सरफ़रोश
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हमारी तैयारियाँ जोर शोर से चलने लगीं. रज्जू भाई ने शहर के तमाम अखबारों को खबर कर दी कि पर्यावरण दिवस बड़े जोर शोर से मनाया जायेगा. अखबार वालों को वहाँ आने का निमंत्रण भी दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि रोज ही अखबार में हमारे सम्मेलन के बारे में खबरें छपने लगीं. रज्जू भाई के बारे में प्रेस ने अच्छी बातें लिखीं कि वि एक आधुनिक विचारों वाले प्रगतिशील नेता हैं जो राजनीति से ऊपर उठकर मानव हित तथा पर्यावरण की बातें करते हैं.
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जैसे जैसे बात फैलती गयी वैसे वैसे सम्मेलन में शामिल होने वालों की संख्या भी बढती गयी. यह देख कर बड़ी खुशी हुयी कि पर्यावरण सम्मेलन में भाग लेने के लिये लोग बढ़ चढ़ कर सामने आने लगे. लखनऊ के सबसे बड़े टेंट हाऊस ने मुफ्त में टेंट लगाने का प्रस्ताव दे दिया. कई बैंक, तेल कंपनियाँ, कपड़े की दुकान वाले हमारे सम्मेलन से जुड़ने के लिये आतुर हो गये.
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एक दिन टेंट वाले जगह का मुआयना करने पहुँचे, पूरे बाग में चक्कर लगा कर वहाँ खड़े हो गये जहाँ के पेड़ काट कर टेंट लगाने के लिये जगह बनायी गयी थी. फिर दंत खोदनी से दाँत खोदते हुये बोले,” जितने लोग आपने बुलाये हैं, उतने लोगों के लिये तो यह जगह छोटी पड़ेगी. बड़ा टेंट लगाना पड़ेगा और उसके लिये थोड़ी जगह और बनानी पड़ेगी.”
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रज्जू भाई ने और जगह बनाने के लिये तुरंत अपने पुराने मुस्तंडों को बुलवाया और 25 – 30 पेड़ और गिरा देने का हुक्म दे दिया.
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टेंट वाले ने एक बात और उठाई,” रज्जू भाई, हम आपको अपना बेस्टेस्ट टेंट दे रहे हैं. पूरा टेंट नायलॉन का बना हुआ है. बैठने के लिये सनील की गद्दी वाली लाल रंग की कुर्सियाँ भी लगायेंगे और ज़मीन पर इंपोर्टेड कालीन भी बिछयेंगे. लेकिन, इतनी गर्मी में अंदर बहुत तपन हो जायेगी.”
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रज्जू भाई बोले,” अब भैया गर्मी का तो कुछ भी नहीं कर सकते हैं. ये तो ऊपर वाले के हाथ में है.”
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टेंट वाला बोला,” कैसी बात करते हैं रज्जू भाई! ए. सी. किस मर्ज की दवा है भाई. कहिये तो पूरा टेंट वातानुकूलित कर दें. लेकिन ए. सी. टेंट फ्री में ना दे पायेंगे, उसके पैसे लगेंगे. मंत्री जी इतनी दूर से सम्मेलन में आ रहे हैं, ए.सी. में बैठेंगे तो उनका मन लगेगा वर्ना तो बेचारे परेशान हो जायेंगे और सोचिये आपकी भी क्या धाक जमेगी!”
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”अरे भैया ए.सी. क्या मोमबत्ती से चलाओगे? यहाँ कोई बिजली तो है नहीं और आस पास बिजली के तार भी नहीं खिंचे हैं कि कंटिया डाल कर इंतजाम कर लिया जाये.”
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”रज्जू भाई उसकी चिंता ना करिये, हमारा दोस्त है आरिफ़ वो जेनेरेटर किराये पर देता है. बड़े वाले तीन जेनेरेटर मंगवा लीजिये पूरे ए.सी. का लोड उठा लेंगे. आप बैंक वालों से और तेल कम्पनी वालों से कह कर स्पांसर करवा लीजिये.”
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रज्जू भाई तो ए.सी. और जेनेरेटर का सुझाव जंच गया. तुरंत हामी भर दी. हम लोगों ने आपत्ति जतायी कि डीज़ल जेंरेटर से तो ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलेगा और पर्यावरण को नुकसान पहुँचेगा. साथ में वातानुकूल संयंत्र में जिन गैसों का प्रयोग होता है, वह भी पर्यावरण को क्षति पहुँचाती हैं.
