मैंने पहली बार अपनी किसी पोस्ट पर अन्य चिठ्ठाकारों के नामों का प्रयोग किया है. यह कहना तो मुश्किल है कि 'चरित्र' काल्पनिक हैं लेकिन यह जरूर सच है कि घटनायें, विवरण, साक्षात्कार, बातचीत या उनके द्वारा कहे गये कथन पूर्णरूप से मनगढ़ंत हैं. इस लेख (?) में केवल खुराफ़ात ही भरी हुयी है और किसी भी प्रकार की कोई विचार धारा तो है नहीं. इसलिये, यह कहना बेकार ही होगा कि इस लेख की विचारधारा लेखक की अपनी है. वैसे आप मान्यवरों को यदि कोई विचारधारा दिख जाये तो मुझे अवश्य बताइयेगा - मैं भी बुद्धिजीवियों की श्रेणी में आ जाऊंगा.
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इस लेख को एक आँख से पढ़िये और दूसरी से निकाल दीजिये. किसी प्रकार का निष्कर्ष निकालना आपके मानसिक संतुलन के लिये हानिकारक साबित हो सकता है.
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श्री समीरलाल, श्री संजय बेंगाणी, श्री पंकज बेंगाणी, श्री शुएब और 'कविराज' श्रेष्ठ और नामची चिठ्ठाकार हैं और इस लेख को मैं उनको समर्पित करता हूं.
तरकश पर तीर
श्री नरेन्द्र मोदी की छत्र छाया में बैठ कर, धनाड्य बनने की अभिलाषा से स्व-व्यवसाय में लिप्त, पूंजीवादी बेंगाणी बंधुओं ने महात्मा गाँधी की “स्वावलंबन” की विचारधारा पर एक बार फिर कुठाराघात किया है.
बेंगाणी बंधुओं द्वारा संचालित “तरकश” ने हाल ही में “हिंदी के उदीयमान चिठ्ठाकार” प्रतियोगिता का आयोजन किया, जिसके परिणाम 7 जनवरी 2007 को घोषित किये गये. पाश्चात्य सभ्यता की ओर उन्मुख बेंगाणी बंधुओं द्वारा आयोजित इस बोगस प्रतियोगिता के परिणाम पहले से ही जग जाहिर थे.
स्वर्ण, रजत और कॉस्य की तीन श्रेणियों के लिये चार विजेता घोषित किये गये. इन चार विजेताओं में से दो ब्लगोड़े ‘विदेशी’ हैं. यह अत्यंत लज्जा का विषय है कि राष्ट्र भाषा के उत्थान का जामा पहन कर बेंगाणी बंधुओं ने विदेशी शक्तियों का सहारा लिया. इससे भारतीय जनता पार्टी की विदेशियों पर निर्भर रहने की तथा विदेशियों के हाथों आत्म सम्मान बेंच देने की सोच साफ नज़र आती है. आश्चर्य का विषय है कि जिस भाजपा ने पिछले चुनाव के पश्चात श्रीमती सोनिया गाँधी के विदेशी होने के मुद्दे पर बवंडर खड़ा किया था, उसी भाजपा के अनधिकारिक प्रतिनिधि (बेंगाणी बंधु) आज हिंदी के उदीयमान चिठ्ठाकार का ताज स्वयं विदेशियों के सिर पर पहना रहे हैं.
हमारे विचार से यह पूरा चुनाव उत्तर प्रदेश के चुनावों को ध्यान में रख कर पूर्व नियोजित तरीके से करवाया गया था. अल्प संख्यक समुदाय को लुभाने के लिये, चार विजेताओं में से एक ब्लगोड़ा अल्पसंख्यक समुदाय का जानबूझ कर रखा गया था, जिससे भाजपा धर्म निरपेक्ष होने की अपनी झूठी छवि से चुनाव कर्ताओं को रिझा सके.
इस प्रकरण के विषय में हम ने, इस चुनाव से जुड़े कुछ लोगों से बात चीत करने की चेष्टा करी.
