बुधवार, जनवरी 24, 2007

इंगलिस इस्कूल - भाग 4

राधे राधे बोलोगे तो कान्हा दौड़े आएंगे..
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लामाट के फार्म बंटने शुरू हो गये. निर्धारित तिथि को ठीक साढ़े आठ बजे जा कर पंक्तिबद्ध हो गये. घिसटते हुये कोई साढ़े बारह बजे काउंटर पर पंहुचे.
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फार्म देने से पहले पूछा गया - बच्चे का नाम, पिता का नाम, पता-ठिकाना फिर रजिस्ट्रेशन हुआ और फार्म देते हुये लिपिक महोदय ने कुछ हिदायतें भी दे डालीं," सुनो, रजिस्ट्रेशन जिस बच्चे के नाम से हुआ है, उसी नाम से बच्चे का फार्म भी जमा होगा - समझे! एक रजिएट्रेशन पर केवल एक ही फार्म मिलेगा - समझ रहे हो! ओरीजिनल फार्म ही जमा होगा, फोटोकापी नहीं - समझे कि नहीं! ये लो फार्म पकड़ो और जो अभी बताया है वह सब ठीक ठीक अपने साहबजी से बता देना - ठीक से समझे तो हो ना!"
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बताइये, हमें नौकर समझ लिया और ऐसे समझा रहा था जैसे हम निपट गंवार हों. पर क्योंकि हमें इंगलिस इस्कूल के कार्य कलाप की अधिक जानकारी नहीं थी और हम मुफ़्त में झगड़ॆ भी नहीं लेना चाहते थे, सो हमने चुप्पे-चाप फर्म लपका और वहाँ से सटक निकले.
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फ़्रांसिस में लाइन तो लम्बी थी लेकिन वहाँ रजिस्ट्रेशन वगैरह जैसी कोई औपचारिकता नहीं थी. दोनों फार्म ले कर हम घर पंहुचे, बीबीजी हो बड़े गर्व से फार्म यूं दिखाये मानो मुन्ने का H1B वीज़ा आ गया हो.
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बीबीजी ने उकसाया,"चलो, फटाफट भर लो और उल्टे पैर जा कर जमा भी कर आओ."
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"अरे, जल्द बाजी ना दिखाओ! एक ही फर्म मिला है, गलत भर गया तो सीधा रिजेक्ट हो जायेगा. मैं राजेश बाबू से पूछता हूँ."
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राजेश बाबू ने घनघोर बढ़िया राय दी," पहले तो इन फार्म की दस बीस फोटो कापी करवा लो - ठीक है. फिर उन फोटोकॉपी पर फार्म भरने की प्रैक्टिस कर लो - ठीक है. जब प्रैक्टिस हो जाये तो फिर ओरीजिनल फार्म भर लेना - ठीक है ना!"
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पड़ोसी हो तो ऐसा. मन किया वहीं पैरों पर लोट जायें पर समयाभाव के कारण ऐसा ना करते हुये हम सीधा फोटोकॉपी करवाने चले गये.
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रात भर फार्म भरने की प्रैक्टिस करी और फिर बाद में मंहगे वाले पारकर के पेन से (जो हमने 180 रुपये में सिर्फ़ इसलिये खरीदा था कि मुन्ने के दाखिले के फार्म भर सकें) फार्म भरे. घड़ी में साढ़े छ: बजे का अलार्म लगाया और सो गये.
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सुबह उठ कर नहाये धोये, पूजा करी, मंदिर गये, भगवानजी की मूर्ति के चरणों के पास 'ड्यूली फिल्ड' फार्म रखे, सच्चे मन से भगवान जी की पूजा करी, सवा किलो प्रसाद की मन्नत माँगी और फिर इस्कूल जा कर फार्म जमा कर दिया.
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पहले लामाट से इंटरव्यू का बुलावा आया, हमारे घर में तो खुशी की लहर दौड़ गये - मतलब कि हमारा फार्म रिजेक्ट नहीं हुआ. रात भर जाग कर प्रैक्टिस करके फार्म भरना सफल रहा! राजेश बाबू की टिप भी बहुत याद आयी.
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हम झटपट "रिट्ज़ स्वीट्स" की दुकान से सवा किलो मोतीचूर के लड्डू लाये और सीधा भगवानजी को प्रसाद चढ़ा दिये. साथ ही पाँच किलो प्रसाद की नयी मनौती भी कर आये.
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अब एक नयी समस्या खड़ी हो गयी! लामाट जैसे इस्कूल में हम अपने खटारा एल एम एल 150 पर कैसे जाते? अरे भाई 'टोयोटा' या 'शेवरले' ना सही कम से कम 'मारुति' की सवारी तो चाहिये ही ना - आखिर इंगलिस मीडियम इस्कूल है.