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रज्जू भाई दार्शनिक अंदाज़ में बोले,” देखिये भाई, इंजेक्शन लगने से पीड़ा होती है फिर भी हम अपने नन्हे मुन्ने बच्चों को इंजेक्शन लगवाते हैं और उन्हें पीड़ा देते हैं. तो क्या हमारा उद्देश्य उनको पीड़ा देना होता है? नहीं, कदापि नहीं ! ! एक छोटा सा दर्द दे कर हम उनको बड़ी पीड़ाओं से बचाते हैं. उसी तरह ये ए.सी., ये जेनेरेटर जो हैं ये इसलिये लगवा रहा हूँ ताकि मंत्री जी शांति से बैठ कर ठंडे दिमाग से अच्छे निर्णय ले सकें. देखो भाई अगर मलेरिया को भगाना है तो कुनैन की गोली तो खानी ही पड़ेगी ना ! परेशान ना हो.”
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रज्जू भाई के विचार सुन कर मन पुलकित हो उठा. कितना साफ सोचते हैं. कितनी ऊँची सोच है और केवल उपदेश ही नहीं देते स्वेच्छा से बलिदान भी देते हैं. मैदान के पेड़ कटवाने में चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं आयी. महान हैं रज्जू भाई. देश को आज ऐसे ही नेताओं की आवश्यकता है.
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अगले दिन जब हम वापस बाग पंहुचे तो देखा वहाँ लगे सारे पेड़ काटे जा रहे थे. हमने रज्जू भाई से पूछा कि भइ माजरा क्या है सारे पेड़ कटवाये दे रहे हो.
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रज्जू भाई ने बताया,” भई ऐसा है कि इस सम्मेलन में शिरकत करने वालों की संख्या काफ़ी बढ़ गयी है. इतने लोग आयेंगे तो कार पार्क के लिये जगह भी बनानी पड़ेगी. इसी के चलते सारे पेड़ कटवाने पड़े ताकि लोगों को अपनी गाड़ी पार्क करने में दिक्कत ना हो और वो खुश मन से सम्मेलन में भागीदारी कर सकें.” कुछ देर चुप रह कर रज्जू भाई आगे बोले,” और हमारे मंत्री जी ने एक इच्छा और जताई. वो चाहते हैं कि यह सम्मेलन महज़ राजनैतिक और बौद्धिक विचारकों तक ही सीमित ना रहे. मंत्री जी इस सम्मेलन में आम जनता को भी शामिल करना चाहते हैं.”
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”मंत्री जी भी आपकी तरह बहुत महान विचारधारा रखते हैं.”
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रज्जू भाई विनम्रता से मुस्कुरा कर बोले,” महान तो जनता होती है, हम तो महज़ सेवक हैं. जनता तो शामिल करने के लिये हमने सोचा है कि यहाँ मेला लगायेंगे. वो जो बायें तरफ की ज़मीन है वहाँ बच्चों के झूले लगेंगे, सामने की ज़मीन पर कोई 150 दुकाने लगाई जायेंगी जिसमें विविध प्रकार के व्यंजन और हस्त शिल्प का सामान मिलेगा. और हाँ, अब यह केवल दिवस ही नहीं पर्यावरण सप्ताह के रूप में मनाया जयेगा.”
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”वाह रज्जू भाई आप महान हैं.”
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”सब काम सहजता से हो इसके लिये मैं ने एक ‘इवेंट आर्गेनाइज़र’ नियुक्त कर लिया है. दुकानों से मिलने वाला किराया, कार पार्किंग से जमा धन इस बाग के विकास के लिये खर्चा किया जायेगा. इस बाग को आज से मैं ने जलियाँवाला बाग़ का नाम दिया!”
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हमने खुश हो कर कहा,” वाह रज्जू भाई वाह! बागों के शहर लखनऊ में चारबाग़, लालबाग़, ऐशबाग, आलमबाग़, डालीबाग़, केसरबाग़ और बंदरियाबाग़ के बाद एक और बाग़ – जलियाँवाला बाग़! आप शहर का उत्थान भी कर रहे हैं. लेकिन भैया जलियाँवाला बाग़ क्यों?”
