शुक्रवार, नवंबर 03, 2006

भगवान के संदेशवाहक

करीब हफ़्ता - दस दिन पहले की बात है, खाना-वाना खा कर हम बैठे बच्चों से बतिया रहे थे कि अचानक मोबाइल फोन से “टु टु टु टू टू टु टु टु टु” की परिचित आवाज़ आई। “पापा का SMS आया,” कह कर बेटाजी गये और हमारा फोन उठा लाये, आते आते बेटाजी ने इनबाक्स में जा कर संदेश खोल भी दिया और आकर फोन मुझे थमा दिया। मोबाइल देख कर हम तो कांप गये यह लिखा था,

Ignore mat karma
nahi to 1-2 saal tak
unlucky ho jaoge “
sabka malik ek”
8 logon ko
bhejo, ek achi
khabar milegee rat
tak.Its real..

पहली लाइन पढ़ कर भयावह दृश्य सामने घूम गया कि हम मुम्बई की लोकल ट्रेन में, गले में हारमोनियम टांगे “दिल के अरमां आंसुओं में बह गयेएएए…” वाला गाना गा गा कर कटोरा लिये घूम रहे हैं।

थोड़ा अच्छा भी लगा कि चलो भाई विदेश में आ कर हम अपनी ‘अच्छी वाली’ संस्कृति, ‘अच्छे वाले’ संस्कार और भाषा भले ही भूल रहे हों अपने अंधविश्वास पर अभी भी पूरी तरह कायम हैं। गुस्सा भी आया कि भेजा किसने? देखा तो और कोई नहीं हमारे एक परम हितैषी, भारतीय मित्र राजू जी, हमारे लिये संकटमोचन का वेश धरे बैठे थे।

यह गनीमत थी कि बीबीजी आस पास नहीं थीं, नहीं तो यह संदेश पढ़ कर लकड़ी की अनुपस्थिति में, घर का सारा फ़र्नीचर फूंक कर तुरंत हवन-पूजा शुरू कर देतीं और नारियल की अनुपस्थिति में मेरी मुण्डी ही फोड़ी जाती। हमने धीरे से फोन जेब में चेंपा और बच्चों से कहा कि जाओ भाई बहुत रात हो गयी है – सो जाओ! फिर रसोई में झांक कर देखा बीबीजी अभी भी काक्रोच मारक स्प्रे लिये cयस्त हैं।

हम पतली गली पकड़ कर बालकनी में गये और राजू का फोन घनघना दिये, अब पता नहीं कि साहब सोने की तैयारी कर रहे थे या हमारा फोन नहीं उठाना चाहते थे…काफ़ी देर घंटी बजने के बाद साहब ने फोने उठाया और मुर्दही आवाज़ में बोले,” हां भाई अनुराग, क्या हाल चाल हैं?”

“अबे, हाल चाल गया तेल लेने को ये क्या SMS भेजा है?”
थोड़ा खिसिया के बोले,” अरे यार वो……बस ऐसे ही……मुझे आया था तो तुमको भी भेज दिया।“

“बड़ा मिल बांट कर चलने वाली आदतें डाल रहे हो, हम तो भैया कायल हो गये तुम्हारे! कल अगर भगवान मेरे लिये गिफ़्ट रैप करवा कर कैंसर रोग लायेंगे तो हम भी उनसे कह देंगे – आधा राजू भाई को भी दे दो……”

“अरे शुभ शुभ बोलो यार, मुंह में सरस्वती का वास होता है, भगवान ना करे……“

“क्या हुआ? किसके कैंसर से कांप गये – मेरे या तुम्हारे…। रात बिरात ये टेंशनिया मैसेज भेजे हो इसका क्या करूं…?”

“करना क्या गुरू, आठ लोगों को बढ़ा दो।“

“भैया हम तो आठ देसियों को यहां जानते भी नहीं परदेस में, जिनको जानता हूं वो क्लाइंट्स हैं। अगर उनको यह भेजा तब तो तुरंत ही दुर्दिन शुरू हो जायेंगे।“

राजू भाई को यह बात बहुत ‘फन्नी’ लगी, हा…हा…करके हंसते हुये बोले,” प्राबलम है तब तो…किसी को भी नहीं जानते?”

