सोमवार, दिसंबर 18, 2006

कब के बिछड़े

यह मनगढंत कथा तथा इसके मनगढंत पात्र पूर्णतयः मनगढंत हैं, किसी मनगढंत जीवित या मनगढंत मृत व्यक्ति या मनगढंत सत्य या मनगढंत असत्य घटना या मनगढंत कथा से मेल होना मात्र मनगढंत संयोग है.

घटना एक महीना पहले दिल्ली के एक पांच सितारा होटल के अल्पाहार गृह में घटी. भोजन करके निकलते हुये दो सज्जन आपस में भिड़ कर गिर गये.

"सॉरी, मैं आपको देख नहीं पाया." दोनों संभ्रांत व्यक्तियों के मुह से लगभग एक साथ निकला. संभल कर उठते हुये दोनों ने एक दूसरे को पहली बार देखा.

"अरे, तुम्हारे बायें गाल पर तो तिल है...."

"हां, बिलकुल तुम्हारी तरह!"

"कहां के रहने रहने वाले हो?"

"मैं तो "इ" फार इटली का रहने वाला हूं, और तुम?"

"मैं "इ" फार इंडिया का हूं."

दोनों ने एक दूसरे हो थोड़ी देर तक ध्यान से देखा मानो और भी समानतायें ढ़ूंढ़ने का प्रयास कर रहे हों.

"तुम्हारे पूर्वज कहां से हैं?"

"वैसे तो मम्मी ने बताया था कि सारी सभ्यता का विकास ईराक में हुआ था, उस हिसाब से तो पूर्वज ईराक से आये हुये लगते हैं."

"हां, सही कह रहे हो 'वयं रक्षामः' में भी यही लिखा है, मेरे पूर्वज भी ईराक से हैं."

"क्या तुम्हें लगता है कि यह समतायें मात्र संयोग है, या फिर ईश्वर कुछ संदेश देना चाहता है?"

"समझ में नहीं आ रहा है....! तुम्हारा नाम क्या है?"

"अरमानी, और तुम्हारा?"

"अडवानी....नामों में भी समानतायें.......क्या तुम्हें लगता है कि हम बिछड़े हुये...."

"हां भैया हां, आपने सौ प्रतिशत ठीक पहचाना, हम बिछड़े हुये भाई ही हैं...."

यह कहते हुये ईराकी पूर्वजों की संताने और सदियों से बिछड़े हुये दो भाइयों, 'इ' फार इटली के अरमानी और 'इ' फार इंडिया के अडवानी ने एक दूसरे को गले से लगा लिया, "मेरे भाई, इतने दिनों से कहां खोया हुआ था रे तू!! कितना दुबला हो गया है रे! क्या तुझे कभी अपने भाई की याद नहीं आयी?"

"भैया, आपकी भी तो मूंछे सफेद हो गयी हैं, अब जो मिले हैं तो कभी ना बिछड़ेगे."

अडवानी: तुम काम क्या करते हो?

अरमानी: मैं कपड़े बनाता हूं, डिज़ाइनर आउटफिट्स, और आप...?

अडवानी: ओह, तो तुम दर्ज़ी हो! मैं राजनीति करता हूं, प्रधानमंत्री पद का त्याग करता हूं, रथ यात्रा करता हूं, क्षमा मांगता हूं.....

अरमानी: अरे भैया, आप तो दीदी वाली लाइन में हैं....

अडवानी: दीदी?!?! क्या कह रहे हो छुटके क्या हमारी एक बहन भी है?

अरमानी: हां भैया, हमारी मुंह बोली बहन, मैका ‘इ’ फार इटली में है और ससुराल ‘इ’ फार इंडिया में. सोनिया नाम है उसका, देखो भैया कैसे दिल के तार जुड़ते जा रहे हैं और सदियों से बिछड़ा परिवार एक हो रहा है.....

