भूत राजा बाहर आजा
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तभी रज्जू भाई अपने प्यारे टॉमी को सुबह सवेरे टहलाने निकले. रज्जू भाई एक राजनीतिक दल के काफी सक्रिय सदस्य हैं. फिलहाल तो उनकी पार्टी हमारे प्रदेश में सत्ता में नहीं है. रज्जू भाई की बड़े बड़े नेताओं से खूब छनती है और उनके अथक प्रयासों और पहुँच का यह परिणाम रहा कि तीन वर्ष पहले हमारे मोहल्ले में भी एक हैण्ड पम्प लग गया. तब से मोहल्ले में उनकी धाक जम गये और लोग उन्हें ‘अबे रज्जू’ के स्थान पर ‘रज्जू भाई’ कह कर संबोधित करने लगे.
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जब रज्जू भाई पार्क में टॉमी को टहलाने पहुँचे तो नदीम किसी लोटा धारी को किस्सा – ए – साँप सुनाने में लगे थे. दूर खड़े होकर रज्जू भाई ने भी किस्सा सुना और किस्सा समाप्त होने पर नदीम को पास बुला कर नेता स्टाइल में पूछा,”क्या बक रहा था बे?”
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रज्जू भाई के सामने तो नदीम मियाँ की घिग्घी बँध गयी और हकलाते हुये उन्होंने राज़-ए-बयाँ कर दिया. दोपहर को जब कार्यवाही समिति के चारों सदस्य विचार विमर्श कर रहे थे तो रज्जू भाई भी शिरकत ले आये और पूछा,” क्या पिलान बना रहे हो भाई, कुछ हमको भी बताया जाये. शायद हम भे कोई काम आ सकें.”
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हमने रज्जू भाई को पर्यावरण दिवस का कार्यक्रम विस्तार में बताया. सुन कर रज्जू भाई आँखें बंद करके कुछ देर सोचते रहे और फिर बोले,” खाली बच्चों का कार्यक्रम क्यों रखा है?”
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”बच्चे देश का भविष्य हैं. हमें अभी से ही उनको अपने दायित्व के प्रति जागरूक करना है जिससे कि भविष्य में पर्यावरण स्वस्थ रहे.”
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”हुम्म! देखो भाई ये तो सही है कि बच्चे ही देश का भविष्य हैं. लेकिन इन बच्चों के बड़ा होने में अभी 8 – 10 वर्ष का समय है. पर्यावरण का मुद्दा इतना ज्वलंत है कि हम इसके लिये 8 – 10 वर्ष प्रतीक्षा नहीं कर सकते हैं. मेरे ख्याल से इस कार्यक्रम में ऐसे लोगों को बुलाया जाये जो नियम निर्धारण करते हैं, कानून बनाते हैं ताकि हम तुरंत ही पर्यावरण को बचाने के लिये सार्थक और सक्षम कदम उठा सकें.”
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रज्जू भाई की बात में दम था. हम सबने सहमति में मुंडी हिलाई और एक साथ ही पूछ बैठे,” तो किसको बुलाया जाये?”
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”देखो भाई, इस प्रदेश में तो हमारी सरकार है नहीं, तो मैं पड़ोस के राज्य से वहाँ के पर्यावरण मंत्री को आमंत्रित कर लेता हूँ, वहाँ हमारी सरकार है और मंत्री जी को मैं व्यक्तिगत स्तर पर जानता भी हूँ.”
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”अरे रज्जू भाई नेक काम में देरी कैसी! आप तुरंत उनको न्योता भेजिये और हमारे कार्यक्रम में चार चाँद लगवाइये.”
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रज्जू भाई बोले,”ठीक है मैं मंत्रीजी से बात करता हूं.”
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शाम को रज्जू भाई फिर मिले और समाचार सुनाया कि मंत्री जी ने हमारे शहर और हमारे कार्यक्रम में आने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है. हम बड़े खुश हुये. रज्जू भाई ने कहा,” लेकिन एक बात है भाई....!”
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.”क्या बात है रज्जू भाई?”
