दीं,” अंकल आपको हमारा हुक्का पानी बंद करना हो तो करो, लेकिन हमने भी ठान ली है – मुन्ने को असली वाले अंग्रेजी इस्कूल में ही पढ़ायेंगे।“

“ हां, हां पढ़ाओ, वहां जाकर ड्रग्स लेना सीखेगा तब मिलना, बेशरम!”

ऐसे में हमारे बचपन के मित्र राजू ने बड़ी हिम्मत बंधाई। उसने हमें बताया कि मुन्ने को मिसेज डिक्रूज़ की कोचिंग में डाल दो। राजू के अनुसार मिसेज डिक्रूज़ कुछ बीस हज़ार रुपये फ़ीस लेती हैं और उनके यहां तीन महीने की कोचिंग पाकर मुन्ना पक्के तौर पर लामाट या फ़्रांसिस में दाखिला पा जायेगा। साथ में मिसेज डिक्रूज़ बच्चे के पापा और मम्मी की भी ट्रेनिंग करती हैं जिससे इंटरव्यू में वो भी अच्छा इंप्रेशन जमा सकें।

बिना वक्त बर्बाद किये हुये, अगले दिन हमने अपना एल एम एल 150 निकाला, आगे मुन्ने को खड़ा किया और पीछे बीबीजी को बैठा कर चल पड़े मिसेज डिक्रूज़ के घर।
( क्रमश: )

9 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

हा हा हा, क्य मेटेरियल लाये हो, यार!!

मजा आ गया, वैसे तम्हारे चन्द्रा अंकल कि आधी बात सहिये है:
बेगैरत इंसान ! हिन्दी पढ़ने वाले क्या सब भीख मांगते हैं जो तुमको अंग्रेज़ियत का भूत सवार है। अरे, अपने धर्म के बारे में तो कुछ सोच लिया होता।

-हिन्दु धर्म की भाषा हिन्दी!! :)

Manish Kumar ने कहा…

achcha likha hai..agle bhag ke intezaar mein

बेनामी ने कहा…

वाह अनुराग भाई,
विभिन्न शिक्षा आयोगों की रिपोर्टें -- उनके बड़े-बड़े प्रतिवेदन -- जो बात शिद्दत के साथ नहीं कह पा रहे हैं वह आपका यह मजाहिया शैली में लिखा व्यंग्य लेख कह रहा है . क्या बात है! इसे कहते हैं बाएं हाथ का मुक्का . ऐसे ही लिखते रहें .

बेनामी ने कहा…

हमेशा की तरह बेहतरीन पोष्ट !

अतुल श्रीवास्तव ने कहा…

धिक्कार है चन्द्रा अंकल जैसे लोगों पर जो मेरे जैसे व्यवसायियों के पेट पर घूंसे लात मारने पर तुले हैं. अरे भला हो मूरख जनता कि हमने भी गाँव गाँव और गली गली इंगलिस स्कूल खोलने का प्लान बना डाला. और तो और गाजीपुर, बलिया और फैजाबाद जैसी जगहों में स्कूल की फ्रैंचाईज़ी भी बेच डाली है. भैय्या हमें तो रोकड़े से मतलब है - देश, धर्म और भाषा गये तेल लेने ;)

बेनामी ने कहा…

सही कमेंट मारे हो गुरू, आगे पढके देखता हूँ कि मुन्ने को एडमिशन मिला कि नही। वैसे अपना मानना है कि ए के हंगल के साथ जा रहा है मिल ही जायेगा

बेनामी ने कहा…

आपकी कहानी चुरायी जा चुकी है, चुराने लायक कहानी लिखने का शुक्रिया।

बेनामी ने कहा…

Bahut achha likhte hoo.

अनूप शुक्ल ने कहा…

आज इसे फ़िर से खोज कर पढ़ा! बहुत अच्छा लगा। अद्भुत! लिखते रहना चाहिये भैये आपको!