गुरुवार, फ़रवरी 22, 2007

पाँच प्रश्न

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चीनी नव वर्ष की साढ़े चार दिनों की छुट्टियाँ काट कर जब वापस आये तो देखा कि ब्लॉग जगत में महामारी फैली हुयी है. हमें का? हम आराम से किनारे बैठे मजा लूट रहे थे कि प्रत्यक्षा जी ने धप्प से हमारी टांग खींच दी. बोलीं कि तुम भी कुछ बोलो और वह भी धमाकेदार.
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अब भाई पानी के बताशे को चाहे जैसे भी फोड़ो धमाका तो होगा नहीं बस ‘पप्प’ से आवाज़ करके फूट जायेगा.
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तो हम अपनी पप्प-दार बातें लेकर आये हैं, आप सब झेलिये और कोई शिकवा गिला है तो यहां करियेगा.
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पहला ; अपने जीवन की सबसे धमाकेदार ,सनसनीखेज वारदात बतायें ( अगर ऐसा कुछ नहीं हुआ है तो कपोल कल्पना भी चलेगी ,सिर्फ ऐसी कल्पना के अंत में एक स्माईली अनिवार्य )
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धमाकेदार घटना में ‘धमाके’ का होना जरूरी है. तो श्री गणेश करते हैं पहले धमाके से. किसी भी घटना की तारीख मुझे याद नहीं है, हाथ में झोला उठाये ऐसे दर-ब-दर घूमे हैं कि मुझे अपनी किसी भी यात्रा की तारीख ठीक से याद नहीं है. तो, भाई बात है द्वितीय ईराक युद्ध के समय की. मुझे कुवैत में एक जहाज का सर्वे करना था. कुवैत में उस समय अफरा-तफरी मची थी वह इसलिये कि सबको डर था कि सद्दाम रसायनिक या जैविक हथियारों का प्रयोग ना कर बैठें. कुवैत में ऐसी अनिश्चितता के कारण मैं ने जहाज को संयुक्त अरब अमीरात के फ़ुजायरह पोर्ट में ज्वाइन किया और जहाज पर चढ़ कर ही कुवैत पंहुचे. जहाज कुवैत के “मीना-अल-अहमदी” पोर्ट के “नार्थ पियर” पर तेल भर रहा था और मैं जहाज के कुछ कर्मियों के साथ डेक पर सर्वे कर रहा था कि अचानक एक जोरदार धमाका हुआ! हमने सिर घुमा कर देखा तो हमारे जहाज से करीब 700 या 800 मीटर की दूरी पर पानी का जोरदार उफ़ान उठता दिखा.
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हम सब की तो घिघ्घी बंध गयी. रात को टीवी पर पता चला कि सद्दाम द्वारा छोड़ी गयी चार मिसाइलों मे से एक हमारे ऊपर गिरती गिरती रह गयी!
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वर्ना इस समय यह चिठ्ठा देवलोक से लिखा जा रहा होता.
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एक और धमाका याद आ रहा है. एक दूसरे जहाज के सर्वे के लिये “मीना-अल-बक्र” यानि ईराक के “बसरा ऑयल टर्मिनल” पर गया था. शाम को करीब सात बजे मैं ड्यूटी ऑफिसर से गप्पें मार रहा था कि अचानक समुद्र से आग का गोला उठता दिखाई दिया. हमारे जहाज से कुछ दो-एक मील दूर. हमने दूरबीन ऑख पर चढ़ा ली और देख ही रहे थे कि आग का एक और गोला उठता दिखा. बाद में पता चला कि बसरा ऑयल टर्मिनल पर आत्मघाती हमला हुआ था. << जब अभी हम आमने सामने मिलेंगे तो आपको उन धमाकों की और बम के टुकड़ों की वो फोटुयें दिखाऊंगा जो हमारे जहाज पर गिरे थे, अपलोड नहीं कर सकता >>
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बच गये भैया!!
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यकीन मानिये इन सब धमाकों से बिलकुल भी डर नहीं लगा. इसके बाद भी मैं कई बार बसरा गया और कई सर्वे किये. डर लगा था एक समुद्री यात्रा में.
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दक्षिण अफ्रीका के डरबन पोर्ट में तेल डिस्चार्ज करके हम केप टाउन जा रहे थे. डरबन से निकलते ही पता चल गया कि आगे का मौसम गर्मा-गरम होगा. केप ऑफ गुड होप तक पहुंचते पहुंचते समुद्र देवता ने जोर जोर से फुंहारें मारनी शुरू कर दीं. ऊंची ऊंची समुद्री लहरें करीब 15 – 20 फीट की. हमारा जहाज दोनो तरफ 30 से 35 अंश की रोलिंग करता हुआ जस तस खिंच रहा था. ऊपर वाले ने छप्पर और फाड़ा और ऐसे मौसम में हमारे जहाज का इंजन भी बंद पड़ गया.
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लो जी!! अब हमारा हिलना डुलना और भी बढ गया, पानी डेक के ऊपर से बहने लगा. और हम तेजी से जमीन की ओर ड्रिफ़्ट करने लगे. हमने सोचा कि भैया अब किसी चट्टान से टकरायेंगे और डूब डाब जायेंगे. ना दो गज़ कफ़न नसीब होगा और ना चिता की लकड़ी.
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धीरे से सैटलाइट फोन से घर का नम्बर डायल किया, बीबीजी ने फोन उठाया और कहा,”हेलो!” थोड़ी देर हम फोन पकड़े रहे और दो तीन बार बीबीजी का हेलो सुना, पीछे से बच्चों के खेलने की आवाज़ें भी आ रही थीं. घर का पूरा दृश्य आंखों के सामने घूम गयी. कुछ भी बोलने का साहस नहीं जुटा पाया, होंठ सिल गये और जबान तालू से चिपकी रह गयी. बिना कुछ बोले ही फोन काट दिया. एक ही पल में पूरा जीवन आँखों के सामने एक फिल्म की तरह घूम गया -यार-दोस्त-शादी-मुण्डन-भाई-बहन-हंसी-आंसू.....
