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अपनी पिछली लखनऊ यात्रा के दौरान, मैं अपने बचपन के मित्र राज से मिलने उसके घर गया. राज और मैं बचपन से ही एक साथ, एक ही स्कूल में पढे हैं. मुझे देख कर बहुत खुश हुआ लेकिन थोड़ी ही देर साथ बैठ कर बोला.” गुरू, अब तुम यहां से खिसको, मुझे ज़रूरी काम निपटाने हैं.”
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राज एक स्थानीय समाचार पत्र में संवाददाता है. उसे कोई नई ‘कहानी’ मिली थी जिसे वह जल्द से जल्द खत्म करके अखबार में देना चाहता था. मैं ने पूछा,” अरे, ऐसी कौन सी कहानी मिल गयी है, जिसके चलते तुम मुझे चलता कर रहे हो? बचपन के यार हैं, इतने साल बाद मिले हैं और तुम हो कि मुझे भगा रहे हो!”
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राज बोला, ”एक अंदर की खबर मिली है. खैर ऐसी कोई खबर नहीं है जिसके छपने से राजनैतिक भूचाल आ जायेगा. पर कुछ ‘एक्सक्लूसिव टाइप’ का मामला है.”
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मेरी जिज्ञासा बढ़ी,”क्या मसला है, हमें भी बताओ भैया.”
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राज: हमारी अपनी ‘भारत मोटर्स’ ने अपना पुराना कछुआ छाप मॉडल बंद करके, एक नयी कार बनाने की सोची है. आज कार निर्माता लखनऊ आये थे मैं ने उनसे मुलाकात करी और इस नयी कार के बारे में काफी जानकारी उगलवा ली. अभी तक यह बात किसी को मालूम नहीं है, अगर मैं इसका खुलासा कर दूंगा तो फेमस हो जाऊंगा.....!
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मैं: मुझे विश्वास नहीं होता!
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राज: किस बात पर?
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मैं: पहली बात तो यह ‘भारत मोटर्स’ अपनी कछुआ कार बंद कर ही नहीं सकती – भैये, अगर कछुआ कार बंद हो गयी तो हमारे तमाम नेता गण क्या पैदल चलेंगे? और तमाम सरकारी बाबू ऑफिस, उनकी घरवालियाँ शॉपिंग और बच्चे सरकारी गाड़ी के बिना स्कूल कैसे जायेंगे? दूसरी बात यह है कि ‘भारत मोटर्स’ जैसी कम्पनी कभी भी ‘नयी’ कार बनाने की सोच ही नहीं सकती – उनकी ऐसी मानसिकता ही नहीं है.
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राज: अब तुम मानो या ना मानो, लेकिन ऐसा हो रहा है. तुमने जो तमाम प्रश्न उठाये हैं, यह प्रश्न निर्माताओं के मन में भी उठे थे इसीलिये उन्होंने अपने नये मॉडल का विकास इन सब बातों को ध्यान में रखते हुये किया है.
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मैं: मसलन?
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राज: तुम तो जानते ही हो, भारत मोटर्स ही वह कम्पनी है जिसने हमारे देश, नेताओं और बाबुओं को चार पहिये दिये. हमारे देश के ‘कार’ के इतिहास में इनका नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जायेगा. इनकी दूरदर्शिता के चलते इनकी कछुआ कार को एक विशेष ‘भारतीय’ छवि मिली है. कछुआ कार प्रतीक है भारतीय नेताशाही और बाबूराज का. कछुआ कार देखते ही आँखों के सामने नेताओं और बाबुओं की छवि घूम जाती है.
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मैं: हां, और टैक्सी वालों की भी..
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राज: जो भी है. भारत मोटर्स अब कुछ बदलाव लाना चाहती है. भारतीय परिस्थितियों और आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुये ही वह एक ‘कम्प्लीट इंडियन कार’ बना रहे हैं.
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मैं: अय्यो! सच्ची !?
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राज: हाँ, और इस नयी कार का नाम है ‘अम्बे-से-डर’.
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मैं: आंयें...! यार सुना सुनाया नाम लग रहा है..
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राज: उनके पिछले मॉडल के नाम से थोड़ा मेल खाता है, लेकिन ध्यान दो भाई, यह शत-प्रतिशत भारतीय नाम है – कोई अंग्रेजी नाम नहीं. भारतीय कार – भारतीय नाम.