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ऐसे में केवल अपने पड़ोसी, राजेश बाबू का सहारा नज़र आया. हमने सकुचाते हुये उनसे अपने मन की बात कह दी. बहुत सज्जन इंसान हैं, तुरंत मान गये," ठीक है गुरू, हम अपनी गाड़ी में छोड़ि आवैंगे - फिकर नॉट."
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इंटरव्यू के एक दिन पहले टोनी के पास जा कर टाई में गठ्ठी बंधवाई और इंटरव्यू वाले दिन हमने अपना सूट निकाला, शादी के बाद पहली बार पहन रहे थे. थोड़ी बहुत तोंद वगैरह निकल आने की वजह से कोट के आगे के बटनों ने बंद होने से साफ इंकार कर दिया. कोई बात नहीं, हमने कोट बटन खुले छोड़ दिये, चुस्त कोट के भीतर से हमारी संपन्नता की निशानी (तोंद) बड़ी शान से झाँक रही थी. फिर हमने अपने "नाइकी" के नये वाले जूते चढ़ाये (जो शायद बिल गेट्स या बिल क्लिंटन के लिये बने रहे होंगे) और सेंट-वेंट लगा कर - बाल सेट करके तैयार हो गये.
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बीबीजी ने सबसे भारी वाली बनारसी साड़ी पहनी - मैचिंग पर्स - मैचिंग सैंडल और मुन्ने ने नया वाला बाबा सूट पहना. ऐसा जान पड़ता था कि हम लोग बस किसी की शादी में ही जा रहे हों - सब के सब एक दम स्मार्ट!!
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हम सब ने मंदिर में पूजा करी, अम्मा और बाऊजी के पैर छूकर आशिर्वाद लिया, अम्मा ने मुन्ने को दही चीनी खिलाया और दही से ही मुन्ने का टीका भी किया. शगुन के लिये गेट के पास पानी से भरी एक बाल्टी रखी गयी.
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राजेश बाबू सही समय पर अपनी गाड़ी ले कर आ गये, हम तीनों लोग पीछे ही बैठे जिससे कि देखने वाले यह समझें कि केवल कार ही नहीं हमारे पास ड्राइवर भी है (यह बात राजेश बाबू से भी बता दी और उनको बिलकुल भी फील नहीं हुआ) . रास्ते में राजेश बाबू ने पूछा," यार, तुम लोग वापस कैसे आओगे?"
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इस बारे में तो हमने कुछ सोचा नहीं था इसलिये हम चुप ही रहे. हमारी परेशानी राजेश बाबू तुरंत भांप गये और बोले," ऐसा करना, जब इंटरव्यू खत्म हो जाये तो मुझे फोन कर देना मैं आ कर तुम लोगों को पिक अप कर लूंगा." हमें बड़ी खुशी हुयी और हमने ऑफर तुरंत स्वीकार कर लिया.
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कार से उतार कर राजेश बाबू ऊंचे स्वर में बोले,"मालिक आप लोग काम करिये, जब तक मैं गाड़ी सर्विस करवा कर आता हूं." राजेश बाबू के प्रेम व्यवहार ने तो हमारा दिल ही जीत लिया.
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गाड़ी से उतर कर चले तो कमबख़्त नया जूता ('नाइकी' वाला जो कि शायद बिल गेट्स या बिल क्लिंटन के लिये बना रहा होगा) हमारे पैर काटने लगा. हमने भी हिम्मत नहीं हारी और यदा-कदा एड़ियों को बल उचकते हुये ऑफिस की तरफ बढ़ चले. हमें इस प्रकार उचकता देख, पता नहीं क्यों, कई महिलाएं अपने पल्लू या दुपट्टे में मुंह छिपा कर और पुरुष दूसरी ओर मुंह फेर कर खिलखिला रहे थे – समझ में नहीं आया !
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ऑफिस के बाहर बहुत सारे बच्चे और गिनती में उनसे भी दुगने उनके मम्मी पापा बैठे हुये थे. ‘लास्ट मिनट प्रेपरेशन’ चल रही थी. बच्चे A-B-C-D और 1-2-3-4 और कुछ पोयम वगैरह दोहरा रहे थे. मम्मियां उनके मथ्थे पर गिरते हुये बालों को उंगली से बार बार संवारतीं पर वो फिर गिर जाते. ऐसे में तंग आ कर, एक माताजी ने ‘चुप्पे’ से उंगली में थोड़ी सी थूक लगाई और बालों को उससे गीला कर के बाल सेट कर दिये. जुकाम से ग्रसित एक बच्चे से जब नहीं रहा गया तो उसने अपनी कमीज की आस्तीन से रुमाल का काम लिया, उसकी अम्मा ने देखा तो मारे गुस्से के उसके कान पर ‘चुप्पे’ से नाख़ूनों वाली तेज़ चिकोटी काट ली बेचारे बच्चे के मुंह से एक मरियल सी ‘उई’ निकल कर रह गयी. चुटकी का फ़ायदा यह हुआ, कि अगली बार जब बच्चे को रुमाल की ज़रूरत हुयी तो उसने ‘चुटकी’ के डर से आस्तीन की जगह अपनी अम्माजी की मंहगी वाली ‘टसर सिल्क’ की साड़ी का प्रयोग किया और वह भी ‘चुप्पे’ से.