अडवानी: हे राम! यह मुझसे क्या अनर्थ हो गया छुटकू. खून ने खून को नहीं पहचाना. अनजाने में मैं ने अपनी छोटी सी गुड़िया को कितने ज़ख्म दिये. लेकिन वह औरत नहीं – देवी है छुटकू – देवी!! मैं भगवान को क्या मुंह दिखाऊंगा? प्रायश्चित करने से भी मुझे मेरे पापों से मुक्ति नहीं मिलेगी!

अरमानी: रोइये मत भैया, ईश्वर को कदाचित यह ही गवारा था, अब जब हम एक दूसरे हो पहचान गये हैं, तो फिर क्यों ना मिल रहें. मैं अभी दीदी को फोन करके यहां बुलाता हूं....तब तक आप मेरे इस डिज़ाइनर रुमाल से अपने आंसू पोंछ लीजिये, इन मोतियों को यूं ही ना ज़ाया करिये (कहीं मगरमच्छ लज्जित ना हो जाये!).

अडवानी: जल्दी से मेरी मुनिया (सोनिया) को फोन करके बुलाओ.

अरमानी: (फोन पर बात करते हुये) दीदी, मेरी प्यारी दीदी, मेरी मां समान दीदी...

सोनिया: ज्यादा लम्बा संबोधन मत कर, पढ़ने वाले बोर हो जायेंगे, बोलो क्या बात है?

अरमानी: दीदी हमें सदियों से बिछड़े अपने भैया मिल गये हैं, मैं ना कहता था कि यह देश (इंडिया) चमत्कारों का देश है, राम और कृष्ण का देश है, यहां ईश्वर का वास है, यहां कुछ भी हो सकता है! अच्छा किया जो तुमने राखी के पावन त्योहार के बाद मुझे यहीं रोक लिया. अब जल्दी से आ जाओ, भैया तुमको गले लगाने के लिये बहुत बेताब हैं.

सोनिया: मैं अभी नहीं आ सकती, मेरी बहुत जरूरी बैठक चल रही है – मुस्लिम वर्ग को लुभाने की, उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने की और फिर मुन्नू को भी बताना है कि आज उसे कब, कहां और क्या बोलना है....

अरमानी: यह क्या कह रही हो दीदी, वक्त की आंधियों, पैसे की चकाचौंध और सत्ता के लोभ में तुम इतना बदल गयी हो, कि आज लहू की पुकार भी तुम्हें सुनाई नहीं दे रही है? अगर तुम्हारे दिल में मेरे लिये जरा भी प्रेम है, तुमने जो राखी इस भाई की कलाई पर बांधी थी उस राखी के उन कच्चे धागों पर थोड़ा भी नाज़ है तो मेरी बहन, अपने इस भाई की पुकार को सुन दौड़ती हुयी चली आओ....

सोनिया: मगर मैं अभी कैसे...

अरमानी: .....कोई अगर – मगर नहीं तुम्हें पिज़्ज़ा, पास्ता, मैकरोनी, रोम, वेनिस, वेस्पा की कसम अपने भाई की पुकार सुनो, अपने दिल की पुकार सुनो....क्या तुम्हारा दिल पत्थर का हो गया है, सच्ची खुशियों को पहचानो दीदी, आओ दीदी आओ...

सोनिया: तुमने मेरी आंखें खोल दीं भैया, मैं भटक गयी थी. मैं इस झूठी शान-ओ-शौकत, इस दौलत को लात मारती हूं. आज मुझे सच्चे प्यार और परिवार की कीमत का अंदाज़ा लगा है. मैं आयी, आयी, आयी, आयी.....

अरमानी: ... आ जा! (फोन काटते हैं, और अडवानी की ओर मुखातिब हो कर) दीदी आ रही हैं भैया, आज पूरा परिवार एक हो जायेगा फिर हमें कोई जुदा नहीं कर सकेगा...

अडवानी: इंशा अल्लाह, वाहे गुरू, जीसस...

अरमानी: जय श्री राम....

(सोनिया हड़बड़ाती हुयी प्रवेश करती हैं)

सोनिया: (अरमानी को डांटते हुये) यह क्या ‘जय श्री राम’ लगा रखा है – सांप्रदायिकता फैला रहे हो, देश का चैन-ओ-अमन खराब कर रहे हो...