“मेरे ज्यादातर मित्र तो लोकल हैं चाइनीज़, उनको भेजूंगा तो आठ के आठों रात भर फोन करके इसका मतलब पूछेंगे, सारी रात जगना पड़ेगा।“

यह बात राजू को और भी जोर से गुदगुदा गयी, पूरा फेफड़ा फाड़ कर हंसे। पैदा होने से लेकर आज तक जितनी कार्बन डाई आक्साइड उनके फेफड़ों में जमी थी, इस हंसी से पक्का निकल गयी होगी। हांफ हांफ कर बोले,” यार तुम बड़े ‘जोकी नेचर’ के हो…” और अमरीश पुरी की तरह हो हो करते हुये, बिना कोई राह सुझाये फोन भी धर दिये।

हमने फिर SMS पढ़ा “ek achi khabar milegee rat tak” हमने सोचा कि रात तो हो ही चुकी है मतलब कि अच्छी खबर आने की डेड लाइन तो एक्सपायर हो चुकी है, तो काहे को बिना वजह आठ लोगों की नींद हराम करूं और साथ में आठ SMS का खर्चा अलग। खर्चे वाली बात हमारी खोपड़ी में जल्दी घुसी और हमने लप्प से वह SMS delete कर दिया।

रात भर हम भगवान जी के बारे में सोचते रहे। इस घोर कलयुग में उनको भी ‘आइडेन्टिटी क्राइसिस’ हो गयी है।

पहले स्वर्ग का प्रलोभन और नर्क का भय दिखा कर अपनी सत्ता चला ले जाते थे लेकिन अब आज के बंदे हैं कि मरणोपरांत स्वर्ग जाना ही नहीं चाहते “यार स्वर्ग में अकेले बोर हो जायेंगे, यार दोस्त तो सारे नर्क में रहेंगे ना – मुझे तो उनके साथ ही रहना है, और फिर अर्जुन सिंह की कम्बल परेड भी तो करनी है।”.

यदा कदा लोग अपना अधूरा काम पूरा होने की कामना करते हुये मंदिर की चौखट पर घूम फिर आया करते थे, अब उसकी भी जरूरत नहीं, घूस घास दे कर काम ऐसे ही बन जाते हैं और अगर ना बने, तो किसी ‘भाई’ की शरण में जाकर बंदे को टपकवा सकते हैं – मंदिर की तुलना में ‘भाई’ का दरबार ज्यादा इफ़ेक्टिव है! मंदिर में तो फिर भी शंका रह जाती है कि पता नहीं भगवान जी सुनिहैं कि ना सुनिहैं लेकिन ‘भाई’ के दरबार में यदि आपने उचित प्रसाद चढ़ा दिया है - तो जजमान, काम अवश्य पूरा होगा।

और सोचा कि नाते रिश्तेदार, माता-पिता की तबियत खराब होने पर लोग बाग मंदिर जाते थे, उनकी सलामती की दुआ करने। कुछ लोग गाना वाना भी गाते थे, “मेरी विनती सुने तो जानूं, मानूं तुम्हें मैं राम, राम नहीं तो कर दूंगा सारे जग में तुम्हें बदनाम………।“ अब तो भैया इसका भी टेंशन लेने की जरूरत नहीं, इधर बाऊ जी ने गैस की वजह से भी अगर सीने में दर्द बताया, तो बेटवा तुरंत हार्ट अटैक का वरदान समझ कर बाऊ जी को बिना टाइम वेस्ट किये जमीन पर लिटा कर, सिरहाने एक दिया जला कर, मुंह में तुलसी की दो पत्तियां ठूंस चार पांच बूंद गंगा जल टपका कर बाहर जाकर तेरही का मेन्यू बनाना शुरू कर देता है।