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पूरे माहौल में तनाव सा था. मैंने सोचा ऐसे में इस्कूल को अम्बुलेंस का इंतजाम जरूर रखना चाहिये, भगवान ना करे लेकिन कहीं घबराहट के मारे किसी को दिल का दौरा पड़ जाये तो तुरंत मदद तो मिल सकेगी.
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लोगों को बारी बारी ऑफिस के अंदर बुलाया जाता और 5-6 मिनट में वह बाहर भी आ जाते. ये इंगलिस इस्कूल वाले भी बहुतै इस्मार्ट होते हैं बस्स 5-6 मिनट में ताड़ लेते हैं कि आपका बच्चा उनके स्टैंडर्ड का है या नहीं – सिर्फ 5-6 मिनट में. और एक हम लोग हैं कि तमाम ‘कॉंफिडेशियल रिपोर्ट’ या ‘अप्रेज़ल रिपोर्ट’ भरने या पढ़ने के बाद भी यह नहीं जान पाते हैं कि अगला ऑफिस में रहने लायक है या नहीं.
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कुछ लोग तो बहुत हंसी खुशी निकल रहे थे – बच्चे को गोदी में उठाये प्यार से पप्पी लेते हुये मानो कि इंडिया कोई क्रिकेट मैच जीत गया हो और कुछ ऐसे निकल रहे थे कि मानो अंदर करण जौहर की फिल्म दिखाई जा रही हो – माने कि फुल ऑफ टेंशन. एक सज्जन तो ‘चुप्पे’ से बच्चे का हाथ ही उमेठे हुये थे और बच्चे की आँखों से मोटे मोटे आँसू टप्प-टप्प गिर रहे थे – हम समझ गये कि लगता है पापाजी ठीक से सवाल का जवाब नहीं दे पाये तो बच्चे तो ही निचोड़े दे रहे हैं. देख कर हमको टेंशन हुआ और हमने अपनी जेब से छोटी वाली डायरी निकाल कर रिवीज़न करना शुरू कर दिया (यह मॉडल पेपर मिसेज डिक्रूज़ ने दिया था) –
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Sar, my name is Anurag.
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Sar, my son is Munna.
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Sar, I go to office everyday.
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Sar, I want my son to study in your esteemed school because ‘Gadar’ film was shot here.
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Sar,…..
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तभी हमारा नाम बुलाया गया. ऐसा लगा कि जल्लाद ने चिल्ला कर कहा हो ‘तुम्हारी फाँसी का वक्त हो गया है, उठो और चलो.....’
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हमारा छोटा सा परिवार गैस चेम्बर की ओर चला, चार कदम का रस्ता चार जीवन से भी लम्बा लगने लगा. गला और होंठ अचानक ही सूख गये. ऐसा लगा कि बैकग्राउंड में इनमें से कोई गाना बज रहा हो “जिया धड़क धड़क - जिया धड़क धड़क - जिया धड़क धड़क जाये” या “ धक धक करने लगा उं उं उं मोरा जिअरा डरने लगा उं उं उं”
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हमने अपनी घबराहट पर काबू रखा और फुल कांफिडेनस के साथ ऑफिस में घुसते ही ‘लाउड और क्लियर’ आवाज़ में बोले,” गुड मार्निंग फ़ॉदर!”
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“Good Morning! Have a seat please. By the way, I’m not a ‘Father’.
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कसम से हमतो बहुत घबरा गये, सूखे गले के साथ अब दिसंबर की ठंड में हमें पसीना भी छूट गया. पर बीबीजी की संगत का असर था सो बात को सम्हालने की कोशिश करी, “Sar, I was thinking because this a ‘convent iskool’, so you are ‘phathar’.”
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अभी तो आसमान से ही गिरे थे, अब खजूर में जा अटके,” This is NOT a 'convent' school, Mr. Srivastava.”
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बिना पूछे हुये ही दो सवाल गलत! हमारी आँखों से आगे अंधेरा छा गया – बोलती बंद. पूरे इंटरव्यू चुप चाप बैठे रहे.
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मुन्ने का इंटरव्यू शुरू हुआ,