अरमानी: दीदी मैं तो बस ईश्वर को याद कर रहा था...

सोनिया: मेरे भोले भाई, हिन्दू पूजित ईश्वरों की जय करना सांप्रदायिकता होती है, तुम किसी गैर-हिन्दू धर्म की जय करो.... और धर्म निरपेक्ष बनो!

अडवानी: मुझे आपके इस कथन पर आपत्ति है!

सोनिया: अडवानी जी, आप यहां क्या कर रहे हैं, और आप यह कैसी बहकी हुयी बातें कर रहे हैं - 'इंशा अल्लाह, वाहे गुरू, जीसस'?
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अडवानी: मैं अपने कथन को वापस लेता हूं और उसके लिये क्षमा याचना भी करता हूं. दरअसल मेरे कहने का मत्लब कुछ और था जिसे मीडिया ने तोड़ मरोड़ कर पेश किया है. इसमें विपक्षी दल और पड़ोसी मुल्क की सांठ-गांठ दिखायी देती है.
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सोनिया: लेकिन आप यहां कर क्या रहे हैं...?

अरमानी: दीदी, यही तो हैं हमारे बिछड़े हुये भाई.

सोनिया: नहीं! यह नहीं हो सकता. एक बार, सिर्फ एक बार, भगवान के लिये कह दो कि यह झूठ है!

अडवानी: यही सच है बहन, मैं ने आज तक तुमको बहुत पीड़ा दी, तुमको विदेशी कहा, तुमको ताने दिये – अपने इस बूढ़े भाई को और शर्मिंदा मत कर – आ जा मेरी बहन....

सोनिया: नहीं भैया, गलतियॉ तो मुझ अभागिन से हुयी हैं. मैं ने आपको सांप्रदायिक कहा, आपकी रथ यात्राओं का मज़ाक बनाया. मेरी इन हरकतों से सदियों तक यह समाज मुझे माफ नहीं करेगा, मैंने भाई बहन के पवित्र रिश्ते को नहीं पहचाना... मुझे अपने पैरों पर गिर कर अपने पापों का प्रायश्चित करने दीजिये....

अडवानी: नहीं मुनिया, बहन भाई के पैर नहीं छूती है. चल मेरी बहन इस बेरहम ज़माने से दूर हम अपने घर चलते हैं, जहां अपनापन है, जहां हमारी जड़े हैं....यहां से बहुत दूर...

अरमानी: हम कहां जा रहे हैं भैया? दीदी? 'इ' फार इंडिया या 'इ' फार इटली?

सोनिया & अडवानी: अब हम किसी छोटे 'इ' नहीं जा रहे हैं. हम बड़े 'ई' फार ईराक जा रहे हैं – आखिर वहीं से तो जुड़े हैं हम....

अरमानी: भैया, दीदी, मैं सफर के लिये कुछ ऊंट, खजूर और पानी ले कर आता हूं...
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सोनिया & अडवानी: छुटकू कुछ एक बुलेट प्रूफ जैकेट भी लेते आना... आ अब लौट चलें, नैन बिछाये बाहें पसारे तुझको पुकारे देश तेरा...

अरमानी: आ जा रेएए..आ जा रे ....

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दूर एक बहुमंजिला इमारत पर खड़े हो कर मायावती और मुलायम अपनी दूरबीन से यह दृश्य देख रहे हैं और अपने खुफिया यंत्रों से उनकी बातें भी सुन रहे थे.

मायावती: माननीय मुलायम सिंह जी, बधाई हो आपकी सूझ बूझ का जवाब नहीं, कैसे दोनों को चुनाव से क्या पूरी राजनीति से ही हटा दिया...हें...हें...हें...

मुलायम: बहन मायावती, इसमें आपका भी बहुत सहयोग रहा है....हें...हें...हें...इसी खुशी में एक कुल्हड़ लस्सी पीजिये.

मायावती: लस्सी क्यों, कोका कोला क्यों नहीं...?

मुलायम: जी वो ऐसा है कि कोका कोला पूंजीवाद का प्रतीक है और लस्सी समाजवाद का....