बेचारे भगवान जी टेंशनिया गये होंगे, टी आर पी लगातार गिर रही है, कोई उन पर टिप्प्णी भी नहीं करता। अपनी सत्ता बचाने के लिये अब भगवान जी को भी नये नये हथकण्डे अपनाने पड़ते हैं। मुझे तो लगता है किसी ऐडवर्टाइज़िंग कम्पनी को हायर कर लिये हैं जो उनके अस्तित्व की पुनर्स्थापना हेतु ऐसे SMS भेजती है, हो ना हो यह भगवान जी के ही संदेशवाहक हैं। भगवान जी की दयनीय स्थिति के बारे में सोचते सोचते आंख लग गयी।

सुबह उठ कर कम्प्यूटर आन किया, मेल चेक करी। मेरे एक परम मित्र की ई-चिठ्ठी आयी थी उसमें एक परी की ‘फोटू’ बनी थी और कुछ ज्ञान की बातें लिखी थीं कुछ इस प्रकार से,

This is the image of Money Fairy, the fairy of wealth. Forward this message to at least 10 persons within 20 minutes of reading it and you’ll receive huge amount of money within four days.

Do not delete or ignore it else you’ll beg. Believe me – IT IS TRUE!

मित्र का चेहरा आंखों के सामने घूम गया। उसके विशाल हृदय में मेरे लिये कितना प्रेम है। मेरी कितनी चिंता है उसे और देखो मुझे धनाड्य बनाने के लिये कितना सरल सा रास्ता भी खोज लाया है। आगे आने वाले खतरों से कैसे सावधान कर रहा है ‘else you’ll beg’. मुम्बई की लोकल ट्रेन, गले में हारमोनियम, “दिल के अरमां आंसुओं में बह गयेएएए…” वाला गाना फिर सामने घूम गये।

ऐसा अतुल्य प्रेम देख कर मेरा छोटा सा हृदय द्रवित हो उठा और आंखें छलक उठीं। मैं ने दिल खोल कर अपने मित्र को खूब दुआयें दीं।

अब SMS Delete कर के भगवान जी से पंगा तो ले ही चुके थे सो ई–पत्र भी Delete कर दिया, सोचा अगर भगवान जी ज्यादा डिस्टर्ब हुये तो प्रायश्चित करके क्षमा मांग लूंगा।

मेल चेक करने के बाद सोचा कि अपने ब्लाग की टी आर पी चेक करी जाये। ब्राउज़र पर अपने ब्लाग का पता डाला तो खुला कुछ और। कई बार कोशिश करी हर बार कोई नयी साइट खुल जाये। सारे एन्टी वायरस – एन्टी स्पाई वेयर चला डाले पर संगणक जी टस से मस ना हुये। धीरे धीरे करके उनके ऊपर हुआ हमला और भी गंभीर होता गया। अब तो घुसपैठिये ने हमें डेस्कटाप तक ही सीमित कर दिया। शाम तक हम भी हिम्मत हार बैठे।

एक जगह ले जाकर चेक भी करवाया, साहब ने कम्प्यूटर में इतने सारे रोग और इतने लम्बे खर्चे बताये कि मैं ने सोचा नया पी सी खरीदना ही बेहतर होगा। इस बात से मुझे लगा कि हो ना हो भगवान जी ने नाखुश हो कर मुझे दण्ड देने की सोच ही ली है और धीरे धीरे मुझ पर वार करना भी शुरू कर दिये हैं। रात को हम भविष्य के विषय में सोचते हुये “दिल के अरमां आंसुओं में बह गयेएएए…” वाले गाने की प्रैक्टिस भी करने लगे।

फिर यह सोचा कि मंदिर जा कर भगवान जी से क्षमा मांग लेते हैं – कहा सुना माफ़, वो कहेंगे तो प्रायश्चित भी कर लेंगे। बीबीजी से कहा,” मैं कल देर से आऊंगा, सोच रहा हूं कि मंदिर हो आऊं!”