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“What’s your name, young man?”
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“Sir, my good name is Munna.”
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“..and what’s your father’s name?”
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“My father’s good name is Shri Anurag Srivastava.”
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“Very Good! Do you know your ABCs?”
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“Yes, ABCDEFGHIJKLMNOPQRSTUVWXYZ”
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“That’s very smart! Now come closer and recognize the animals from this book.”
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इतना कह कर ‘फॉदर’ ने (अब भाई और क्या कह कर बुलायें??) मुन्ने को पास बुलाया और एक किताब से जानवरों की फोटो दिखाने लगे.
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“This is a zebra.”
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“Very good.”
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“This is a giraffe.”
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“Very Good.”
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इतने सारे “Very Good” सुन कर मुन्ना जोश में आ गया और जरूरत से ज्यादा अच्छे जवाब देने लगा.
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“ शेर, यह शेर है, इसे लायन भी कहते हैं.....यह डॉगी है – कुता – डॉग....यह है ‘गोट’ – बकरी – बकरियाँ .....”
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बीबीजी ने साड़ी के पल्लू से आँसू पोछने शुरू कर दिये. मुझे तो यूं लगा कि मुन्ना की सिटी बैंक वाली नौकरी बिना लगे ही छूट गयी और वह बिना अमरीका गये ही वापस इंडिया आ कर मोमफली का खोमचा लगाये बैठा है.
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हमें बताया गया कि परिणाम डाक द्वारा भेजे जायेंगे. मन में तो आया कि कह दें कि भैया रहै दो, अइसनै पता चलि गवा – डाक की का जरूरत है. पर मुंह से आवाज़ ही ना निकली.
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बाहर राजेश बाबू गाड़ी लिये खड़े थे, हमारे चेहरे की मायूसी देख कर मामला समझ गये और बिना पूछ ताछ किये हमको घर लिवा ले गये.
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दो दिन के बाद फ्रांसिस में जाना हुआ. वहाँ भी वैसा ही जाना पहचाना सा माहौल था. इस बार हम बहुत केयरफुल थे सो घुसते ही “गुड मार्निंग फादर” नहीं बोले. बल्कि हमने पूछा,” Sar, good morning! Sar, is this a convent school?”
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“ Good Morning! No this is not a ‘convent’ school. If I may so ask you sir, what may have been the purpose of you asking that marvelous question?”
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“Simple Sar, because if this not ‘convent’ school then you not a Father.”
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“Mr. Srivastava, this may not be a convent school but I am very much a ‘Father’.”
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बीबीजी का सुबक सुबक कर सिस्की लेना हमें साफ सुनाई दे रहा था. हमारा भी दिमाग कुछ ऐसा घूमा कि याद भी नहीं है कि क्या सवाल पूछे गये और हमने क्या जवाब दिये. वहाँ भी बताया गया कि परिणाम डाक से भेजे जायेंगे – भेजो या ना भेजो भैया – मेरी बला से!
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डेढ़ महीने बाद अड़ोस पड़ोस में पार्टियों का शोर सुन कर हम समझ गये कि इस्कूलों के रिजल्ट आने शुरू हो गये. हम भी फाटक पकडे खड़े रहते कि डाकिया आज शायद मुन्ने के दाखिले की चिठ्ठी ले कर आता होगा, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो एक दिन बीबीजी ने आकर पूछा,” अब आगे क्या सोचा है?”