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मैं: यह नाम रखने की कोई खास वजह?
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राज: और नहीं तो क्या? बिना वजह ऐसा नाम रख देंगे! देखो, भारत मोटर्स का यह मानना है कि उनकी कार मुख्यत: तीन प्रकार के लोग प्रयोग करते हैं, नेता, बाबू और टैक्सी वाले. नेता अर्थात भूतपूर्व माफिया या डॉन टाइप का आदमी. अगर ऐसा आदमी कार में बैठ कर आ रहा है तो तुम्हारे मन में किस प्रकार का भाव आयेगा?
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मैं: भय का, डर का...
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राज: इसी लिये कार का नाम ‘अम्बे-से-डर’ अगर बाबू अंदर बैठा है तो क्या विचार आयेगा?
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मैं: डर का ही भाव आयेगा, राज बाबू. यह डर कि उनका सिरचढ़ा ड्राइवर जो खुद को खुदा से कम नहीं समझता है पहले तो खुद ही हम ठोंकेगा फिर जुतियाएगा और फिर छोड़ने के लिये सुविधा शुल्क की मांग भी करेगा.
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राज: बिलकुल ठीक, इसीलिये ‘अम्बे-से-डर’. और टैक्सी वाले...
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मैं: ... बताने की ज़रूरत नहीं है, सड़क पर टैक्सी आती देख कर हम ऐसे ही डर के मारे पटरी पर उतर जाते हैं. समझ गये ‘अम्बे-से-डर’, नाम तो वाकई बहुत ‘सूट’ करता है.
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राज: दरअसल, कार निर्माता ने एक बहुत बड़ी टीम को सर्वेक्षण करने हेतु लखनऊ भेजा था. इस सर्वेक्षण में यह पता किया गया कि उनके आगामी मॉडल में क्या परिवर्तन किये जायें.
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मैं: अरे वाह, लेकिन भाई लखनऊ क्यों?
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राज: उनका यह मानना है कि वह worst operating conditions में चल रही कारों का सर्वेक्षण करेंगे तो बेहतर जानकारी प्राप्त होगी. उनका सर्वेक्षण पूरा हो गया है, जिसका खुलासा मैं कल अपने अखबार में करने जा रहा हूं.
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मैं: अरे यार, हमें भी बताओ......!
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राज: कार का पुराना रुतबा ना खराब हो, इसलिये कार के आकार में कोई तबदीली नहीं करी जा रही है...
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मैं: मलतब वही कछुआ छाप!
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राज: हां, और ‘अम्बे-से-डर’ केबल एक ही रंग में उपलब्ध होगी – सफ़ेद. सर्वेक्षण के अनुसार लखनऊ में लोग अपनी कार के ऊपर बत्तियां (Beacon) लगाना बहुत पसंद करते हैं, इसीलिये नयी कार में तीन रंग की बत्तियाँ फैक्ट्री से लग कर की आयेंगी – लाल बत्ती, नीली बत्ती और पीली बत्ती.
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मैं: कोई ‘स्ट्रिक्ट’ एस.पी. आ गया तो चालान कर देगा!
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राज: बीच में मत बोला करो, पूरी बात तो सुनो! बत्तियों के साथ कैनवस के तीन कवर भी मिलेंगे, अगर कोई ‘स्ट्रिक्ट’ पुलिस वाला आता है तो आपको बत्तियां निकालने की ज़रूरत नहीं है, बस कैंवस कवर से ढ़क दीजिये और चलते रहिये. वैसे भी ‘स्ट्रिक्ट’ पुलिस वाले का तबादला 10-15 दिन में दुधुवा नेशनल पार्क की पुलिस चौकी में हो जायेगा.
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मैं: ग्राहकों की डिमांड को ध्यान में रखा है!
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राज: इसके अलावा लाईट की पास दो ज़बरदस्त ‘प्रेशर हार्न’ भी लगे लगाये आयेंगे.
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मैं: लेकिन ‘प्रेशर हार्न’ तो प्रतिबंधित हैं!