“किस देवी के दर्शन को जा रहे हो? विदेश में रहते हुये तुम्हारी नज़रें भी बदलती जा रही हैं। मुझे तो पहले से ही कुछ शक था, क्या बात है मुझे बताओ…आखिर वो कलमुही है कौन?!”

मैं ने सिर पीट लिया कान पकड़ कर बोला,” कहीं नहीं जाऊंगा मैया, मेरी तौबा जो फिर मंदिर का नाम भी लिया।“

भगवान जी के दर्शन के लिये झूठ का सहारा लिया। अगले दिन आफिस से बीबीजी को फोन किया, “ शाम को कुछ क्लाइंट्स आ रहे हैं, आने में देर हो जाएगी।“ बीबीजी ने प्यार से कहा,” कोई बात नहीं, मेहनत से काम करो, बोनस अच्छा मिलेगा तो हम नया प्लाज़मा टी वी खरीदेंगे।“

आफिस की घंटी बजते ही हमने सीधा मंदिर में हाजिरी लगा दी। पूरा मंदिर सून-सान, पंडित जी भी गायब थे, पता चला धंधा मंदा हो जाने के कारण पंडित जी ने इंडिया वापस जाकर कानपुर में पान मसाला बनाने की फ़ैक्ट्री लगा ली है।

मंदिर के प्रांगण में घुसते ही आवाज़ आई,” आओ अनुराग, कैसे आना हुआ?”

हमने खोपड़ी घुमा कर इधर उधर देखा, कोई नज़र नहीं आया, फिर से आवाज़ आयी,” घबराओ नहीं मैं हूं, भगवान!”

हमने लपक कर मूर्ति के पीछे झांक कर देखा कि ‘शोले’ इश्टाइल में कहीं कोई हमें बेवकूफ़ तो नहीं बना रहा है – वहां भी कोई नहीं था। हम तो स्तब्ध से वहीं खड़े रह गये। फिर आकाशवाणी हुयी,”क्यों विश्वास नहीं हो रहा है क्या!”

“पूरा विश्वास हो रहा है प्रभू, यदि मुन्ना भाई को गाँधी जी दिख सकते हैं, तो मुझ पापी को भी आप की वाणी सुनायी दे सकती है!” कहते हुये हम आष्टांग आसन लगा कर लेट गये।

“कैसे आना हुआ वत्स?”

“प्रभु! क्षमा याचना हेतु आया हूं। आपका एस एम एस और ई-पत्र आगे ना सरका कर आपकी आज्ञा की अवहेलना करी है प्रभु। बडी भूल हुयी इस अज्ञानी से, क्षमा प्रभु, क्षमा।“

“मैं ने तुम्हें कोई संदेश या पत्र नहीं भेजा वत्स!”

“आपके संदेशवाहकों ने भेजा होगा, on your behalf”

“अच्छा वो, जिसमें तुमको भिक्षुक बनने की और दुर्भाग्य प्राप्त होने की चेतावनी दी गयी थी!”

“जी प्रभु, वही वाले……”

प्रभु हंसे,” वत्स, मैं ईश्वर हूं। यह सृष्टि मेरी बनायी हुयी है। यह मेरी रचना है। इसके हर कण में मेरा वास है। मेरा मार्ग प्रेम का मार्ग है – भय, दु:ख या पीड़ा का नहीं। मुझे अपने अस्तित्व का खतरा नहीं है, क्योंकि जब तक आशा, प्रेम, दया, त्याग और ईमानदारी के भाव एक भी cयक्ति के हृदय में बाकी हैं – मेरा अस्तित्व सुरक्षित है।“

“तो प्रभु वह संदेश, क्या वह आपके संदेशवाहक ने नहीं भेजा था?”