मायावती: ओह अब समझी! वैसे आपने मुझे ‘बहन मायावती’ कह कर संबोधित किया है, इसलिये मैं आपको राखी बांधना चाहती हूं...

मुलायम: (हड़बड़ा कर पीछे होते हुये) अरे ऐसा अनर्थ मत करिये, मैं अपने शब्द वापस लेता हूं....

मायावती: मतलब क्या है आपका....?

मुलायम: ऐसा वैसा कोई मतलब नहीं है, बस याद आ गया कि आपने लाल जी टंडन को राखी बांधी थी तो उनका क्या हाल हुआ था...आपकी राखी आपको ही मुबारक..

मायावती: अरे जा, बड़ा आया सायकिल पर चलने वाले, मैं तो हाथी की सवारी का प्रस्ताव दे रही थी....

मुलायम: हुंह, तुम्हारे हाथी के चक्कर में सायकिल से भी जाऊंगा....

मायावती: ठीक है – ठीक है, चुनाव में देख मैं कैसे अपने हाथी से तेरी सायकिल रौंदती हूं .... अब भाग यहां से नहीं तो ऐसी ऐसी गालियां दूंगी कि कान के सारे कीड़े मर कर बाहर गिरेंगे...शुरू करूं क्या?

मुलायम: चुनाव में देखते है....(अमर को ढ़ूंढ़ते हुये) अरे भाई अमर कहां हो, चलो यहां से चलें....’कमल’ और ‘हाथ’ तो हट गये लेकिन ‘हाथी’ हटाना मेरे अकेले के बस की बात नहीं है.....

अमर: आया नेता जी, बड़े भैया की नयी फिल्म रिलीज़ हो रही है ना, उनसे ही बात हो रही थी. (फोन पर) अच्छा भैया, जया भाभी को नमस्ते कहियेगा, मैं बाद में फोन करता हूं. (नेता जी से) चलिये नेताजी...अरे आप चिंता मत करिये, चुनाव में हम इस ‘हाथी’ को अपनी ‘सायकिल’ से कुचल देगे...
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मुलायम: इस बार आप सायकिल चलाइये, मैं बैठता हूं. आपको खींचते हुये तो मेरी कमर में दर्द हो गया.
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अमर: क्या नेता जी, आप तो पहलवान हैं.
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मुलायम: अरे भाई हमने तो जवानी में पहलवानी करी थी, आप तो इस उम्र में भी कसरत करते रहते हैं...हें...हें...हें...
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अमर: क्या नेता जी आप तो यूं ही मजाक करते रहते हैं, चलिये बैठिये. इतने दिनों से कह रहा हूं एक कार ले लीजिये...नेता जी मैं सोच रहा था कि क्यों ना हम अपना चुनाव चिह्न 'व्हेल' रख लें, हाथी से बड़ा भी होता है....
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मुलायम: अरे अब चुप भी करिये और यहां से निकलिये, वर्ना यह पकाऊ ब्लगोड़ा ऐसे ही लिख-लिख कर पाठकों को पकाता रहेगा...चलिये!
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अमर और मुलायम सायकिल पर और मायावती हाथी पर बैठ कर प्रस्थान करते हैं और उधर अरमानी, अडवानी और सोनिया का संयुक्त परिवार ऊंट पर बैठ कर ईराक के किये कूच करता है.

मंगलवार, दिसंबर 05, 2006

चौपट राजा

॥ आगंतुकों के लिये सूचना ॥

जिस प्रकार मंदिर में जूते-चप्पल पहन कर जाना वर्जित होता है, उसी प्रकार इस पोस्ट को पढने के लिये दिमाग का इस्तेमाल करना वर्जित है।

आगे पढने से पहले अपना दिमाग कृपया यहां => ( ) <= रख छोड़िये। टोकन लेना मत भूलियेगा, कहीं ऐसा ना हो कि वापस जाते समय आप किसी और ही का दिमाग साथ ले कर चलते बनें। :)
5 दिसम्बर 2006