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राज: हाँ, प्रतिबंधित हैं, लेकिन कछुआ छाप कार के लिये कुछ भी प्रतिबंधित नहीं होता. सड़क पर आंखें मूंद कर चलते हो क्या? देखे नहीं हो सारी सफेद कछुआ कारों में प्रेशर हार्न लगे रहते हैं. कछुआ कारों के लिये कुछ भी प्रतिबंधित नहीं है, जानते नहीं कौन लोग चलते हैं इन पर? और भैये, बिना प्रेशर हार्न के तो कछुआ कार अधूरी रहती है. और कार निर्माता ने राज्य सरकार और केन्द्र सरकार से यह अपील करने की सोची है कि ‘अम्बे-से-डर’ में प्रेशर हार्न लगाने के लिये विधान सभा और लोक सभा में बिल भी पारित करें. यह प्रेशर हार्न भी कुछ खस तरीके के हैं.
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मैं: खास?
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राज: हां, इनको कब्रिस्तान में ट्राई किया गया, सारे मुर्दे कान में उंगली ठूंस कर अपनी कब्र छोड कर भाग निकले. इनकी आवाज़ ऐसी तीखी और तीव्र है कि बहरों को सुनाई देने लगे और सुनने वाले बहरे हो जायें.
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मैं: तब तो दुर्घटना हो सकती है.
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राज: जरूर होगी. हार्न सुन कर बहुत से लोग बेहोश हो कर सड़क पर लुढ़क जायेंगे. इसको देखते हुये ड्राइवरों को ड्राइविंग लाइसेंस के साथ ‘लाइसेंस टू किल’ भी मिलेगा. आखिर खास लोगों की कार है ना ‘अम्बे-से-डर’. कोई गिरे तो उसको कुचलते हुये निकल जाओ. इन सब से लोगों के मन में सफेद ‘अम्बे-से-डर’ का डर बैठेगा और वह कार को साफ रास्ता देंगे.
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मैं: बाप से ! लगता है ‘फियर फैक्टर’ की अगली कड़ी में आने वाली है ‘अम्बे-से-डर’. और कोई नयी बात?
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राज: सर्वेक्षण में यह बात भी निकल कर आयी कि लखनऊ में कार चलाने के लिये इंजन की नहीं बल्कि हार्न की जरूरत होती है. हार्न बजाने से ही गाड़ी चलती है – इंजन से नहीं. इसलिये नयी कार ‘अंबे-से-डर’ में इंजन निकाल दिया गया है.
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मैं: अरे, अजीब हो यार – गाड़ी चलेगी कैसे?
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राज: लखनऊ के यातायात में कार ऐसे भी 15 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से अधिक तेज़ तो चल नहीं पाती. इस गति के लिये इतना बड़ा और प्रदूषण फैलाने वाला इंजन क्यों लगाया जाये? इसलिये अब नयी ‘अम्बे-से-डर’ में बोनट के नीचे एक जोड़ी बैल होंगे.
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मैं: सच्ची !?
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राज: हाँ, देखो, इससे एक तो प्रदूषण कम होगा, दूसरे सड़क पर फैला कूड़ा-करकट भी बैल हजम कर जायेंगे – इनक्लूडिंग पॉलीथीन. उनके गोबर से खाद भी बनेगी और सबसे बड़ी बात यह कार बामपंथियों को भी बहुत पसंद आयेगी. तेजी से चलती और विकासोन्मुख कोई भी चीज़ उन्हें पसंद नहीं आती.
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मैं: हुम्म!
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राज: धीरे-धीरे चलती कार का रास्ता साफ रहे इसलिये प्रेशर हार्न.
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मैं: वाह भई वाह, environmental friendly car. बैल गाड़ी पर भारत – विकास की ओर तेजी से अग्रसर.
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राज: अब तुम ताने ना मारो !
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मैं: भैया, और ज्ञान दो....
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राज: बाकी कई चीज़ें इस कार के साथ लगी-लगाई आयेंगी जैसे पीछे डिक्की पर लाल रंग से लिखा रहेगा “पावर ब्रेक” जो “पावर” का प्रतीक है.
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मैं: सही है भाई!
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राज: अब लखनऊ सर्वेक्षण में यह भी पता चला कि इस शहर के हर इंसान की कोई ना कोई हस्ती ज़रूर है. सब अपनी कार पर तख़्ती ज़रूर लगाते हैं जैसे ‘सचिव’, ‘अध्यक्ष’, ‘बड़ेबाबू’ इसको ध्यान में रख कर ‘अम्बे-से-डर’ लगी लगायी तख़्ती के साथ आयेगी. जिस पर पहले से ही तमाम ओहदे लिखे होंगे, जो ना पसंद आये उस पर पेन्ट मार दीजिये. इस तख़्ती को कुछ ऐसे लगाया जायेगा कि कार की नम्बर प्लेट ढक जाये. अरे भाई नम्बर प्लेट तो आम आदमी की गाड़ी में लगायी जाती है. खास लोग नंबर प्लेट दिखाते घूमेंगे तो शान में कमी आ जायेगी ना.
