गुरुवार, अगस्त 16, 2007

आओ पकाएँ - कुछ कर दिखाएँ - 2

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पिछली बार हमने सीखा था हरी मटर बनाना. आइये आज सीखते हैं 'शुगर फ्री', 'फ़ैट फ्री' और कॉलेस्ट्राल फ्री' हलवा बनाना.
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आवश्यक सामग्री:
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1. अपहृत बच्चा – 1
2. अपहृत बच्चे की दुखियारी माँ – 1
3. काली पहाड़ी के पीछे वाला जंगल – 1
4. कुछ चट्टानें, काँच के टुकड़े – स्वादानुसार
5. खिलौने वाली पिस्तौल – 1
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कहाँ से प्राप्त करें:
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अपहृत बच्चा और उसकी दुखियारी माँ प्राप्त करने के लिये आप उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ आ जाइये. लखनऊ नगर के विधान सभा मार्ग पर स्थित विधान सभा भवन पहुंच जाइये. विधान सभा भवन में बेरोक-टोक आने जाने वाली सफ़ेद अम्बेसडर कार (जिसमें कि नम्बर प्लेट के स्थान पर “विधायक” की तख़्ती झूलती है और सामने बड़े बड़े प्रेशर हार्न और ऊपर लाल बत्ती लगी रहती है) के अंदर बैठे खादी धारी महोदय से संपर्क करिये, वो आपको तुरंत ही एक अपहृत बच्चा दिलवा देंगे. आम तौर पर अपहृत बच्चे गोदाम में उपलब्ध रहते हैं (ऑफ़ द शेल्फ़) लेकिन किन्हीं कारणवश यदि बच्चा गोदाम में उपलब्ध नहीं है तो खादी धारी जी दो – एक घंटे में यह काम करवा देंगे.
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शहर के किसी भी टीले या पहाड़ या किसी भी पर्वाताकार कूड़े के ढ़ेर को काली पहाड़ी का नाम और उसके पीछे के इलाके को जंगल का नाम दे कर आप काली पहाड़ी के पीछे वाला जंगल प्राप्त कर सकते हैं.
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चट्टानों के टुकड़े तथा काँच के टुकड़े प्राप्त करने के लिये उन स्थानों पर जाइये जहाँ विपक्षी दलों आयोजित ‘शांति पूर्ण’ मोर्चा या जुलूस अभी अभी समाप्त हुआ है. वहाँ आपको ख़ास क़िस्म के नुकीले पत्थर और सरकारी इमारतों व बसों की खिड़कियों के टूटे शीशे बहुतायत में प्राप्त होंगे.
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पटाखे की दुकान से खिलौने वाली पिस्तौल खरीदिये. साथ में चुटपुटिया की लड़ी भी ले लीजिये. इससे पिस्तौल चलाते समय ध्वनि प्रभाव बहुत अच्छा आयेगा, अन्यथा पिस्तौल चलाते समय आपको मुँह से ही ‘धाँय – धाँय’ की आवाज़ निकालनी पड़ेगी.
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बनाने की विधि:
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पहले अपहृत बच्चे को अपने कब्जे में ले लीजिये. एक दिन तक उसे मैरिनेट करिये, मतलब उसे हिमेश रेशमिया के गाने सुनाइये, करण कपूर की फ़िल्में दिखाइये इसका असर यह होगा कि बच्चा आपसे बहुत आतंकित हो उठेगा और मौका मिलते ही आपको देख कर ही भाग खड़ा होगा.
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अब बच्चे की दुखियारी माँ को फोन करिये. दुखियारी अबला नारी को बताइये कि उसका शहज़ादा आपके कब्ज़े में है जिसे वो रात के ठीक ग्यारह बजे काली पहाड़ी के पीछे वाले जंगल से ले जा सकती है.
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बच्चे की दुखियारी माँ को यह भी बता दीजिये कि वह अमुख अमुख स्थान पर ही खड़ी रहे और यदि वह बताये हुये स्थान से जरा सा भी हिलेगी तो उसके राज दुलारे को खिलौने वाली पिस्तौल से गोली मार कर ढ़ेर कर दिया जायेगा.
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निश्चित समय से कुछ पहले आप काली पहाड़ी के पीछे वाले जंगल में पहुंच जाइए और दुखियारी माँ के खड़े होने के निर्धारित स्थान तथा बच्चे के बीच में पत्थर और काँच के टुकड़े बिछा दीजिये.
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दुखियारी माँ के आते ही बच्चे को छोड़ दीजिये और चट्ट चट्ट दो बार पिस्तौल दाग कर चिल्लाइये “भाग”. बच्चा ऐसे ही हिमेश और करण से बाकायदा मैरिनेट हो चुका था आपकी चट्ट चट्ट और भाग सुनते ही अपनी माँ की तरफ़ बेतहाशा भागेगा.
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और उधर दुखियारी माँ अपनी बाहें फैलाए अपने राज दुलारे को गले से लगाने के लिये तड़पती हुयी चीखेगी,” भाग बचवा भाग ! कसि कै भाग !! आवा, आयके अपनी महितारी के करेजे से लगि जावा मोरे लाल !! भागि बचवा भागि...”
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अब आपको हलुवे के भुनने की सोंधी सोंधी खुश्बू आने लगेगी, लेकिन हलुवा अभी पूरी तरह भुना नहीं है.
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अचानक दुखियारी माँ को दिखेगा कि बच्चा भागते हुये काँच और नुकीले पत्थरों के पास पहुँच गया है. वो सोचती है ‘हे ईस्वर हमरे लाल के पैरन मा काँच चुभि जैहै.’ लेकिन वो हिम्मत नहीं हारती है. भारतीय माँ है, मदर इंडिया है, बच्चे से कहती है,” ऐ बचवा भागि मत. रुक! देख काँच है हुंआ. रुक, भागो नाहीं. सम्भाल के आवा. धीरे धीरे आवा, हाँ धीरे धीरे, हलू – हलू, धीरे आ, हलू आ, हलु आ, हलुवा..हलुवा...हलवा”
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तो लीजिये तैयार हो गया हलवा. शान से खाइये और मेहमानों को खिलाइये.
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बताइएगा अवश्य कि कैसा लगा.
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यह लेख आप तक पहुँचा "राष्ट्रीय पकाऊ अभियान" के सौजन्य से - चलो पकाएँ, कुछ कर दिखाएँ!
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अगली कड़ी में सीखेंगे राजमा बनाना.

4 टिप्‍पणियां:

Vishal Bachchan ने कहा…

badiya hai Dada ji.

अतुल श्रीवास्तव ने कहा…

प्रतापगढ़ और जौनपुर का असर अभी बाकी है.. मुझे अभी तक याद है प्रतापगढ़ में मिलने पर लोग ये बहुत कहते थे - "कहा राजू का हाल चाल हैं"

मस्त लिखा है. "टुंडे के कबाब" की विधि मिली या नहीं?

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत भयंकर पकाया-आप कामयाब रहे और आपके इस राष्ट्रिय अभियान की सफलता पर हार्दिक बधाई. साधुवाद.

-अब अगली कड़ी हलू हलू लाना-फटाफट में न झेल पायेंगे. :)

अभय तिवारी ने कहा…

अद्भुत..!!