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”मंत्रीजी का कहना है कि क्योंकि कार्यक्रम पर्यावरण से जुड़ा हुआ है इसलिये इसे शहर के प्रदूषित वातावरण से दूर प्रकृति की गोद में रखना चाहिये. इससे लाभ यह होगा कि लोग साफ वातावरण में साँस ले कर, साफ वातावरण की महत्ता को समझ सकेंगे.”
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”लेकिन रज्जू भाई ये तो हमारे मोहल्ले का कार्यक्रम है, इसे हम मोहल्ले से बाहर कैसे रख सकते हैं?”
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रज्जू भाई बहुत नाराज़ हो गये और हाथ उठा कर भाषण शैली में शुरू हो गये,” कितने दुःख का विषय है कि हम आज भी अपने मोहल्ले, अपनी जाति, अपने धर्म, अपने रंग, रीति जैसे छोटे छोटे मुद्दों में उलझे हुये हैं. निराशा होती है देख कर कि हमने छोटी और काली सोच का चश्मा यूँ आँखों पर चढ़ा लिया है कि उसके परे खड़े हुये वो तमाम मुद्दे हमें नहीं दिखाई देते हैं जो सम्पूर्ण विश्व और सम्पूर्ण मानवता को प्रभावित करते हैं. क्या पर्यावरण किसी एक मोहल्ले, नगर, राज्य, देश या जाति का मुद्दा है? क्या पर्यावरण किसी व्यक्ति विशेष की विरासत है? नहीं! यह पूरी मानव जाति की विरासत है. यह पूरी मानव जाति का मुद्दा है. आओ, अपने सीमित दायरों से बाहर निकलो. समय की पुकार को सुनो और एकजुट हो कर इसे बचाओ!!”
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रज्जू भाई की बात सुन कर हमें बड़ी आत्मग्लानि हुयी. राजेश बाबू तैश में आकर चिल्ला उठे,”रज्जू भाई....” हमने मुठ्ठी भींच कर हाथ उठाते हुये चिल्लाया, ”जिन्दाबाद!!”
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हमने हाथ थाम कर कसम खायी कि मानवता के हित हेतु हम मोहल्ले के सीमित दायरे से बाहर निकलेंगे और पर्यावरण दिवस मंत्री जी की इच्छानुसार माता वसुंधरा की गोद में, प्रकृति के निकट मनायेंगे.
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रज्जू भाई ने कहा,” चिनहट के निकट हमारे बाग हैं, पर्यावरण दिवस सम्मेलन हम वहीं रखेंगे. चलो तुम लोगों को जगह दिखा लाता हूँ.”
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हम लोगों ने दो स्कूटर निकाले और पाँचों लोग उस पर लद कर चल दिये और आधे घंटे में रज्जू भाई के बाग में पंहुच गये. रज्जू भाई का बाग फैज़ाबाद रोड से लगा हुआ था और रज्जू भाई की पहुँच का परिणाम था कि पक्की सड़क उनकी ज़मीन को जाती थी. पूरी ज़मीन पेड़ों से भरी हुई थी. रज्जू भाई ने बड़े गर्व से अपना पाँच एकड़ का बाग हमें दिखाया और पूछे,” कैसी जगह है सम्मेलन के लिये?”
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”अरे बहुत बढ़िया है!!”
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”हुम्म, ऐसा करेंगे कि बीच के ये 15 – 20 पेड़ कटवा देंगे ताकि टेंट लगाने के लिये खुली जगह मिल जाये.” रज्जू भाई ने कहा.
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”अरे लेकिन पेड़ क्यों कटवा रहे हैं, पर्यावरण दिवस पर ही पेड़ काटना....” रज्जू भाई मेरी बात बीच में ही काटते हुये बोले,” अरे भाई फंकसन करवाने के लिये इतना तो करना ही पड़ेगा ना, और फिर इस सम्मेलन में ऐसे फैसले लिये जा सकते हैं जिससे कि आगे चल कर हम बहुत से पेड़ कटने से बचा सकेंगे. और फिर पेड़ों का क्या है, फिर से उग आयेंगे.”