हाल में हुये दंगों की जांच करवाने के लिये कैबिनेट मंत्री श्री चौपट राजा द्वारा गठित जांच समिति ने आज अपनी रिपोर्ट मंत्री जी को सौंप दी। श्री चौपट राजा ने आज एक संवाददाता सम्मेलन में इस रिपोर्ट का ख़ुलासा किया। मंत्री जी के साथ उनके निजी सचिव श्री बांगड़ू भी थे।

श्री चौपट राजा: नमस्कार! विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से आये तमाम सज्जन और सज्जनियों का हम स्वागत करता हूं। हमको यह बताते हुये बहुत खुसी हो रहा है कि हाल ही में हुये दंगो का जांच का काम पूरा हो गया है। जांच समिति ने अपना रिपोर्ट हमको दे दिया है। अब हमारे पास दंगे के कारण और उनसे जुड़े हुये पूरे तथ्य मौजूद हैं।

(प्रेस के प्रतिनिधि तालियां बजा कर स्वागत करते हैं)

प्रेस: मंत्री जी, बड़े आश्चर्य की बात है, आम तौर पर जांच समिति रिपोर्ट देने में इतना समय लगा देती हैं कि अभियुक्त को दण्ड देने का मौका ही नहीं मिलता है, वह ऐसे ही परलोक सिधार जाता है। इस बार यह रिपोर्ट प्रकाश गति से कैसे आ पहुंची?

श्री चौपट राजा: यह प्रकाश कौन है? हमारा उससे कौनो टाई अप नहीं है।

प्रेस: जी, हमारे पूछने का तात्पर्य था कि रिपोर्ट इतनी जल्दी कैसे आ गयी?

श्री चौपट राजा: अरे तो प्रस्नवा हिन्दी में पूछिये ना। देखिये, हमारी सरकार की नीति सदा से ही उदारीकरण की नीति रही है। लेकिन उदारीकरण में बह कर हम अपना देस का विचार धारा नहीं ना भूले हैं – ये आप जान लीजिये हां। हम वसुधैव कुटुंबुकम् में भरपूर विस्वास रखते हैं। उदारीकरण और वसुधैव कुटुंबुकम् के विचारों को देखते हुये इस बार जांच करने का काम हमने एक फारेन कम्पनी को दे दिया। और यह पूरी जांच पड़ताल इंगलैण्ड की एक कम्पनी ‘लाइसेन्स टु किक’ ने किया है।

प्रेस: आन्तरिक जांच का काम विदेशी कम्पनी को……?

श्री चौपट राजा: काहे? आपको कौनो प्राबलम है क्या? अरे रिपोर्टवा देखिये – कैसा बढिया ग्लासी पेपर पर छापे हैं, साथ में डेड बाडी वगैरह का फोटू देखिये कैसा दिल दहलाने वाला है, बर्निंग ट्रेन का फोटो भी बहुत अपीलिंग है। और जो इंगलिस वाला रिपोर्ट है ना – उसका इंगलिस पढिये इतना फस्ट किलास लिखे हैं कि हमका तो समझै में नहीं आ रहा है – क्वीन्स इंगलिस! बिलकुल परफेक्ट!! आप लोग भी डिक्सनरी विक्सनरी ले कर पढना।

प्रेस: मंत्री जी, पैकिंग अच्छी होने का यह मतलब तो नहीं कि अंदर का सामान भी अच्छा होगा।

श्री चौपट राजा: प्रेस के साथ यही मुसीबत है, आप लोग बहुत निरासावादी लोग हैं, अरे भाई कबहिं हमारा तारीफ़ भी किया करो – झटपट रिपोर्ट लाकर दिये हैं उसका तारीफ भी तो करो॰॰॰॰! इतना जल्दी तो मैगी नूडल भी नहीं बनता है। और सुनिये फारेन कम्पनी ने केवल इसी दंगे की जांच नहीं किया है, उन्होंने हमारे देस में अब तक हुये सारे दंगों का निसुल्क विस्लेसण भी किया है – बिलकुल फिरी।
उन्होंने बहुत बढिया और कनक्लूसिव रिपोर्ट दिया है। अब आप लोग सांत हो कर बैठिये और हमका रिपोर्ट बतलाने दीजिये॰॰॰

प्रेस: जी बताइये!