सर्व प्रथम हमने श्री पंकज बेंगाणी से संपर्क करना चाहा. उन से मिलने के कई असफल प्रयासों के बाद यह पता चला कि श्री पंकज दिल्ली में चल रहे ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ में प्रवासी भारतीयों को लुभाने के लिये अपने बंदरों के साथ मदारी का नाच दिखाने गये हुये हैं.
हमने स्वर्ण कलम विजेता श्री समीरलाल से कनाडा में संपर्क किया. उनसे बातचीत के कुछ अंश;
हम: स्वर्ण कलम से नवाज़े जाने की मुबारकबाद!
श्री समीरलाल: थैंक यू, जी यह तो होना ही था, आफ़्टर ऑल वी डेलिवर द क्वालिटी स्टफ़, यू सी!
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हम: और कोई बात जो आप शेयर करना चाहेंगे?
हम: और कोई बात जो आप शेयर करना चाहेंगे?
श्री समीरलाल: ऑफ़ कोर्स, अपार्ट फ्राम क्वालिटी, वी आल्सो फोकस्ड ऑन दी पब्लिसिटी एण्ड प्रमोशन. दैट इस अनदर इंपार्टेंट आस्पेक्ट.
हम: आप अपनी गुणवत्ता इतनी अच्छी कैसे बनाये रखते हैं...?
श्री समीरलाल: चलिये यह सीक्रेट भी आप को बता देते हैं – हम आउटसोर्सिंग करवाते हैं – इंडिया में हमारा एक ऑफ शोर ब्लाग चलता है, वहीं से हम बेहतरीन रचनायें लिखवाते हैं और फिर उनको अपने नाम से छाप देते हैं.
हम: मतलब यह कि रचनायें आप स्वयं नहीं रचते...???!!!
श्री समीरलाल: (सकते में आ जाते हैं और घबरा कर बोलते हैं) अरे मैं तो मज़ाक कर रहा था – आप अन्यथा ना लें – लीजिये स्माईली भी लगा देता हूं :) :) :)
श्री समीरलाल हड़बड़ा कर फोन काट देते हैं. हमारे कुछ प्रश्न रह ही गये जैसे कि उन्होंने वोट पाने के लिये वोटर्स को कितनी टिप्पणियां घूस में दी और बूथ कैप्चरिंग के लिये बेंगाणी बंधुओं को क्या किकबैक दिया.
हमने दूसरे विदेशी ब्लगोड़े श्री शोएब से संपर्क किया;
हम: आपको रजत कलम की बधाई.
श्री शोएब: इनायत!
हम: आपको ऐसा नहीं लगता कि आपको पुरस्कृत करके भाजपाई आपके अल्पसंख्यक होने का लाभ उठा रहे हैं? आपको ऐसा नहीं लगता कि आप के नाम से उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यकों के वोट बैंक पर सेंध लगाने का अवसर ढ़ूंढ़ा जा रहा है?
श्री शोएब: आप इतने वाहयात तरीक़े से सोच कैसे लेते हैं....?
हम: जी हम आदत से मजबूर हैं, हमारी सोच ही ऐसी है, हमें हर पहलू में चालबाजी और राजनीति दिखायी देती है. गरीब मरे तो राजनीति और जिये तो राजनीति, देश तरक्की करे तो राजनीति और पिछड़े तो राजनीति, दंगे हों तो राजनीति और ना हों तो भी...यही तो बुद्धिजीवी होने का प्रमाण है, कुछ ना कुछ तो बोलना ही है ना अन्यथा लोग भूल जायेंगे. जब भूल जायेंगे तो फिर वोट कैसे देंगे? खैर, आपने हमारी बात का जवाब नहीं दिया....