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रज्जू भाई ने पास के गाँव से चार मुस्तंडे बुलवाये और बीच के 15 – 20 पेड़ कटवा कर किनारे लगवा देने का हुक्म दे दिया.
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अगले दिन हमने नदीम भाई से जाकर कह दिया कि भाई अब सम्मेलन स्थली बदल गयी है अतैव अब लोगों को पार्क का सदुपयोग करने की आज्ञा है. दूसरे दिन नदीम भाई ने दीवार के पास बैठते हुये लोटा धारियों को बताया,” अब कौनो डरि नाहीं है, अंदर जायके टट्टी करि लो.”
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.”का कहत हो नदीम, ऊ सुसुरा संपवा मरि गवा का ?”
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”अरे ऊ संपवा एक ठो जिन्न रहा.” नदीम भाई ने छोड़ा.
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.”जिन्न......? ! ? !”
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”अउर नहीं तो का! कलि रात हिंयाँ एक ठो फकीर आये. हम उनका चेता नहीं पाये तो ऊ पर्कवा में चलै गयेन. तबहीं ऊ करिया साँप निकलिस और फरीर बाबा पर झपटा. फकीर उसको पहिचान गये कि इत्ता मोटा ताजा साँप होइयै नहीं सकत – जरूर जिन्न होइहै. बस्स बाबा पोटलिया में से दो चुटकी लोहबान निकलेन और साँप पर छिड़क दिहिन. लोहबान पड़ते ही सुसुरा मोटा ताजा साँप सिकुड़ के केचुआ बनि गवा. और आदमियन की आवाज में लगा गिड़गिड़ाये ‘हमका छोडि दो – हमका छोडि दो’ बाबा ने उसे उठाया और पोटली में बाँध करि ले गये. तो भैया अब ई पारक सेफ है, जाओ आराम से करो.”
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लोटा धारी बहुत खुश हुये. एक ने तो कहा,” फकीर बाबा की उम्र दराज़ हो जो उन्होंने हमें हमारा पार्क दिला दिया. दो दिनों से हाई वे के किनारे जाना पड़ रहा था, नयी जगह थी ना, तो पेट भी ठीक से साफ नहीं होता था. आज तो खुल कर करेंगे.” कह कर लोटा धारी मारे खुशी के लोटा लेकर दीवार के ऊपर से यह गाना गाये हुये पार्क में कूद गया – दुःख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे...
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जब रज्जू भाई पार्क में टॉमी को टहलाने पहुँचे तो नदीम किसी लोटा धारी को किस्सा – ए – साँप सुनाने में लगे थे. दूर खड़े होकर रज्जू भाई ने भी किस्सा सुना और किस्सा समाप्त होने पर नदीम को पास बुला कर नेता स्टाइल में पूछा,”क्या बक रहा था बे?”
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रज्जू भाई के सामने तो नदीम मियाँ की घिग्घी बँध गयी और हकलाते हुये उन्होंने राज़-ए-बयाँ कर दिया. दोपहर को जब कार्यवाही समिति के चारों सदस्य विचार विमर्श कर रहे थे तो रज्जू भाई भी शिरकत ले आये और पूछा,” क्या पिलान बना रहे हो भाई, कुछ हमको भी बताया जाये. शायद हम भे कोई काम आ सकें.”
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हमने रज्जू भाई को पर्यावरण दिवस का कार्यक्रम विस्तार में बताया. सुन कर रज्जू भाई आँखें बंद करके कुछ देर सोचते रहे और फिर बोले,” खाली बच्चों का कार्यक्रम क्यों रखा है?”
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”बच्चे देश का भविष्य हैं. हमें अभी से ही उनको अपने दायित्व के प्रति जागरूक करना है जिससे कि भविष्य में पर्यावरण स्वस्थ रहे.”