श्री चौपट राजा: देखिये, पूरा रिपोर्ट बतलाने का टाइम नहीं है, इसलिये हम सीधा ‘रूट काज़ एनालिसिस’, ‘कन्क्लूजन’ और ‘प्रिवेन्टिव ऐक्सन’ का निस्कर्स बतलावेंगे।

प्रेस: श्री गणेश करिये!

श्री चौपट राजा: रिपोर्ट के अनुसार कुछ साल पहले हमारे देस के एक पश्चिमी राज्य में कुछ अनैतिक तत्वों ने ट्रेन के एक डिब्बे में आग लगा दी थी। इस डिब्बे में कुछ यात्री लोग सफर कर रहे थे, कुछ तीर्थ यात्री, ऊ सब बेचारे यात्री जल कर मर गये, इसकी वजह से बाद में पूरे राज्य में भीसण दंगा फसाद हुआ। बहुत से लोग मरे, जले, बेघर हुये और पूरी दुनिया ने हमारा तमासा देखा। तो फिर अब ध्यान से देखिये – रूट काज़ क्या था?

प्रेस: मेरे विचार से तो उपयुक्त शिक्षा और मार्गदर्शन के अभाव में हमारा युवा वर्ग पथभ्रष्ट हो गया है, वह अनैतिकता के मार्ग पर चल पड़ा है, जिसकी वजह से यह दंगे-फसाद हो रहे॰॰॰॰॰

श्री चौपट राजा: अरे आप कइसन बतिया बतला रहे हैं? सतयुग में रह रहे हैं का? अनैतिक तत्व तो रहेंगे ही भाई! राम राज्य थोड़े ही ना है कि अनैतिक तत्व ना रहेंगे॰॰॰

प्रेस: तो॰॰॰॰

श्री चौपट राजा: मूल कारण अनैतिक तत्व नहीं हैं – मूल कारण है ‘रेलवेज़’!

प्रेस: हैं॰॰॰॰॰॰!?!?!? वह कैसे मान्यवर, आप यह कैसे कह सकते हैं?!?!?!

श्री चौपट राजा: क्यों चौंक गये ना! यह हम नहीं कह रहा हूं, यह तो ‘लाइसेंस टु किक’ की रिपोर्ट कह रही है भाई। हम हिन्दुतानी लोग ऐसा एनालिसिस कहां कर पाते, ये तो इंगलिश कम्पनी की महरबानी है कि इतना टू द पाइन्ट रिपोर्टवा दिया है।

प्रेस: मंत्री जी जरा विस्तार में बताइये और जरा जल्दी बताइये, मारे उत्सुकता के कहीं हमारा दम ना निकल जाये॰॰॰॰॰

श्री चौपट राजा: देखिये, अगर ट्रेन नहीं होता तो यात्री नहीं होते - यदि यात्री नहीं होते तो तीर्थ यात्री नहीं होते - अगर तीर्थ यात्री नहीं होते तो धार्मिक विसमतायें नहीं होती - विसमतायें नहीं होती तो घृणा नहीं होती - घृणा नहीं होती तो कौनो को पागल कुत्ता काटे है का, कि बिला वजह जाकर गाड़ी में आग लगा देता। तो सब का सुरुआत कैसे हुआ – ट्रेन से ही तो हुआ ना – तो रूट काज़ या मूल कारण का हुआ – ‘रेलवेज़’!

प्रेस: ज्ञानी चौपट राजा की जय! ‘लाइसेंस टु किक’ की जय!!

श्री चौपट राजा: सांती बनाये रखिये। सुनिये, आगे रिपोर्ट में लिक्खा है कि कुछ महीने पहले हमारे महानगर की लोकल ट्रेनों में सात आठ धमाके हुये थे।

प्रेस: जी॰॰जी॰॰हमें याद है।

श्री चौपट राजा: इन धमाकों का क्या मकसद था? अरे भैया सीधा मकसद था, हमारे देस की अर्थ cयवस्था को ‘डी-रेल’ करने का। तो सोचिये के हमारी अर्थ cयवस्था को सबसे बड़ा खतरा किससे है?

