बुधवार, अगस्त 01, 2007

चाँदी जैसा रंग है तेरा

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पुराणिक जी ने कुछ दिन पहले गोरा बनाने वाले जादूई लेप पर यह लेख लिखा था और साथ में बड़ी सी चिप्पी भी चिपका दी कि इस लेख को महिलायें कतई भी ना पढ़ें. मतलब साफ़ – पुरुष और पशु चाहें तो पढ़ लें महिलायें नहीं पढ़ सकतीं.
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अब साहब आप ही बताइये, ऐसी शर्त से भला कौन खुश हो सकता है. महिलाओं ने नथुने फड़काते हुये कहा,” पशुओं की बात तो समझ में आती है, लेकिन ऐसी क्या बात है कि मुए मरद पढ़ सकते हैं लेकिन हम नहीं.”. कुछ बोलीं,” अरे ठीक ही तो किया पशुओं और पुरुषों की श्रेणी से बाहर रख कर हमें सम्मान ही दिया है.”
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उधर पुरुष भी घुन्ने में आ गये,” बताइये साहब, ये पुराणिक साहब ने हमें पशुओं की श्रेणी में ला खड़ा किया है. ये तो हद ही हो गयी भाई!”
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कुछ पुरुष जिनको अपने आत्मसम्मान की तनिक भी चिंता नहीं है, दबी आवाज़ में बोले,” ठीक ही तो कह रहे हैं, गौर से देखो तो उन्होंने हमें पशुओं की श्रेणी में खड़ा करके, हमारा समाजिक स्तर ऊँचा ही किया है. पशु तो यदा-कदा ही पिटते हैं और हम, बीबी से, सास से, बॉस से, घर में, ऑफिस में जहाँ भी देखो, पिटते ही रहते हैं.
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अब हुआ ये कि ये छोटी छॉटी नोंक झोंक विवाद बन गयी और महिलाओं और पुरुषों के गुट इस विषय को ले कर जूतम लात पर उतारू हो गये.
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लेकिन, इस सब बातों से दूर, राजेश बाबू की प्यारी, सांवली सलोनी भैंस – श्यामा, इस लेख से बड़ी खुश. मुस्कुराते हुये रंभाई,” कोई तो है जिसने हमारे बारे में भी सोचा. आज ब्लॉग पढ़ने का निमंत्रण मिला है, कल किसी पार्टी का टिकट मिलेगा, फ़िर क्या मालुम किसी फ़िल्म में बिपाशा की जुड़वा बहन का रोल भी मिल जाये.” थोड़ी देर तक आंखें मूंद कर श्यामा ने कुछ सोचा और फिर रंभाई,” बेचारी बिपाशा! मेरे फ़िल्मों में आ जाने से तो वो बुरी तरह पिट जायेगी. भला मेरा और उसका क्या मुकाबला? वो तो फिर भी रुमाल के साइज़ के कपड़े पहन लेती है हम तो बिना कुछ पहने ही स्क्रीन पर आ जायेंगे, कौन देखेगा बेचारी को ? कितना छटपटाएगी. कैसे चीख चीख कर कहेगी ‘अब-रहम, अब-रहम’ (एब्राहम).”
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बड़ी खुश. मुस्कुराये जाये. गुनगुनाये जाये. मटक कर गोमती नदी की ओर चल पड़ी. गोमती वही नदी है जो किसी समय लखनऊ की मशहूर “शाम-ए-अवध” से जुड़ी हुयी थी और आज शहर के तमाम नालों और सीवर लाइनों से जुड़ी पाई जाती है. सुबह होते ही तमाम ग्वाले अपनी भैंसों को नहलाने – धुलाने और गर्मी से बचाने के लिये गोमती में ठेल देते हैं. दिन भर भैंसों की मीटिंग वहीं होती है.
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गोमती में घुसते ही श्यामा ज़ोर से रंभाई,” बॉ S S S S S ...”
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सब भैंसन ने घेर लिया,” क्या बात है श्यामा बहिन बहुत खुश दिखाई दे रही हो, कोई ‘गुड न्यूज़’ है क्या?”
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”अरे धत्त, तुम लोग तो बस एक ही बात सोचती हो.” श्यामा कुछ लजा सी गयी,” खबर तो अच्छी है लेकिन वो नहीं जो तुम सब सोच रही हो.”
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”ऐसा क्या? कमर सिंह जी का दिल आ गया है क्या तुम पर?”
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श्यामा हताश होते हुये बोली,” नहीं री, वो तो उस मुई बिप्स पर ना जाने क्यों फ़िदा हैं. खैर, मैं तो ऐसी खबर लाई हूँ जिससे हमारे सारे कष्टों का निवारण हो जायेगा.”
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इतना सुनना था कि सारी भैंसों ने श्यामा को धर घेरा, जो भैंसें गोमती के तट पर घास चर रही थीं, या पेड़ के नीचे बैठ कर जुगाली कर रही थीं, वो भी छपाक छपाक गोमती में कूद कर श्यामा के पास आ गयीं.