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अब ऐसे में उन्हें क्या परेशान करते.
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किस्मत कहिये या यमराज का रास्ता भूल जाना, इंजन फिर से चल पड़ा और हम लहरों से लड़ते हुये फिर चल पड़े केप टाउन की ओर.
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उस दिन सच में डर लगा था.
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बिना धमाके की आवाज़ ने बहुत कुछ बताया. उस दिन मुझे लगा कि थोड़ा सा जो समय है जिंदगी और मौत के बीच में उसमें मैं क्या करना चाहूंगा और अगर हर दिन जीवन का आखिरी हो तो कैसे जीना चाहूंगा. लड़ कर, झगड़ा कर के, गालियाँ बक कर या फिर खुश रह कर – हर फिक्र को धुंये में उड़ाता हुआ.....उस दिन बीबीजी की ‘हलो’ की मिठास आज तक मेरे कानों में धीरे- धीरे घुलती रहती है और हर लम्हा मुझे जीवन का गीत सुनाती रहती है.
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मौत की एक हलकी सी खनक भी जीवन का संगीत बदल कर रख देती है. इस घटना को मैं अपने लिये ईश्वर का आशीर्वाद मानता हूं.
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अंत में कोई स्माइली नहीं है, जब उन वाकयों की बात कर रहा हूं जब जिंदगी हाथ से फिसलती हुयी दिखी थी इसमें स्माइली कैसे लगा दूं?
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दूसरा ; चिट्ठा जगत में भाईचारा , बहनापा सच है या माया है ?
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चिठ्ठा जगत में माया कहाँ? माया तो बस एक ही है ‘बहन मायावती’ बाकी तो सब सत्य है. हाँ, जिस दिन उन्होंने चिठ्ठा लिखना शुरू कर दिया उस दिन भाईचारा तो शायद बचा रह जाये लेकिन सारे का सारा बहनापा और सत्य वही ले उड़ेंगी.
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यहाँ स्माइली लगाता हूं – ये लो भाई :)
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तीसरा ; किसी एक चिट्ठाकार से उसकी कौन सी अंतरंग बात जानना चाहेंगे ?
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वैसे यहां पर पांच चिठ्ठा कारों के नाम देने का मन कर रहा है. लेकिन छोड़िये, खुला सवाल सभी के लिये – आपको डिनर डेट का प्रस्ताव मिला है क) महिला चिठ्ठाकार हैं तो हृतिक (चलिये ब्रैट पिट भी लगा देते हैं) के साथ और ख) पुरुष चिठ्ठाकार हैं तो ऐशवर्या (या ऐंजोलिना जोली) के साथ. मसला यह है कि ठीक उसी दिन और उसी समय के लिये आपके पास एक और निमंत्रण है पाकिस्तान में आये एक भूकंप में मृत लोगों के परिवारजनों हेतु लिये चंदा जमा करने के लिये आयोजित कार्यक्रम में कविता/गीत/लेख प्रस्तुत करने का.
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सच बताइयेगा, आप कहाँ जायेंगे?
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चौथा ; ईश्वर को हाज़िर नाज़िर जान कर बतायें (गीता/कुरान पर भी हाथ रख कर बता सकते हैं ) टिप्पणी का आपके जीवन में क्या और कितना महत्त्व
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बहुत महत्व है! मेरे लिये तो प्रसाद के समान हैं. वैसे इस पर भी निर्भर है कि टिप्पणी का स्वरूप क्या है. मसलन कोई युवती मुझे देख कर टिप्पणी करे ‘हाय हैण्डसम, आय लाइक योर साल्ट ऍण्ड पेपर हेयर्स, हाऊ अबाउट डिनर टुनाइट – जस्ट यू ऐंड मी...’ भई वाह टिप्पणी हो तो ऐसी.
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लेकिन मान लीजिये युवती की टिप्पणी यूं हुयी,” हेलो अनुराग अंकल, आंटी इज़ ऐट अवर प्लेस, वुड कम बैक बाई नाइन, शी सेड टु कीप द डिनर रेडी.” हो गया ना बंटाधार!! पूरा मूड ऑफ हो गया.
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तो साहिबान अगर टिप्पणी का प्रारूप पहली वाली जैसा है तो बेशक मेरे ब्लॉग पर डालिये और अगर दूसरी वाली जैसा है तो अपने ब्लॉग पर पोस्ट बना कर छाप दीजिये – हाँ नहीं तो!!
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पाँचवा ;चिट्ठा लिखना सिर्फ छपास पीडा शांत करना है क्या ? आप अपने सुख के लिये लिखते हैं कि दूसरों के (दुख के लिये ;-)
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छपास? अरे कौन बावला हुआ है कि मेरा लिखा छाप कर पाठकों द्वारा सड़े अण्डों और टमाटरों की बारिश झेलेगा? छपास पीड़ा तो तब होगी ना जब कुछ छपने लायक लिखेंगे.
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हम दो सूत्रीय कार्यक्रम के तहत लिखते हैं – पहला अपने सुख के लिये और दूसरा अगले को मानसिक यातना देने के लिये. लेकिन लगता है लोग मेरे पकाऊ ब्लॉग की पोस्ट से लोग इम्यून हो गये हैं. यातना के नये हथकंडे अपनाने पड़ेंगे. जल्द ही एकता कपूर की शरण में जाता हूं ताकि पकाऊ उस्ताद बन सकूं. वैसे इस दिशा में सोचते हुये गत सप्ताह मैं ने “सलाम-ए-इश्क” देख डाली यकीन मानिये बहुत सारे पकाऊ हथियार जमा हो गये हैं.