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रज्जू भाई भावुक होकर बोले,” अपना जीवन तो परोपकार में समर्पित कर चुका हूँ मैं! लेकिन देखो विरोधी दल वाले मेरे पीछे पड़े हैं, शायद उनको यह डर है कि मेरी बढ़ती लोकप्रियता से वह अगला चुनाव हार जायेंगे, इसलिये मेरे इस महान जनोत्थानात्मक कार्य के विषय में तरह तरह की बातें फैला रहे हैं. कहते हैं कि रज्जू भाई अपने बाग से लकड़ियाँ कटवा कर बेंच रहा है, यहाँ मेला लगा कर कार पार्क के पैसे और दुकान के किराये से अपनी जेबें गरम कर रहा है. बड़ी पीड़ा होती भाई साहब!! अरे इस बाग में लगे पेड़ तो मेरे बच्चों जैसे थे और मैं ने उन्हें काटा नहीं है. मैं ने उन पेड़ों को पर्यावरण पर बलिदान किया है. ये पेड़ कटे नहीं हैं – ये पेड़ पर्यावरण के लिये शहीद हुये हैं. इन बेनाम पेड़ों का नाम इतिहास के पन्नों में जायेगा, ठीक उसी तरह जैसे जलियाँवाला बाग़ के बेनाम शहीदों का नाम इतिहास में गया. मैं ने पन्ना धाय की तरह खुद अपने हाथों से अपने बच्चों को, इन पेड़ों को कुल्हाड़ी की धार के नीचे लिटा दिया.”
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रज्जू भाई की गाथा सुन कर हृदय द्रवित हो उठा, आँखें छलक उठी. रज्जू भाई में मुझे एक नया गाँधी, एक नयी पन्ना धाय, एक नया कर्ण और एक नया युग पुरुष दिखायी देने लगा. जेब से रुमाल निकाल कर मैं ने अपनी डबडबाती आँखें पोछीं और रज्जू भैया के पैरों पर गिर कर हम फफक फफक कर रो पड़े. हाय रे ज़ालिम जमाने तू हमेशा महान लोगों को विष का प्याला या सूली क्यों देता है, कम से कम इस बार तो रज्जू भाई पर झूठे इल्जाम मत लगा!!
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हमारी तैयारियाँ जोर शोर से चलने लगीं. रज्जू भाई ने शहर के तमाम अखबारों को खबर कर दी कि पर्यावरण दिवस बड़े जोर शोर से मनाया जायेगा. अखबार वालों को वहाँ आने का निमंत्रण भी दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि रोज ही अखबार में हमारे सम्मेलन के बारे में खबरें छपने लगीं. रज्जू भाई के बारे में प्रेस ने अच्छी बातें लिखीं कि वि एक आधुनिक विचारों वाले प्रगतिशील नेता हैं जो राजनीति से ऊपर उठकर मानव हित तथा पर्यावरण की बातें करते हैं.
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जैसे जैसे बात फैलती गयी वैसे वैसे सम्मेलन में शामिल होने वालों की संख्या भी बढती गयी. यह देख कर बड़ी खुशी हुयी कि पर्यावरण सम्मेलन में भाग लेने के लिये लोग बढ़ चढ़ कर सामने आने लगे. लखनऊ के सबसे बड़े टेंट हाऊस ने मुफ्त में टेंट लगाने का प्रस्ताव दे दिया. कई बैंक, तेल कंपनियाँ, कपड़े की दुकान वाले हमारे सम्मेलन से जुड़ने के लिये आतुर हो गये.
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एक दिन टेंट वाले जगह का मुआयना करने पहुँचे, पूरे बाग में चक्कर लगा कर वहाँ खड़े हो गये जहाँ के पेड़ काट कर टेंट लगाने के लिये जगह बनायी गयी थी. फिर दंत खोदनी से दाँत खोदते हुये बोले,” जितने लोग आपने बुलाये हैं, उतने लोगों के लिये तो यह जगह छोटी पड़ेगी. बड़ा टेंट लगाना पड़ेगा और उसके लिये थोड़ी जगह और बनानी पड़ेगी.”
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रज्जू भाई ने और जगह बनाने के लिये तुरंत अपने पुराने मुस्तंडों को बुलवाया और 25 – 30 पेड़ और गिरा देने का हुक्म दे दिया.