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हम उसके कन्धे पर सिर रख कर फफक कर रो पड़े. वह भी बेचारी रो पड़ी. हम दोनो एक दूसरे के गले में हाथ डाल कर झूला झूलते हुये खूब रोये. जब गंगा-यमुना थमीं तो बीबीजी ने पूछा,”कहाँ नाम लिखवाना है?”
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“नाम तो कॉंनवेंट में ही लिखवायेंगे.”
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“सही कह रहे हो, तो फिर चलो मुन्ने को सेंट रैदास कांवेंट में भर्ती करवा आते हैं.”
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अगले दिन हम राधे हलवाई की दुकान यानि सेंट रैदास कांवेंट जा पहुंचे. टेबल पर राधे लाल बैठे थे. जब हम लोगों ने एक दूसरे को देखा तो वो बेचारे थोड़ा झेंप भी गये. मेरे भी मुँह से भी करीब करीब निकल ही गया,” राधे, पाव भर खट्टा दही बाँध दो – कढ़ी वाला.”
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खैर कंट्रोल करके बोले,” बच्चे का नाम लिखवाना है.”
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“अरे, लिखवाना क्या है भाईसाहब, लिख गया! लीजिये फार्म भरिये – फीस जमा करिये और कल से बच्चे को भेजिये अपना भविष्य संवारने के लिये.” ऐसी फीलिंग आई कि जैसे बी एस एन एल का फोन कटवा कर रिलायंस का कनेक्शन ले लिया हो – झटपट काम हुआ लाइक सिटी बैंक – लगा कि बच्चा यहां रह कर फिट फार सिटी बैंक हो जायेगा !
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पता नहीं काहे को, हमारे मुंह से निकल गया," राधे, सॉरी प्रिंसिपल सा'ब, बच्चे की फीस क्या उसका वज़न लेकर तय करेंगे या फिक्स्ड फीस है, मतलब कौनो भी डिब्बा सब मिक्स्ड मिठाई है सब डिब्बे 180 रुपये किलो."
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"वज़न से कौनो मतलब नहीं है - सब बराबर फीस बच्चा मोटा हो या छोटा हो. वजन वाले धंधे में नफा मुनाफा नहीं रहा - यही मारे तो ई धंधवा सुरू किये हैं. निस्चिंत रहैं फीस मार्किट रेट से कमै लगिहै. दूसरे बच्चे का नमवा भी हिंयई लिखवा दैं तो फिसिया में फिप्टी परसेंट आफौ मिलिहै."
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नाम लिखवा कर वापस आ रहे थे तो रास्ते में सैय्यद चचा और चंद्रा अंकल मिले,” क्यों भई कहाँ से आ रहे हो. बच्चे को लामाट या फ्रांसिस में डाल दिये?” उन्हें रिजल्ट का पता नहीं था – डाक से आने का यही तो फायदा है. हमने सिचुएशन संभाल कर कहा,” आप लोग ठीक ही कहते थे, अंग्रेजी इस्कूल वाले ठीक से पढ़ाते नहीं हैं, नींव भी पुख़्ता नहीं करते हैं, बच्चे सिगरेट वगैरह पीने लगते हैं, यह सब सोच कर हमने फैसला किया है कि हम मुन्ने को राधे के देशी सेंट रैदास इस्कूल में पढ़ायेंगे.”
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चचा बोले,” जियो बर्ख़ुरदार जियो!” चन्द्रा अंकल ने भी धीरे से हाथ उठा कर आशीष दिया.
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मोहल्ले भर में बात फैल गयी कि सेलेक्शन हो जाने के बावजूद भी हमने मुन्ने को देशी इस्कूल में ही भर्ती किया, सैय्यद चचा और चंद्रा अंकल की मदद से हमने जस तस लंगोटी से इज्जत ढ़की, नहीं तो आप तो समझ ही सकते हैं ज़ालिम मुहल्ले वालों ने बातें करना शुरू ही कर दिया था - 'बाप मरा अंधियारे में, बेटवा पावर हाउस' और 'बाप ना मारिस मेंढ़की, बेटवा तीरंदाज़' वाली तर्ज़ पर.
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जिन्दगी फिर से ढ़र्रे पर आ गयी. अम्मा-बाऊजी का ‘संस्कार’ और ‘आस्था’ चैनल, बीबीजी का ‘स्टार प्लस’ शुरू हो गया. मेरा बिल गेट्स या बिल क्लिंटन वाला जूता बीबीजी ने बर्तन वाले को दे कर बदले में स्टील के दो ढक्कनदार डोंगे खरीद लिये और मेरा गुटखा चबाना फिर से शुरू हो गया.

