सोमवार, अक्तूबर 08, 2007

हरी हरी वसुंधरा (प्रथम भाग)

धीरे से जाना बगियन में
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गत पर्यावरण दिवस के उपलक्ष में हमारे मोहल्ले की कमेटी ने यह सोचा कि मोहल्ले के सारे बच्चों को इकठ्ठा करके उनको पर्यावरण से जुड़े हुए मुद्दों के विषय में जागरूक किया जाये. कमेटी के सदस्यों में यह सहमति बनी कि तमाम बच्चों को उन तथ्यों के बारे में अवगत कराया जाये जो कि पर्यावरण को क्षति पहुँचाते हैं तथा वैश्विक ऊष्मीकरण को बढ़ावा देते हैं.
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तमाम मुद्दों में यह भी शामिल था कि हम बच्चों को वन संरक्षण, भूमि संरक्षण, प्रदूषण नियंत्रण के साथ साथ प्लास्टिक, मोटर कारों और कारखानों से निकलने के धुंए के कुप्रभाव के बारे में भी बतायेंगे.
.इस महान कार्य को अंजाम देने हेतु तुरंत ही चार लोगों की एक समिति का गठन किया गया और मेरे अद्वितीय, अतुलनीय और प्रभावशाली व्यक्तित्व के कारण इस महत्वपूर्ण समिति में मुझे भी चुना गया. मेरे साथ संजय, राजेश बाबू और मनीष को भी चुना गया.
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हम चारों ने यह तय किया कि पर्यावरण दिवस का कार्यक्रम मोहल्ले के पार्क में रखा जाये. नगर निगम की देख रेख में होने के कारण पार्क बड़ी जीर्णावस्था में था हमने सोचा कि इसी बहाने पार्क का जीर्णोद्धार भी हो जायेगा. हम पार्क का निरीक्षण करने चल दिये. अभी पार्क के पास पहुँचे भी नहीं थे कि पार्क से उठने वाली मारक दुर्गंध ने हमें अपनी जेब से रुमाल निकाल कर अपनी नाक ढकने पर मजबूर कर दिया.
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नाक और मुँह को रुमाल से ढक कर पार्क में घुसे ही थे कि वहाँ का दृश्य देख कर राजेश बाबू तो उल्टी करते हुये बोले,” अरे यार चलो यहाँ से!”. पार्क की चारदीवारी मूत्र से गीली और उससे लगी हुयी ज़मीन मल से ढकी हुयी थी. सड़ाइंध ऐसी कि अगर मुर्दा वहाँ लिटा दो तो वो भी नाक ढक कर ऐसे भागे कि शायद ओलंपिक में भारत को स्वर्ण पदक जितवा दे.
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बहुत बड़े पैमाने पर सफाई की ज़रूरत है!” मैं ने रुमाल के पीछे से कहा.
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कोई बात नहीं, मेरी नगर निगम में जान पहचान है, मैं सफाई करवा दूँगा.” मनीष ने आश्वासन दिया.
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राजेश बाबू बोले,”यार फायदा क्या होगा? आज सफाई करवाओगे कल पार्क फिर ढक जायेगा.”
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अब क्या करें !? फिर संजय बोले,” ऐसा करते हैं नदीम से कहते हैं कि पार्क पर नज़र रखे और लोगों को यहाँ पर गंदगी फैलाने से रोके.”
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नदीम भाई की पंचर जोड़ने की दुकान है जो पार्क से लगी हुयी सरकारी जमीन का अतिक्रमण करके उस पर मोमजामे की छत डाल कर बनायी गयी है. मोमजामे की छत के नीचे पार्क की दीवार से निकाले गये ईंटॉं को बिछा कर फर्श बनी है जिस पर उनका हरे रंग का डीजल से चलने वाला कंप्रेसर शान से बैठा है. कम्प्रेसर से लगी एक लोहे की बाल्टी रखी रहती है जिसमें ट्यूब डुबो कर नदीम भाई पंचर ढ़ूँढते हैं. बगल में एक लंबे डंडे पर नदीम भाई की दुकान का बोर्ड और मूल्य सूची लटके हुये हैंनदीम पंचर रिपेयरिंग कम्पनीरेटक़ार हवा भरवाई 5 रुपये, मोटर साइकिल 3 रुपये, स्कूटर 2 रुपये , नोट : स्टेपनी में हवा भरवाने पर 1 रुपया एक्स्ट्रा लगेगा...” आगे पंचर जोड़ने के रेट भी लिखे हैं. नदीम भाई हम मोहल्ले वालों का बहुत ख्याल रखते हैं और हमारी कार में केवल चार रुपये में हवा भरते हैंएक रुपया डिस्काउंट और हाँ स्टेपनी में मुफ़्त में ही हवा डाल देते हैं.