प्रेस: जी॰॰ चीन से ॰॰

श्री चौपट राजा: अरे आप कइसे पत्रकार बन गये भाई, इतना समझाने के बाद भी नहीं समझ पाते हैं, अब हमरी समझ में आया कि लोग पत्र पत्रिकाओं को छोड़ कर ब्लाग काहे पढने लगे हैं, आप जैसे लोग रहे तो सब मैगजीन-फैगजीन एक दिन बंद हो जावेगा। सबसे बड़ा खतरा है रेलवेज़ से, लोग जब चाहेंगे हमारी दौड़ती भागती अर्थ cयवस्था को ट्रेन में धमाके करके ‘डी-रेल’ कर देंगे॰॰॰॰रिपोर्ट में लिक्खा है भाई – इंगलिस रिपोर्ट!


प्रेस: मगर नेता जी, इस बार के दंगे तो किसी और ही कारण से शुरू हुये थे। इसमें ट्रेन का तो कोई॰॰॰॰॰

श्री चौपट राजा: ॰॰॰॰ लेना देना है। रिपोर्ट में लिखा है कि दंगे तो सिर्फ बहाना था, दरअसल लोग ट्रेन फूंकना चाहते थे और फिर देखिये अंतत: ट्रेन को फूंका भी गया॰॰॰तो देखिये हर दंगे में एक चीज़ कामन है और वह है ट्रेन। सारे फसादों की जड़ ट्रेन – कुछ दिन पहले एक पुल भी ट्रेन पर ढह गया – यह ईश्वर की ओर से दी गयी चेतावनी है एक इशारा है कि ट्रेन से वह भी नाखुश हैं॰॰॰॰

प्रेस: ज्ञानी चौपट राजा की जय! ‘लाइसेंस टु किक’ की जय!!

श्री चौपट राजा: सांती॰॰॰सांती, यह तो मूल कारण था, इसलिये हमारी सरकार ने यह फैसला किया है कि राष्ट्र हित में और भविष्य में दंगे बंद करने के लिये रेलवे को ही बंद कर दिया जाये, ना रहियै सुसुरा बांस ना बजिहै सुसुरी बांसुरी!

प्रेस: मगर नेता जी, हमारे पास रेलेवे का जो इतना बड़ा नेटवर्क है – इनफ़्रास्ट्रक्चर है उसका क्या होगा?

प्रेस: और रेल मंत्रालय का क्या होगा?

श्री चौपट राजा: इन सब विसयों पर हमने पार्टी के आला कामान से बात कर ली है॰॰॰

प्रेस: प्रधानमंत्री जी से बात क्यों नहीं करी?

श्री चौपट राजा: अब उनसे बात करके कौनो फायदा होने वाला है कि उअनसे बात करें, अरे वह भी तो वही करिहैं जो आला कमान की इच्छा होइहै।

रेलवे मंत्रालय का नाम बदल कर ‘ऐंगर मैनेजमेंट मिनिस्ट्री’ रखा जायेगा। यह मंत्रालय देस के क्रुद्ध लोगों को अपना गुस्सा ठंडा करने की मदद करेगी। इसी में हम अपना रेलवे का इनफ़्रास्ट्रक्चर भी इस्तेमाल करेंगे। कम गुस्सा है तो आप रेलवे के डिब्बे में जाकर बल्ब वगैरह फोड़ लीजिये, अधिक नारजगी है तो सीसा-कांच तोड लीजिये और अगर बहुत अधिक और सामुदायिक गुस्सा है तो पूरी की पूरी बोगी फूंक डालिये।

प्रेस: रेलवे के इम्प्लाइज़ का क्या होगा?