और मुन्ना, वह अपने नये इस्कूल, माफ़ करियेगा स्कूल से बहुत खुश है, 15 अगस्त और 26 जनवरी को शुद्ध देशी घी के लड्डू जो बंटते हैं स्कूल में.
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(इति)

15 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

वह जी वाह, बहुत अच्छा अनुराग जी, बहुत ही मजेदार रहा किस्सा।
म्ध्यवर्ग कि बखिया उधेड़ता हुआ :)

बेनामी ने कहा…

इस कड़ी में तो बहुत हँसी आई अनुराग जी।
खासकर लिपिक ने आपको नौकर समझा और कई जगहों पर।
बाई दी वे आपने ये नहीं बताया कि फ़ॉर्म के कितने रुपये ऐठें आपसे?
पिछले साल ऐसे ही इन्टर्व्यू में हमारे फ़ेल होने से पहले १००/- तो खाली फ़ॉर्म के लूट लिये गये थे।

Udan Tashtari ने कहा…

वाह वाह, हँसते हँसते हालत पतली हो गई.

बिना पूछे हुये ही दो सवाल गलत! हमारी आँखों से आगे अंधेरा छा गया – बोलती बंद. पूरे इंटरव्यू चुप चाप बैठे रहे.


--क्या कल्पना है--

खैर जो हुआ सो हुआ, अब तो देशी घी के लड्डू बटनें का दिन भी आ ही गया.

बधाई, इतना बेहतरीन सिरियल चलाने के लिये. :)

बेनामी ने कहा…

बहुत शानदार रही यह श्रृंखला.
आनन्द आया.

प्रेमलता पांडे ने कहा…

बहुत बढ़िया!!! खासकर "वज़न से कौनो मतलब नहीं है - सब बराबर फीस बच्चा मोटा हो या छोटा हो. ........... तो फिसिया में फिप्टी परसेंट आफौ मिलिहै."
वैसे पुरी सीरीज़ ही मनोरंजक!
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Upasthit ने कहा…

Bahutay badhiya raha...isaka ham bas do last ank padh paaye hain... abhi tak koi anubhav to nahi par iatana khatarnaak hota hia kya admision karana... ham log to jan ekaise padh gaye...shayad hamara skool sant raidaas chaap hi raha hoga..

eSwami ने कहा…

विसंगति हास्य की अम्मा है! परिस्थितिजनक हास्य और वो भी भारतीय समाज की विसंगतियों से भरपूर - सोने पे सुहागा! बहुत शानदार लेख-श्रृंखला! बहुत हंसाया आपने!

बेनामी ने कहा…

सही जा रहे हो गुरू, सही हंसाया आपने वैसे मैं तो यही कहूँगा कि राजेश बाबू जैसे पडोसी सबको मिले

बेनामी ने कहा…

मुझे तो पहले से मालूम था, मुन्ना तो नही लेकिन मुन्ने के बापू जरूर फेल हो जायेंगे :)


पूरी श्रंखला एकदम झक्कास रही !

Manoshi Chatterjee मानोशी चटर्जी ने कहा…

bahut mazaa aaya.

--Manoshi

Dr Prabhat Tandon ने कहा…

हंसते -2 पेट मे बल पड गये। अनुराग जी इसको बन्द न करियेगा।

Manish Kumar ने कहा…

मजा आ गया आप का ये स्कूल पुराण पढ़ के !

rachana ने कहा…

अनुराग जी, कुछ् पढ कर इतना ज्यादा शायद कभी नही हँसे!! बहुत बहुत धन्यवाद आपको!

ePandit ने कहा…

इंग्लिश इस्कूल कथा मजेदार रही। अंत में कथा का Moral भी बताते। कुछ मुन्ने के बापू फेल हो गए और कुछ मुन्ने ने भी अति उत्साह में गड़बड़ कर दी। खैर अब सेंट रैदास स्कूल का भी हाल बताना। और हाँ राजेश बाबू जैसे पड़ोसी भगवान सबको दे।

बेनामी ने कहा…

poori kahani dar dar kar pari .....aama babuji ki bahut fikar ho rahi the kya kare aama bauji kao modern hote ... nahi na dekha sakte.....par bhiya aanta bariya huya...yani laut ke budhu ghar ko aaye......bahut maja aaya kucha linene parkar to bahut ki hasi aayi....aise hi likhate raho bahi