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संजय की बात हमें पसंद आयी और हम नदीम की दुकान की ओर बढ़ चले. दुकान से तो नदीम नदारत थे, नज़र घुमा कर देखा तो नदीम अपनी तहमत उठाये पार्क की दीवार से सट कर उकड़ू बुकड़ू बैठे दीवार की तराई करने में लगे हुये थे.
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लघु शंका समाप्त करके नदीम भाई उठे तो पाया कि हम चार लोग उनका इंतज़ार कर रहे हैं. नदीम भाई भागते हुये हामारे पास आये और रास्ते में अपने मुँह में भरी हुयी गुटखे की पीक को पार्क की दीवार पर थूका (इससे छीटें नहीं पड़ती हैं.) और लोहे की बाल्टी से एक चुल्लू पानी निकाल कर उसे दोनों हाथों में मलते हुये अपने हाथ भी साफ कर लिये. फिर तहमत में हाथ पोंछते हुये हमारे सामने खड़े होकर बत्तीसी निकालते हुये बोले,” अरे भैयाजी हमका बोलाए लिये होते, आप सब लोग काहे तकलीफ किये. का सेवा करेन आप लोगन की, चाय-वाय मंगवाई का?”
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राजेश बाबू बोले,” अरे यार इतनी बदबू में चाय कौन पियेगा? नदीम भाई तुम कैसे झेलते हो यह बदबू, वो भी दिन भर?”
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हाँ भैया जी बहुतै लोग कहिन के हिंया बहुत बास आवै है, पन भैया जी हमका तो कौनो बास नाहीं लागै है. सायद आदत पड़ि गयी होइहै.”
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संजय ने कहा,” नदीम भाई, हम पार्क की सफाई करवाने की सोच रहे हैं. अगले हफ्ते यहीं पर पर्यावरण दिवस मनाने का विचार हैं. चक्कर यह है कि सफाई करवाने के अगले ही दिन पार्क फिर गंदा हो जायेगा, इसी सिलसिले में तुम्हारी मदद चाहिये.”
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नदीम भाई फूल गये, झट से बोले,” अरे भैया जी, हमरे लायक कौनो काम हो तो बतावें, हमहुं मदद करिबै.”
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मैं ने कहा,” नदीम भाई, हम लोग नगर निगम से कह कर यहाँ की सफाई करवा देंगे, आप ये देखो कि कल से कोई यहाँ टट्टी पेशाब करके फिर से गंदगी ना फैलाए.”
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नदीम भाई थोड़ी देर सोचने के बाद बोले,” भैयाजी, टट्टी पेशाब कौनो गंदगी थोड़ो ना होती है. अरे भैया जी गाँव में तो सबै खेतवन मा जावै हैं. इससे तो जमीन उपजाऊ होये है. हम तो कहे हैं कि यह गंदगी नाहीं है साहिब ये तो सोना है सोना, हाँ.”
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राजेश बाबू गरज पड़े,” अबे हमें यहाँ कोई खेती थोड़ी करनी है कि जमीन को उपजाऊ बनाना है! जितनी तो फसल ना उगेगी उससे ज़्यादा तो लोग खाद डाल जाते हैं, हाँ नहीं तो! और हाँ अगर सोना है तो सबसे कहो कि कल से सोनार की दुकान पर जाकर बैठा करें, हर दस ग्राम के 10,000 रुपये भी मिलेंगे, सबकी गरीबी दूर हो जायेगी. अगर पेट चल पड़े तो समझो एक ही दिन में बंदा करोड़पति बन जाये, के.बी.सी. में जाने की कोई जरूरत ना रहेगी. सोना हैहाँ नहीं तो!”
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नदीम भाई को अपनी गलती का अहसास हो गया. बोले,” आप लोग तनिकौ चिंता नाहीं करो, समझो कि कल से पार्क में लोटे वालों का प्रवेस बंद, हम परि छोड़ दो.”
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मनीष ने नगर निगम में पैसे खिला कर उसी दिन पार्क की सफाई करवा दी. नदीम भाई ने लोटे वालों को पार्क से बाहर रखने का एक नायाब तरीका निकाला. कहीं से एक मरे हुए कुत्ते का जुगाड़ किया और रात अंधेरे उसे पार्क में फेंक दिया. अगले दिन सुबह पार्क के पास मुँह में नीम का दातून दबा कर गेट के पास बैठ गये. जो भी लोटा लेकर पार्क की ओर अग्रसर होता नदीम भाई मुँह से दातून निकाल कर बोलते,” अमाँ भाई अंदर मत जाओ. कल रात बड़ा गजब होइ गवा.”