श्री शोएब: (बड़ी मुश्किल से हंसी रोकते हुये) भैये, अगर भाजपा मेरे नाम से अल्पसंख्यक वोट मांगेगी तो चुनावी रैलियों में उनको सड़े अण्डे और टमाटरों के अलावा कुछ ना मिलेगा. हमारे नाम से ‘वह’ क्या तूफ़ान उठायेंगे, हम तो खुद ही तूफ़ान हैं – हमें उठाया तो हम तो (उनकी) हस्ती ही मिटा देंगे....
श्री शुएब से बात करके लगा कि भाजपाइयों उनको पुरस्कृत कर उनके मन में अपनी मीठी मीठी बातों का विष भीतर तक घोल दिया है. एक ‘विदेशी’ होने के कारण श्री शोएब यह देख नहीं पा रहे हैं कि इसमें भाजपा समर्थित ‘और भी बड़ी’ विदेशी ताकतों का हाथ है जो भारतीय अर्थव्यवस्था तो पूर्णरूप से अपने चंगुल में ले कर भारत को परनिर्भर बनाना चाहती हैं. और यही तो चाहते थे बेंगाणी बंधु, ताकि वह अपने पूँजीवादी इरादों में सफल हो सकें. ऐसी गूढ़ चाल, ऐसा भयंकर षडयंत्र ! विदेशियों (एन आर आई – नेवर रिटर्निंग इंडियंस) के साथ मिल कर बेंगाणी बंधु हमारी भाषा पर डाका डालना चाहते हैं, हमारी विचारधारा और सोच को पंगु और गुलाम बनाना चाहते हैं.
अंत में हमने श्री संजय बेंगाणी से बात करी;
हम: ‘तरकश’ पर बोगस चुनाव करवाने के लिये आपको श्री नरेन्द्र मोदी ने क्या प्रलोभन दिया? क्या आप हो अगले आम चुनाव में भाजपा का टिकट मिल रहा है?
श्री संजय: ऑयें...??!! अरे यह क्या बाउंसर है भाई?
हम: इतना भोले बनने का प्रयास मत करिये, हम भी बुद्धिजीवी और दूरदर्शी हैं आपकी घिनौनी मानसिकता को साफ़ देख सकते हैं. विज्ञापन का कारोबार है ना आपका! और उसके माध्यम से आप विदेशियों को प्रमोट कर रहे हैं! देशी ब्लगोड़ों की आपको कोई चिंता नहीं! यह पैसे वाले पूंजीवादी विदेशी अपने पैसों, प्रमोशन और आडम्बरों से हिंदी ब्लागजगत में छा जायेंगे तो हमारे स्माल स्केल ब्लागर्स का क्या होगा? उनके ब्लाग की रेटिंग्स कैसे बढ़ेगी?
श्री संजय: अरे आप तो....
हम: ...आपको हमारे सवालों का जवाब देना ही होगा!
श्री संजय: हां मैं वही तो कह रहा हूं कि इसमें....
हम: ( विनोद दुआ की चिपकू, अझेल और इरीटेटिंग इश्टाइल में) संजय जी आप जवाब दीजिये, जनता आपसे प्रश्न पूछ रही है...!
श्री संजय: अरे भाई साहब बोलने तो दीजिये! पहले यह बताइये कि ‘तरकश’ पर हुये चुनाव और इस पर हुयी धांधली का समाचार आप तक पंहुचा कैसे?
हम: आपको क्या लगता है कि हम अफ़ीम खा कर सोये पड़े हैं. आपकी इस धांधली से कई देशी चिठ्ठाकार बहुत आहत हुये हैं, उन्ही में से एक ने ‘व्हिसिल ब्लोअर’ का काम करके हमें सूचित किया है.
श्री संजय: (मेरे हाथ में पांच सौ रुपये का नोट थमाते हुये) जी, आप उस आहत प्राणी का नाम बतायेंगे.
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हमने अपना दूसरा हाथ भी आगे बढ़ाया जिस पर पांच सौ रुपये का एक नोट और लैण्ड किया.
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हम: हें..हें..हें..संजय जी आप तो प्रापर बिज़नेस मैन निकले. उस आहत प्राणी का नाम है श्री गिरिराज जोशी ‘कविराज’....