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”हुम्म! देखो भाई ये तो सही है कि बच्चे ही देश का भविष्य हैं. लेकिन इन बच्चों के बड़ा होने में अभी 8 – 10 वर्ष का समय है. पर्यावरण का मुद्दा इतना ज्वलंत है कि हम इसके लिये 8 – 10 वर्ष प्रतीक्षा नहीं कर सकते हैं. मेरे ख्याल से इस कार्यक्रम में ऐसे लोगों को बुलाया जाये जो नियम निर्धारण करते हैं, कानून बनाते हैं ताकि हम तुरंत ही पर्यावरण को बचाने के लिये सार्थक और सक्षम कदम उठा सकें.”
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रज्जू भाई की बात में दम था. हम सबने सहमति में मुंडी हिलाई और एक साथ ही पूछ बैठे,” तो किसको बुलाया जाये?”
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”देखो भाई, इस प्रदेश में तो हमारी सरकार है नहीं, तो मैं पड़ोस के राज्य से वहाँ के पर्यावरण मंत्री को आमंत्रित कर लेता हूँ, वहाँ हमारी सरकार है और मंत्री जी को मैं व्यक्तिगत स्तर पर जानता भी हूँ.”
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”अरे रज्जू भाई नेक काम में देरी कैसी! आप तुरंत उनको न्योता भेजिये और हमारे कार्यक्रम में चार चाँद लगवाइये.”
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रज्जू भाई बोले,”ठीक है मैं मंत्रीजी से बात करता हूं.”
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शाम को रज्जू भाई फिर मिले और समाचार सुनाया कि मंत्री जी ने हमारे शहर और हमारे कार्यक्रम में आने का निमंत्रण स्वीकार कर लिया है. हम बड़े खुश हुये. रज्जू भाई ने कहा,” लेकिन एक बात है भाई....!”
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.”क्या बात है रज्जू भाई?”
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”मंत्रीजी का कहना है कि क्योंकि कार्यक्रम पर्यावरण से जुड़ा हुआ है इसलिये इसे शहर के प्रदूषित वातावरण से दूर प्रकृति की गोद में रखना चाहिये. इससे लाभ यह होगा कि लोग साफ वातावरण में साँस ले कर, साफ वातावरण की महत्ता को समझ सकेंगे.”
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”लेकिन रज्जू भाई ये तो हमारे मोहल्ले का कार्यक्रम है, इसे हम मोहल्ले से बाहर कैसे रख सकते हैं?”
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रज्जू भाई बहुत नाराज़ हो गये और हाथ उठा कर भाषण शैली में शुरू हो गये,” कितने दुःख का विषय है कि हम आज भी अपने मोहल्ले, अपनी जाति, अपने धर्म, अपने रंग, रीति जैसे छोटे छोटे मुद्दों में उलझे हुये हैं. निराशा होती है देख कर कि हमने छोटी और काली सोच का चश्मा यूँ आँखों पर चढ़ा लिया है कि उसके परे खड़े हुये वो तमाम मुद्दे हमें नहीं दिखाई देते हैं जो सम्पूर्ण विश्व और सम्पूर्ण मानवता को प्रभावित करते हैं. क्या पर्यावरण किसी एक मोहल्ले, नगर, राज्य, देश या जाति का मुद्दा है? क्या पर्यावरण किसी व्यक्ति विशेष की विरासत है? नहीं! यह पूरी मानव जाति की विरासत है. यह पूरी मानव जाति का मुद्दा है. आओ, अपने सीमित दायरों से बाहर निकलो. समय की पुकार को सुनो और एकजुट हो कर इसे बचाओ!!”
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रज्जू भाई की बात सुन कर हमें बड़ी आत्मग्लानि हुयी. राजेश बाबू तैश में आकर चिल्ला उठे,”रज्जू भाई....” हमने मुठ्ठी भींच कर हाथ उठाते हुये चिल्लाया, ”जिन्दाबाद!!”
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हमने हाथ थाम कर कसम खायी कि मानवता के हित हेतु हम मोहल्ले के सीमित दायरे से बाहर निकलेंगे और पर्यावरण दिवस मंत्री जी की इच्छानुसार माता वसुंधरा की गोद में, प्रकृति के निकट मनायेंगे.
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रज्जू भाई ने कहा,” चिनहट के निकट हमारे बाग हैं, पर्यावरण दिवस सम्मेलन हम वहीं रखेंगे. चलो तुम लोगों को जगह दिखा लाता हूँ.”