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मैं: दमदार लोगों की दमदार कार – ‘अम्बे-से-डर’.
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राज: एक बात और नम्बर प्लेट के ऊपर दो इंच की एक लाल पट्टी भी पेंट रहेगी – जिससे टैक्सी वालों की गाड़ी भी सरकारी गाड़ी लगे.
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मैं: जबरदस्त सर्वेक्षण किया है लखनऊ में.
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राज: ‘अम्बे-से-डर’ का कभी चालान नहीं होगा, इसे नो पार्किंग में भी खड़ा किया जा सकता है. अगर कोई मनचला इस पर आपत्ति दिखाये तो ड्राइवर को सिर्फ इतना कहना होगा ‘जानते नहीं हो किसकी गाड़ी है’ साथ ही ड्राइवर को गालियाँ देने का भी हक दिया जायेगा. पार्किंग तो आम आदमी के लिये है ना. मान लो कभी ड्राइवर ने गलती से इसे पार्किंग में खड़ा भी कर दिया तो भी उसे पार्किंग शुल्क नहीं देना होगा. ‘अम्बे-से-डर’ की पार्किंग हमेशा फ्री. अगर पार्किंग वाला गलती से पार्किंग शुल्क मांगे तो ड्राइवर को हक दिया जायेगा कि वह पार्किंग वाले को दो-तीन कंटाप और तीन-चार चुनिंदा गालियाँ भी दे दे.
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मैं: यह तो अनर्थ है भाई.
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राज: तुम्हारे लिये अनर्थ होगा. पर यह कार प्राप्त करने के लिये बहुत मेहनत करनी पड़ती है. इसे शान से हज़रतगंज में, अमीनाबाद में, नखास में कहीं भी बीच सड़क पर खड़ा करके घूमिये, मेमसाहब को शॉपिंग कराइये, बच्चों को स्कूल भिजवाइये. This is the car of elite. समझे.
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मैं: मैं चला.....
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राज: कहां....?
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मैं: भारत मोटर्स की नयी कार ‘अम्बे-से-डर’ खरीदने.
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अरे, आप लोग यहां बैठ कर पानी के बताशे खा रहे हैं! जाइये, जल्दी जाइये और अपने लिये एक नयी नवेली ‘अम्बे-से-डर’ खरीद लाइये. पॉवरफुल लोगों की पॉवरफुल कार.
10 टिप्पणियां:
वाह ,क्या लिखा है । सटीक व्यंग ।
सबसे बड़ी बात यह कार बामपंथियों को भी बहुत पसंद आयेगी. तेजी से चलती और विकासोन्मुख कोई भी चीज़ उन्हें पसंद नहीं आती.
क्या कहने ! लाल सलाम !
हम अब चलता हूं अम्बे-से-डर लेने जा रिया हूं
भई वाह, जी कर रहा है कि अपनी मां-रूठी की कार बेच कर अम्बे से डर ले आऊं :)
बहुत खूब सर्वे किया है!
वाह!! *बैल गाड़ी पर भारत – विकास की ओर तेजी से अग्रसर.*
बहुत अच्छे ! मजा आ गया पढ़कर ।
घुघूती बासूती
ghughutibasuti.blogspot.com
जबरदस्त स्टेयरींग घुमाया भाई…मजा आगया पढ़कर्…
बधाई हो!!
बहुत सही व्यंग्य किया है, लेकिन एक बात जो आपका दोस्त बताना भूल गया था वो मैं बताये देता हूँ और वो है कि भारत मोटर्स गरीब और कम आय वाले लोगों के लिये 'अम्बे-से-न-डर' नाम से भी एक वर्जन निकाल रही है।
बहुत खुब. आपको तो शोध विभाग का अध्यक्ष होना चाहिये. खाँ से कहाँ चले जाते हो, बहुत सही.
-अच्छा अब काम की बात, इसे पहली टिप्पणी मानी जाये ५ वाली में से.
Marvelleous. Aurag Saheb.
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