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वाक्य पूरा होने से पहले ही श्री संजय एक हाथ में लोहे का राड, एक हाथ में हॉकी स्टिक, गले में सायकिल की चेन और सिर पर सोडा वाटर की बोतलों की एक क्रेट रख कर यह बड़बड़ाते हुये कमरे से कूच करते दिखे,” कविराज...गुर्र..गुर्रर्र...”
वाक्य पूरा होने से पहले ही श्री संजय एक हाथ में लोहे का राड, एक हाथ में हॉकी स्टिक, गले में सायकिल की चेन और सिर पर सोडा वाटर की बोतलों की एक क्रेट रख कर यह बड़बड़ाते हुये कमरे से कूच करते दिखे,” कविराज...गुर्र..गुर्रर्र...”
सुना है “कविराज” ने कुछ समय तक ब्लागजगत से तड़ीपाल रहने की सोच ली है और पाकिस्तान की खुफ़िया एजेंसी आई एस आई से मदद मांगी है को बिन लादेन की तरह उनको भी कहीं ऐसी जगह ‘लुप्त’ कर दिया जाये जहां श्री संजय तो क्या अमरीकी जासूस भी उनकी भनक तक ना पा सकें.
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आप मान्यवरों में से कोई यदि कोई भी एक हजार रुपये का नगद पुरस्कार प्राप्त करना चाहता है तो श्री संजय बेंगाणी को “कविराज” का पता ठिकाना बता कर प्राप्त कर सकता है.
चलते चलते: पता चला है कि समस्त बीमा कम्पनियों ने “कविराज” की बीमा पॉलिसी को निरस्त कर दिया है. और रही बात पूंजीवाद या समाजवाद के पके हुये फोड़ों से बहते मवाद की, तो भैया उससे हमें क्या? हमें तो हजार रुपये नगद मिल गये और हम चले बिरयानी खाने. मेरे हिसाब से तो सबसे बढ़िया ‘वाद’ है “मायावाद” सारी दुनिया माया की माया में उलझी हुयी है. एक मिनट, मेरा फोन बज रहा है
!! रुकावट के लिये खेद है !!
हम: हैलोओओ....”
चलते चलते: पता चला है कि समस्त बीमा कम्पनियों ने “कविराज” की बीमा पॉलिसी को निरस्त कर दिया है. और रही बात पूंजीवाद या समाजवाद के पके हुये फोड़ों से बहते मवाद की, तो भैया उससे हमें क्या? हमें तो हजार रुपये नगद मिल गये और हम चले बिरयानी खाने. मेरे हिसाब से तो सबसे बढ़िया ‘वाद’ है “मायावाद” सारी दुनिया माया की माया में उलझी हुयी है. एक मिनट, मेरा फोन बज रहा है
!! रुकावट के लिये खेद है !!
हम: हैलोओओ....”
फोन से: हलो, मैंने तुम्हारी बात सुनी, सच कहते हो “मायावाद” ही सर्वोत्तम ‘वाद’ है. अगले चुनाव में तुमको बहुजन समाज पार्टी का टिकट देना चाहती हूं....
हम: अरे बाप रे..... !! ”कविराज” हमें भी छिपा लो अपने साथ.....हमारा भी ‘कल्याण’ करो....
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आकाशवाणी: अबे चुप्पे चाप निकल लो, कहीं ‘कल्याण’ ने सुन लिया तो वो भी टिकट ले कर आ जायेंगे.......
14 टिप्पणियां:
धन्य हो प्रभु ! मायावाद जिन्दाबाद, अनुराग भाई जिन्दाबाद !
क्या खुरापाती दिमाग पाया है आपने ! मजा आ गया ! :) स्माईली लगा दिया है :D
भाषा के प्रति
हमने भी अपने प्रेम को
इस कदर घूँट घूँट कर पिया है
कि हमने
हिन्दी में एम ए
इंगलिश मीडियम से किया है
:-)
haa haa ha ha ha :)
आपने खुब हँसाया. अभी तक हँस रहा हूँ. बहुत खुब. काफी उर्वर है आपका दिमाग.