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हम लोगों ने दो स्कूटर निकाले और पाँचों लोग उस पर लद कर चल दिये और आधे घंटे में रज्जू भाई के बाग में पंहुच गये. रज्जू भाई का बाग फैज़ाबाद रोड से लगा हुआ था और रज्जू भाई की पहुँच का परिणाम था कि पक्की सड़क उनकी ज़मीन को जाती थी. पूरी ज़मीन पेड़ों से भरी हुई थी. रज्जू भाई ने बड़े गर्व से अपना पाँच एकड़ का बाग हमें दिखाया और पूछे,” कैसी जगह है सम्मेलन के लिये?”
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”अरे बहुत बढ़िया है!!”
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”हुम्म, ऐसा करेंगे कि बीच के ये 15 – 20 पेड़ कटवा देंगे ताकि टेंट लगाने के लिये खुली जगह मिल जाये.” रज्जू भाई ने कहा.
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”अरे लेकिन पेड़ क्यों कटवा रहे हैं, पर्यावरण दिवस पर ही पेड़ काटना....” रज्जू भाई मेरी बात बीच में ही काटते हुये बोले,” अरे भाई फंकसन करवाने के लिये इतना तो करना ही पड़ेगा ना, और फिर इस सम्मेलन में ऐसे फैसले लिये जा सकते हैं जिससे कि आगे चल कर हम बहुत से पेड़ कटने से बचा सकेंगे. और फिर पेड़ों का क्या है, फिर से उग आयेंगे.”
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रज्जू भाई ने पास के गाँव से चार मुस्तंडे बुलवाये और बीच के 15 – 20 पेड़ कटवा कर किनारे लगवा देने का हुक्म दे दिया.
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अगले दिन हमने नदीम भाई से जाकर कह दिया कि भाई अब सम्मेलन स्थली बदल गयी है अतैव अब लोगों को पार्क का सदुपयोग करने की आज्ञा है. दूसरे दिन नदीम भाई ने दीवार के पास बैठते हुये लोटा धारियों को बताया,” अब कौनो डरि नाहीं है, अंदर जायके टट्टी करि लो.”
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.”का कहत हो नदीम, ऊ सुसुरा संपवा मरि गवा का ?”
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”अरे ऊ संपवा एक ठो जिन्न रहा.” नदीम भाई ने छोड़ा.
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.”जिन्न......? ! ? !”
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”अउर नहीं तो का! कलि रात हिंयाँ एक ठो फकीर आये. हम उनका चेता नहीं पाये तो ऊ पर्कवा में चलै गयेन. तबहीं ऊ करिया साँप निकलिस और फरीर बाबा पर झपटा. फकीर उसको पहिचान गये कि इत्ता मोटा ताजा साँप होइयै नहीं सकत – जरूर जिन्न होइहै. बस्स बाबा पोटलिया में से दो चुटकी लोहबान निकलेन और साँप पर छिड़क दिहिन. लोहबान पड़ते ही सुसुरा मोटा ताजा साँप सिकुड़ के केचुआ बनि गवा. और आदमियन की आवाज में लगा गिड़गिड़ाये ‘हमका छोडि दो – हमका छोडि दो’ बाबा ने उसे उठाया और पोटली में बाँध करि ले गये. तो भैया अब ई पारक सेफ है, जाओ आराम से करो.”
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लोटा धारी बहुत खुश हुये. एक ने तो कहा,” फकीर बाबा की उम्र दराज़ हो जो उन्होंने हमें हमारा पार्क दिला दिया. दो दिनों से हाई वे के किनारे जाना पड़ रहा था, नयी जगह थी ना, तो पेट भी ठीक से साफ नहीं होता था. आज तो खुल कर करेंगे.” कह कर लोटा धारी मारे खुशी के लोटा लेकर दीवार के ऊपर से यह गाना गाये हुये पार्क में कूद गया – दुःख भरे दिन बीते रे भैया, अब सुख आयो रे...
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(क्रमशः)