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उत्सुक आगंतुक अपने आप पूछ बैठता,” का होइ गवा नदीम भाई?”
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नदीम भाई बोलते,” अरे अब का बतावें, कल हम हिंया एक नाग देखै, ससुरा बहुतै लम्बा रहिस सम्झो कि हियाँ से हुंआ तक, करीब 8 फुट लंबा अउर इत्ता मोटा कि समझो कि जित्ता हीरो होंडा का टायर होवे है. कारिया नाग! फन उठाये सुसुरा पूरे पार्क में सर्र सर्र घूमत रहा. हमार तो करेजा दहिल गवा.” इतना कह कर नदीम मियाँ मुँह में दातून घुसेड़ कर दो बार चबाते और हाथ में लोटा थामे हुये आगंतुक को गौर से देखते हुये उसके अंदर जागे हुये डर की थाह लेते और फिर मुँह से दातून निकाल कर बोलते,” वही समय मति का मारा एक ठो कुकुरवा पार्कवा में घुसि गवा, करिया नाग उसे लपेट कर डस लिहिस. तरप तरप कर कुकुरवा उहीं ढ़ेर होई गवा. देखौ उसका लास पड़ा है हुंआ पे.” लोटा धारी पार्क के अंदर पड़ी लाश को देखता और फिर मन ही मन भगवान को और नदीम भाई को धन्यवाद देता कि आपकी वजह से हम बच गये वर्ना कुत्ते की जगह हम ही पड़े होते. नदीम भाए फिर से मुँह में दातून डालते हुये बोलते,” हमरी मानो तो अब हियाँ टट्टी करना बंद करि दो.”
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नदीम भाई का वृतांत सुन कर लोटा धारी आगंतुक पार्क की ओर ऐसी मायूसी से देखता कि मानो उसका बसा बसाया संसार किसी निर्मम ने वैसे छीन लिया हो जैसे भू-माफिया हमारी और आपकी जमीने हड़प लिया करते हैं. मारे घबराहट के बेचारे का प्रेशर और बढ जाता और वह दयनीय दशा में नदीम भाई से ही पूछ लेता,” तौ का करैं नदीम भाई, बहुतै जोर की आई है...”
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नदीम भाई उसे राय देते,” पार्क के अंदर दिखिस रहा सुसुरा, तुम ऐसा करो के पार्क के बाहरै बैठि जाओ. ध्यान से बैठिहो, कहीं ऐसा ना होवे कि तुम मगन रहौ और सुसुरा आय के तुमका डसि ले.” नदीम भाई हो हो करके हँसते हुये सलाह देते.
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बहुत से लोटा धारीएनाकोण्डाकी यह पटकथा सुन कर नये पार्क की तलाश में भाग निकलते और जो कुछ सूरमा टाइप के थे या जिनको बहुत जोर से आयी होती थी वो दीवार के बाहर ही बैठ जातेबेचारे मारे डर के बार बार ऐसे इधर उधर मुंडी घुमाते कि अगर चार दिन वहाँ बैठ जायें तो गर्दन की ऐसी कसरत हो कि ताउम्र स्पांडिलाइटिस की कोई शिकायत ना हो





(क्रमशः)

10 टिप्‍पणियां:

rajeshgupta ने कहा…

maza aa raha hai.. intazaar hai agli kadi ka..

बेनामी ने कहा…

main aapko hasya lekhan ka adwitya
lekhak / vidwan samjhata hoon. lucknow ko aap par garv hai prabhu.

rajesh

Unknown ने कहा…

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बेनामी ने कहा…

kaha se ise ise ideas aate hai dimak me....bahut majedar hai...aage kya hone wala hai intejar hai

Udan Tashtari ने कहा…

ये क्रमशः आगे कब बढ़ेगा?

मयंक ने कहा…

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सतीश पंचम ने कहा…

रोचक पोस्ट है। आगे भी तो लिखिये .

Richa ने कहा…

Raag Darbari ke baad pehli baar kuch padhkar itna mazza aaya.

बेनामी ने कहा…

Great fforumm! Thanx guys!

Rahul ने कहा…

Apki dosti ne muje jeena sikhla diya,
Meri khamosh duniya ko hasna sikha diya,
Karzdaar hoon main khuda ka,
Jiss ne mujhe aap jaise dost se mila diya…