11 टिप्‍पणियां:

Srijan Shilpi ने कहा…

भाई अनुराग जी,

आपके पास तो जिंदगी के लोमहर्षक लम्हों का अनमोल खजाना है। आप धीरे-धीरे हम सभी से इसका साझा करें। टैगिंग के इस खेल में बहुत ही रोचक बातें पता चल रही हैं, साथी चिट्ठाकारों के बारे में, जो अन्यथा शायद पता नहीं चलतीं।

Pratyaksha ने कहा…

अर्ली बर्ड पुरस्कार आपको दिया जाता है :-)
पहले सवाल का जबाब तो हिला कर रख गया । फोटो भी ।

उन्मुक्त ने कहा…

धमाकेदार घटना तो बहुत धमाकेदार थीी। हम तो पढ़ते पढ़ते ही हिल गये।

Geetkaar ने कहा…

हुज़ूरे अनवर
टिप्पणी के लिये चुना भी तो एंजेलीना जोली और ऐश्वर्य राय को. भैये माला में बँधे फूलों को एक एक कर अपने शीश पर चढ़ाने का सपना सोचोगे तो---- सोचते रहो--- सोचते रहो

Sunil Deepak ने कहा…

उत्तर तो सभी बहुत रोचक हैं, धमाकेदार बातों उत्तर मन को छू लेते हैं पर यह समझ में नहीं आया कि सुंदर युवतियाँ आप से सिर्फ अँग्रेजी में ही क्यों बोलती हैं? :-)

बेनामी ने कहा…

‘हाय हैण्डसम, आय लाइक योर साल्ट ऍण्ड पेपर हेयर्स, हाऊ अबाउट डिनर टुनाइट – जस्ट यू ऐंड मी...’

अब यह भी बता दो भैया टिप्पणी अपने ही नाम से करूं या कोई ऐश शुष वगैरह के नाम से ? :D

वैसे धमाका जोरदार सुनाये हो, हमारी तो रूह कांप गयी।

बेनामी ने कहा…

//मौत की एक हलकी सी खनक भी जीवन का संगीत बदल कर रख देती है//

सही कहा आपने.. बाकी के जवाब भी रोचक रहे!

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत खूब ! बम के धमाकों को भी किस अन्दाज में बता रहे हैं आप! एक हम हैं कि दो मीटर की दूरी पर चींटी भी कुचली जाए सोचते हैं कि 'यह मैं भी हो सकती थी' ,बाल बाल बचे हम । भई केकता कपूर की शरण में मत जाना, फिर हमें कनुराग जी को कढ़ना, क्षमा कीजिये पढ़ना पड़ेगा ।
वैसे हास्य की कोई डिस्टेन्स एजूकेशन कक्षाएँ लेते हों तो हमें भी बता देना । किसे इनकी आवश्यकता है यहाँ नहीं बता सकते । हाँ आपके भाई बन्धुओं में से ही एक हैं ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
miredmiragemusings.blogspot.com/

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

बहुत खूब अनुराग भाई, पढ़कर मजा आ गया।

ePandit ने कहा…

सचमुच धमाकेदार घटना थी। सभी सवालों के खूब जवाब दिए आपने।

Manish Kumar ने कहा…

अरे बस आप भी एक फिल्म बना ही डालो थ्रिलर टॉइप समुद्री यात्रा से जुड़ी! बस प्यार का कोण जोड़ते ही Titanic का रिकार्ड भी तोड़ देगी ।