श्री चौपट राजा: उनको हम वैसे ही नौकरी पर रखेगे, दंगे फसाद बिना खून बहाये अधूरे रहते हैं, इसके लिये हम रेलवे के इंप्लाइज़ का इस्तेमाल करेंगे।

प्रेस: मंत्री जी वो बेचारे मर जायेंगे तो उनके बीबी-बच्चों का क्या होगा?

श्री चौपट राजा: यह कैसा फालतू टाइप का सवाल है, लगता है आपको रेलवे की परंपरा नहीं मालुम, पिता की मृत्यु के पश्चात पुत्र को उसकी संती नौकरी दे दिया जाता है॰॰॰

प्रेस: मतलब बाप तो मरा बेटा भी मरे॰॰॰

श्री चौपट राजा: देस के लिये इतना भी नहीं कर सकते॰॰॰॰?

प्रेस: और गरीब आदमी सफर कैसे करेगा?

श्री चौपट राजा: सब लोग हवाई जहाज से सफर करेंगे, ‘ढक्कन एयर’ एक-एक रुपये में टिकट बेंच रही है, इतना सस्ता तो रेलेवे भी नहीं बेंच पाती है। और रेलवे की तरह उनकी उड़ाने भी आठ-दस घंटा देर से आती हैं, हवाई जहाज में लड़की लोग चिल्ला-चिल्ला कर समोसा, चाय, बिस्कुट बेंचती हैं – एबरी बडी विल फील ऐट होम।

प्रेस: मंत्री जी, यह सब तो ठीक है लेकिन एक बात तो रिपोर्ट में लिखी ही नहीं गयी है॰॰॰॰

श्री चौपट राजा: ऊ का?

प्रेस: यह कि दंगे भड़काने, ट्रेने जलाने, खून बहाने वाले लोग आखिर हैं कौन?

श्री चौपट राजा: हमको तो इसमें विदेसी ताकत का हाथ॰॰॰॰

(श्री बांगड़ू अचानक हरकत में आते हैं और हड़बड़ा कर मंत्री जी के कान में फुसफुसाते हैं)

श्री बांगड़ू: (मंत्री जी के कान में) अरे मंत्री जी आप यह क्या अनाप शनाप बोल रहे हैं, कुछ सोच समझ कर बोलिये, ‘हाथ’ तो हमारा चिह्न है, हमारी ‘ताकत’ कौन है यह भी आप जानते हैं – ताकत का ‘विदेसी’ होना भी आप जानते हैं – कहीं ऐसा ना हो आला कमान भी ऐसा ही कुछ अर्थ निकाल बैठें। आज तो आप कैबिनेट मंत्री हैं कल से सड़क के किनारे बैठ कर लकड़ी के कैबिनेट बेंचते नजर आयेंगे॰॰॰॰॰’ज़ेड’ क्लास सेक्योरिटी कवर भी छिन जायेगा।

श्री चौपट राजा: (सकपका कर गला साफ़ करते हुये) तो हम कह रहे थे कि हमको तो इसमें विदेसी ताकत का हाथ नहीं लगता है, बलकी हमें तो इसमें कौनो का ही हाथ नहीं लगता है॰॰॰ हाथ का तो सवालै नहीं है।

प्रेस: तो फिर॰॰॰?

श्री चौपट राजा: रिपोर्ट में लिखा है कि इसमें पूंजीवादियों की चाल हो सकती है – ‘चाल’ कह रहा हूं ‘हाथ’ नहीं कह रहा हूं – जरा ध्यान से लिखियेगा। इसके लिये फिर से ‘लाइसेंस टु किक’ का मदद लिया जायेगा, रिपोर्ट आते ही आपको तुरंत बताएंगे।

प्रेस: पूंजीवादी॰॰॰॰? जरा विस्तार में बताइये!

श्री चौपट राजा: अभी हम कुछ नहीं बता सकते (मुंह में ही बड़बड़ाते है – बिला वजह कुछ मुंह से निकल गया तो सुसुरी लाल बत्ती की गाडी भी जइहै) रिपोर्ट आते ही फुल डीटेल बतलाऊंगा – अब चलता हूं।

मंत्री जी हड़बड़ा कर संवाददाता सम्मेलन से निकल लेते हैं।