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टेंट वाले ने एक बात और उठाई,” रज्जू भाई, हम आपको अपना बेस्टेस्ट टेंट दे रहे हैं. पूरा टेंट नायलॉन का बना हुआ है. बैठने के लिये सनील की गद्दी वाली लाल रंग की कुर्सियाँ भी लगायेंगे और ज़मीन पर इंपोर्टेड कालीन भी बिछयेंगे. लेकिन, इतनी गर्मी में अंदर बहुत तपन हो जायेगी.”
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रज्जू भाई बोले,” अब भैया गर्मी का तो कुछ भी नहीं कर सकते हैं. ये तो ऊपर वाले के हाथ में है.”
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टेंट वाला बोला,” कैसी बात करते हैं रज्जू भाई! ए. सी. किस मर्ज की दवा है भाई. कहिये तो पूरा टेंट वातानुकूलित कर दें. लेकिन ए. सी. टेंट फ्री में ना दे पायेंगे, उसके पैसे लगेंगे. मंत्री जी इतनी दूर से सम्मेलन में आ रहे हैं, ए.सी. में बैठेंगे तो उनका मन लगेगा वर्ना तो बेचारे परेशान हो जायेंगे और सोचिये आपकी भी क्या धाक जमेगी!”
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”अरे भैया ए.सी. क्या मोमबत्ती से चलाओगे? यहाँ कोई बिजली तो है नहीं और आस पास बिजली के तार भी नहीं खिंचे हैं कि कंटिया डाल कर इंतजाम कर लिया जाये.”
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”रज्जू भाई उसकी चिंता ना करिये, हमारा दोस्त है आरिफ़ वो जेनेरेटर किराये पर देता है. बड़े वाले तीन जेनेरेटर मंगवा लीजिये पूरे ए.सी. का लोड उठा लेंगे. आप बैंक वालों से और तेल कम्पनी वालों से कह कर स्पांसर करवा लीजिये.”
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रज्जू भाई तो ए.सी. और जेनेरेटर का सुझाव जंच गया. तुरंत हामी भर दी. हम लोगों ने आपत्ति जतायी कि डीज़ल जेंरेटर से तो ध्वनि और वायु प्रदूषण फैलेगा और पर्यावरण को नुकसान पहुँचेगा. साथ में वातानुकूल संयंत्र में जिन गैसों का प्रयोग होता है, वह भी पर्यावरण को क्षति पहुँचाती हैं.
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रज्जू भाई दार्शनिक अंदाज़ में बोले,” देखिये भाई, इंजेक्शन लगने से पीड़ा होती है फिर भी हम अपने नन्हे मुन्ने बच्चों को इंजेक्शन लगवाते हैं और उन्हें पीड़ा देते हैं. तो क्या हमारा उद्देश्य उनको पीड़ा देना होता है? नहीं, कदापि नहीं ! ! एक छोटा सा दर्द दे कर हम उनको बड़ी पीड़ाओं से बचाते हैं. उसी तरह ये ए.सी., ये जेनेरेटर जो हैं ये इसलिये लगवा रहा हूँ ताकि मंत्री जी शांति से बैठ कर ठंडे दिमाग से अच्छे निर्णय ले सकें. देखो भाई अगर मलेरिया को भगाना है तो कुनैन की गोली तो खानी ही पड़ेगी ना ! परेशान ना हो.”
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रज्जू भाई के विचार सुन कर मन पुलकित हो उठा. कितना साफ सोचते हैं. कितनी ऊँची सोच है और केवल उपदेश ही नहीं देते स्वेच्छा से बलिदान भी देते हैं. मैदान के पेड़ कटवाने में चेहरे पर जरा भी शिकन नहीं आयी. महान हैं रज्जू भाई. देश को आज ऐसे ही नेताओं की आवश्यकता है.
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अगले दिन जब हम वापस बाग पंहुचे तो देखा वहाँ लगे सारे पेड़ काटे जा रहे थे. हमने रज्जू भाई से पूछा कि भइ माजरा क्या है सारे पेड़ कटवाये दे रहे हो.