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श्यामा ने अपनी पूंछ से नथुने और मुँह पर मंडराती हुयी मक्खियों को उड़ाते हुये कहा,
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” बहिनों, सदियों से हम पर होते आ रहे अविरत अत्याचारों का मूल कारण आज मुझे पता चल गया है. हमारे साथ मानव जाति ने जो सौतेला व्यव्हार किया है उसका कारण भी पता चल गया है.
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ऐसा क्यों होता आ रहा है हमारे साथ, कि मानव जाति दूध तो हमारा पीती है और पूजा करती है गाय की. दूध पिया हमारा और मइया बनी गइया. गाय को मंदिरों में स्थान दिया और हमें इस प्रदूषित गोमती में.
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गाय का मांस खाने से पाप लगता है! लेकिन जब ‘बीफ़’ खाने का मन किया तो हम भैंसों को हलाल कर दिया! ये क्या बात हुयी?
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केवल इतना ही नहीं बहिनों, उनका साहित्य पढ़ो, जब किसी सीधी सादी सर्वगुण सम्पन्न नारी की बात होती है तो उसे गाय कह कर पुकारते हैं. जब किसी मोटी, काली कलूटी, बदसूरत सी औरत का विवरण देना होता है तो कहते हैं कि ‘वो तो भैंस है भैंस’. सभी इच्छा पूरी करने वाली को “कामधेनु” कहते हैं, मैं पूछती हूँ कि “काम-भैंस” क्यों नहीं कहते. गाय को शशी कपूर जैसे ‘हैण्डसम’ दिखने वाले कृष्ण के साथ जोड़ा और हमें जोड़ा अजय देवगन के हमशक्ल यमराज से. कोई अच्छा लड़का मिलता है तो उसे कहते हैं कूल ‘गाय’, कूल ‘भैंस’ क्यों नहीं कहते भाई? क्या ये न्याय है?”
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”श्यामा बहिन, बात तो ठीक कहती हो, लेकिन क्या करें हम हैं ही काले-कलूटे.”
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”हाँ श्यामा बहिन, काला होना बहुत बड़ा अभिशाप है.”
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”गुस्सा शांत करो श्यामा बहिन, मानव श्याम सुंदर की पूजा भले ही करते हों, लेकिन कालों को पसंद नहीं करते. अब देखो ना सांवली कन्या के दहेज कें अधिक पैसा लगता है. सांवली कन्या एयर होस्टेस नहीं बन सकती, टीवी पर क्रिकेट की कमेंट्री नहीं बोल सकती और तो और पाप की कमाई को भी काली कमाई बोलते हैं. कुछ उल्टा पुल्टा हो जाये तो कहते हैं कि मुँह काला हो गया.”
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सबकी बातें सुन कर श्यामा रंभाई,” सही कहा ! तो तुम ये सब समझ चुकी हो कि यह काला रंग ही हमारे कष्टों और त्रासदियों का मूल कारण है. मैं भी यही कहना चाहती थी ! चलो हम अपने कष्टों से मुक्त होते हैं इस काले रंग से मुक्त होते हैं.”
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ये सुन कर कुछ भैंसे तो फुसफुसाते हुयी रंभाईं,” बेचारी श्यामा बहिन, इंसानी ब्लॉग पढ़ पढ़ कर और इंसानी टीवी धारावाहिक देख देख कर, कैसी अजीब बातें करने लगी है.”
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श्यामा ने फुसफुसाहट सुन ली और रंभाई,” मैं अजीब बातें नहीं कर रही हूं. सच कहती हूँ. अब हमारे पास साधन हैं कि हम अपने काले रंग से छुटकारा पा कर खुद को गाय की पूज्य श्रेणी में ला खड़ा करेंगे.”
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”वो कैसे श्यामा बहिन?”
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श्यामा ने पूंछ से अपना मुंह साफ़ करते हुये कहा,” हम सब कल से ‘फ़ेयर एण्ड लवली’ लगायेंगे.”

3 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

हम सब कल से ‘फ़ेयर एण्ड लवली’ लगायेंगे.

---हम जानते हैं कि इससे कुछ नहीं होगा और फिर सब हमारी तरह पुराणिक मास्साब को गरियायेंगी. :) आलोक जी तो नपे नपाये हो गये अब.

ALOK PURANIK ने कहा…

फेयर एंड लवलों की चिंता कौन करेगा।

Arun Arora ने कहा…

अरे साहब चेरी ब्लोसम लगाये सुना नही है "हर चमडा कभी चमके धूम धाम से ,कभी गया काम से"