आपकी यह प्रविष्टी भी चुनावो का सुफल मानी जाएगी. :)
वैसे उन दुसरे पाँच सौ रूपये वाली बात क्यों नहीं लिखी जो मैने यह प्रविष्टी लिखने के लिए दिये थे.
सही है, डिस्क्लेमर काम कर गया. हजार रुपये डकार भी गये और हमको विदेशी बोला. डिस्क्लेमर नहीं होता तो हम तो चल ही दिये थे जगदीश भाई के पास मुन्ना भाई और सर्किट की मदद लेने. संजय भाई भी आधा काम करते हैं, दोनों हाथ खुले देख कर दो ५०० दे दिये, मुँह खुला दिखा ही नहीं उन्हें, नहीं तो एक ५०० उसमें भी रख देते तो बंद हो जाता...हा हा....सही मौज ले रहे हो....लगे रहो. :) :)
वाह अनुराग बाबू, खूब लिखे हो। :)
पहले पहल तो मैं पढ़कर असमंजस में पड़ गया था कि पता नहीं क्या वाहियात लिखे जा रहे हैं, लेकिन फ़िर ऊपर अस्वीकरण पढ़ा और पोस्ट के अंत तक आते आते वाकई हंसी के मारे बुरा हाल था!!! :D
लगे रहो। :)
बोत सई , बोत सई !
हास्यमेव जयते :)
मजेदार हास्य लिख डाले हो, अनुराग भाई। :)
वाह अनुराग जी, बहुत सही जा रहे हैं :D
बहुत हंसाया भाई।
आपकी एक पोस्ट पर पूरा आईना कुर्बान :)
हँसी एक बिमारी है, इलाज न इसका कोय
हँस-हँसके पेट दुखे पर दर्द जरा भी ना होय
संजय मुझको ढूँढ रहा लेकर चाकू, भाला
मरने का भी ग़म नहीं जी भरके हँसा डाला
क्या खुब लिये हो अनुरागजी चुनावों की मौज
ऐसी ही एक पोस्ट हमें भाई भेंट कीजिये रोज
:) खुब हँसाया अनुराग भाई, आनन्द आ गया :)
हँसी एक बिमारी है, इलाज न इसका कोय
हँस-हँसके पेट दुखे पर दर्द जरा भी ना होय
संजय मुझको ढूँढ रहा लेकर चाकू, भाला
मरने का भी ग़म नहीं जी भरके हँसा डाला
क्या खुब लिये हो अनुरागजी चुनावों की मौज
ऐसी ही एक पोस्ट हमें भाई भेंट कीजिये रोज
:) खुब हँसाया अनुराग भाई, आनन्द आ गया :)
भाई देशी ब्लोगोड़ों ने क्या अपराध किया था कि हमारा इन्टर्व्यू भी नही लिया आपने। और चुनाव जीतने के लिये हमने कितनी रिश्वत दी इसका जिक्र किसी से मत करियेगा। :)
मजा आ गया अनुराग भाई, पहले तो लगा यह क्या हो गया अनुराग भाई को, क्या अंट शंट लिख रहे हैं पर बाद में बहुत मजा आया, इस लेख की अगली कड़ी जल्दी प्रकाशित करें।
आपका आज पूरा ब्लॉग पढ़ डाला सबूत के रुप में हर पोस्ट पर टिप्पणी पाइएगा। मजा आ गया। हैरान हुआ कि अब तक इसके बारे में क्यों नहीं पता था। खैर अब से हम यहाँ चक्कर लगाते ही रहेंगे। आप ऐसे ही दिमाग का दही करते रहिएगा। :)
पढ़ कर आप सबको हंसी आयी मैं धन्य हुआ। प्रयास रहेगा आगे भी ऐसे ही बे-सिर पैर की महा पकाऊ रचनायें पोस्ट करता रहूं।
आप सबका धन्यवाद।
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