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रज्जू भाई ने बताया,” भई ऐसा है कि इस सम्मेलन में शिरकत करने वालों की संख्या काफ़ी बढ़ गयी है. इतने लोग आयेंगे तो कार पार्क के लिये जगह भी बनानी पड़ेगी. इसी के चलते सारे पेड़ कटवाने पड़े ताकि लोगों को अपनी गाड़ी पार्क करने में दिक्कत ना हो और वो खुश मन से सम्मेलन में भागीदारी कर सकें.” कुछ देर चुप रह कर रज्जू भाई आगे बोले,” और हमारे मंत्री जी ने एक इच्छा और जताई. वो चाहते हैं कि यह सम्मेलन महज़ राजनैतिक और बौद्धिक विचारकों तक ही सीमित ना रहे. मंत्री जी इस सम्मेलन में आम जनता को भी शामिल करना चाहते हैं.”
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”मंत्री जी भी आपकी तरह बहुत महान विचारधारा रखते हैं.”
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रज्जू भाई विनम्रता से मुस्कुरा कर बोले,” महान तो जनता होती है, हम तो महज़ सेवक हैं. जनता तो शामिल करने के लिये हमने सोचा है कि यहाँ मेला लगायेंगे. वो जो बायें तरफ की ज़मीन है वहाँ बच्चों के झूले लगेंगे, सामने की ज़मीन पर कोई 150 दुकाने लगाई जायेंगी जिसमें विविध प्रकार के व्यंजन और हस्त शिल्प का सामान मिलेगा. और हाँ, अब यह केवल दिवस ही नहीं पर्यावरण सप्ताह के रूप में मनाया जयेगा.”
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”वाह रज्जू भाई आप महान हैं.”
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”सब काम सहजता से हो इसके लिये मैं ने एक ‘इवेंट आर्गेनाइज़र’ नियुक्त कर लिया है. दुकानों से मिलने वाला किराया, कार पार्किंग से जमा धन इस बाग के विकास के लिये खर्चा किया जायेगा. इस बाग को आज से मैं ने जलियाँवाला बाग़ का नाम दिया!”
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हमने खुश हो कर कहा,” वाह रज्जू भाई वाह! बागों के शहर लखनऊ में चारबाग़, लालबाग़, ऐशबाग, आलमबाग़, डालीबाग़, केसरबाग़ और बंदरियाबाग़ के बाद एक और बाग़ – जलियाँवाला बाग़! आप शहर का उत्थान भी कर रहे हैं. लेकिन भैया जलियाँवाला बाग़ क्यों?”
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रज्जू भाई भावुक होकर बोले,” अपना जीवन तो परोपकार में समर्पित कर चुका हूँ मैं! लेकिन देखो विरोधी दल वाले मेरे पीछे पड़े हैं, शायद उनको यह डर है कि मेरी बढ़ती लोकप्रियता से वह अगला चुनाव हार जायेंगे, इसलिये मेरे इस महान जनोत्थानात्मक कार्य के विषय में तरह तरह की बातें फैला रहे हैं. कहते हैं कि रज्जू भाई अपने बाग से लकड़ियाँ कटवा कर बेंच रहा है, यहाँ मेला लगा कर कार पार्क के पैसे और दुकान के किराये से अपनी जेबें गरम कर रहा है. बड़ी पीड़ा होती भाई साहब!! अरे इस बाग में लगे पेड़ तो मेरे बच्चों जैसे थे और मैं ने उन्हें काटा नहीं है. मैं ने उन पेड़ों को पर्यावरण पर बलिदान किया है. ये पेड़ कटे नहीं हैं – ये पेड़ पर्यावरण के लिये शहीद हुये हैं. इन बेनाम पेड़ों का नाम इतिहास के पन्नों में जायेगा, ठीक उसी तरह जैसे जलियाँवाला बाग़ के बेनाम शहीदों का नाम इतिहास में गया. मैं ने पन्ना धाय की तरह खुद अपने हाथों से अपने बच्चों को, इन पेड़ों को कुल्हाड़ी की धार के नीचे लिटा दिया.”
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रज्जू भाई की गाथा सुन कर हृदय द्रवित हो उठा, आँखें छलक उठी. रज्जू भाई में मुझे एक नया गाँधी, एक नयी पन्ना धाय, एक नया कर्ण और एक नया युग पुरुष दिखायी देने लगा. जेब से रुमाल निकाल कर मैं ने अपनी डबडबाती आँखें पोछीं और रज्जू भैया के पैरों पर गिर कर हम फफक फफक कर रो पड़े. हाय रे ज़ालिम जमाने तू हमेशा महान लोगों को विष का प्याला या सूली क्यों देता है, कम से कम इस बार तो रज्जू भाई पर झूठे इल्जाम मत लगा!!
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(क्रमशः)
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