“नहीं, वत्स! मेरा सच्चा संदेशवाहक केवल प्रेम का संदेश फैलाता है – भय का नहीं। भय का संदेश फैलाने वालों से थोड़ा सजग रहो, ये मेरे नहीं अपने अंदर बैठे हुये दानव का संदेश फैला रहे हैं ताकि तुम पथ भ्रष्ट हो कर प्रेम का और ईश्वर का शाश्वत मार्ग छोड़ दानव के पीछे भागते रहो। आम तौर पर यह दानव अपने मुख पर मेरा मुखौटा लगाये रहते हैं। मेरी ओट में खड़े होकर दानव वृत्ति का प्रचार करते हैं। इनसे बचो – प्रेम के मार्ग पर चलो।

“थैंक यू, प्रभु!” मैं कह कर मंदिर से निकल रहा था कि अचानक याद आया, ”प्रभु, मेरा लैपटाप तो ठीक हो जायेगा ना?”

“इस विषय में मेरा ज्ञान बहुत सीमित है, बेहतर होगा नया ही ले लो।“

परसों हमने नया पीसी खरीद ही डाला और रात भर जाग कर यह चिठ्ठा भी लिखा। हार्ड डिस्क क्रैश हो जाने से काफ़ी जानकारी से हाथ भी धोना पड़ा। मगर खुशी यह है कि भगवान जी ने मेरे मन से टेंशन वैसे ही दूर कर दिया जैसे पाकिस्तान से प्रजातंत्र दूर हो गया है।

चलते – चलते:

यह चिठ्ठा भगवान जी का प्रेम संदेश है :
पढ़ने के बाद इस पर टिप्प्णी करें तथा इसकी कड़ी कम से कम पांच लोगों को प्रेक्षित करें। अन्यथा:

क) यदि आप चिठ्ठाकार हैं तो;

1) आपके चिठ्ठे पर कोई टिप्पणी नहीं करेगा
2) आपकी टी आर पी नेताओं के चरित्र की तरह गिर जाएगी
3) आपका चिठ्ठा ‘चिठ्ठाचर्चा’ और ‘नारद’ से सदा नदारद रहेगा

ख) यदि आप चिठ्ठाकार नहीं हैं तो;

1) आप इंटरनेट पर किस प्रकार की साइट्स पर विचरण करते हैं इसका कच्चा चिठ्ठा आपकी बीबीजी को मिल जायेगा
2) बीबीजी को पता चल जाएगा कि आपकी कमीज़ पर जो लाल रंग का दाग है वह दरअसल टोमाटो साँस का नहीं वरन् किसी और चीज़ का है
3) घर तक यह बात पंहुच जाएगी कि आफिस के बाद किस ‘स्पेशल क्लाइंट’ के साथ आपकी मीटिंग्ज़ चलती रहती हैं।

हरि इच्छा!

7 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

bahut samyik hai .....bhasha bahut saras hai ......aakhri padya bahut bhavuk karta hai

bhuvnesh sharma ने कहा…

अनुरागजी आपने बहुत सही मुद्‍दे की ओर ध्यान आकर्षित किया है।
मुझे भी ऐसे मेल मिलते रहते हैं
पर हर बार डिलीट मारने के बाद भी मैं अनलकी नहीं हुआ

संजय बेंगाणी ने कहा…

मत समझना की लेख पसन्द आया. अपशगुन के डर से टिप्पणी की हैं.

obelix ने कहा…

मेरी टिप्पणी डियुटी पूरी. मजाक मजाक में चलो तारीफ कर ली मान लेना. मजाक मजाक में भक्तों की बढिया चुटकी ले ली.

rajeshgupta ने कहा…

atyant anand ki prapti hui..Achha Vishey Chuna hai..

बेनामी ने कहा…

हमने धमकी के डर से टिप्पणी नही की है क्योंकि आप की धमकी हमारा कुछ नही बिगाड सकती ।
हम अब तक खुश (कंवारे है) :)

ePandit ने कहा…

हम भी टिप्पणी नहीं कर रहे हैं जी। ऐसे मेल हमें भी मिलते रहते हैं, हम फिर प्रेमपूर्वक 'डिलीट' बटन दबा देते हैं।